Himachal Pradesh News: हिमाचल प्रदेश विधानसभा में बुधवार को विधानसभा सदस्यों के भत्ते और पेंशन से जुड़ा संशोधन विधेयक पारित हो गया. मुख्यमंत्री ने मंगलवार को यह बिल सदन में पेश किया था. बुधवार को चर्चा के बाद ध्वनि मत से बिल पारित हो गया.
हालांकि विपक्ष के सदस्य इस बिल के संशोधन विधेयक के विरोध में थे और इसे राजनीतिक द्वेष भावना से भरा हुआ संशोधन बता रहे थे, लेकिन सरकार ने इसे ध्वनि मत से पास करवा लिया. इसका सीधा असर कांग्रेस के छह अयोग्य करार दिए गए विधायकों की पेंशन और भत्ते पर पड़ेगा.
दो पूर्व विधायकों पर सबसे ज्यादा असर
इस संशोधन का सबसे ज्यादा असर उन दो पूर्व विधायकों पर पड़ेगा, जो पहली बार चुनाव जीते थे. इनमें कुटलैहड़ से देवेंद्र कुमार भुट्टो और गगरेट से चैतन्य शर्मा शामिल हैं. मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने सदन में कहा कि इन विधायकों की पेंशन और पूर्व विधायकों को मिलने वाले विशेष अधिकार खत्म होंगे. भारतीय जनता पार्टी के सदस्यों ने इस बिल के पूर्वप्रभावी (Retrospective) लागू होने पर भी सवाल खड़े किए. राकेश जमवाल ने कहा किया बिल पूर्वप्रभावी नहीं, बल्कि भावी (Prospective) लागू होना चाहिए.
व्हिप का उल्लंघन करने पर गई थी सदस्यता
गौर हो कि 28 फरवरी को हिमाचल प्रदेश विधानसभा में व्हिप का छह कांग्रेस विधायकों ने उल्लंघन किया था. इसके बाद इन विधायकों के सदस्यता चली गई थी. इनमें सुजानपुर से राजेंद्र राणा, धर्मशाला से सुधीर शर्मा, बड़सर से इंद्रदत्त लखनपाल, लाहौल स्पीति से रवि ठाकुर, कुटलैहड़ से देवेंद्र कुमार भुट्टो और गगरेट से चैतन्य शर्मा शामिल थे. कुछ दिनों बाद यह विधायक भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए और इन्होंने भाजपा की टिकट पर उपचुनाव लड़ा. छह विधानसभा क्षेत्र के उपचुनाव में सिर्फ धर्मशाला से सुधीर शर्मा और बड़सर से इंद्र दत्त लखनपाल उपचुनाव जीत सके. अन्य चार विधायक चुनाव हार गए. माना जा रहा है कि पूर्व में अयोग्य घोषित हुए विधायक इसे अदालत में भी चुनौती दे सकते हैं.
क्या है इस बिल को लाने की वजह?
हिमाचल प्रदेश विधानसभा (सदस्यों के भत्ते और पेंशन) अधिनियम, 1971 विधानसभा के सदस्यों के भत्ते और पेंशन प्रदान करने के दृष्टिगत अधिनियमित किया गया था. वर्तमान में भारत के संविधान की दसवीं अनुसूची के अधीन विधायी सदस्यों के दल बदल को हतोत्साहित करने के लिए अधिनियम में कोई उपबंध नहीं है. इसलिए, सांविधानिक उद्देश्य की पूर्ति के लिए राज्य के लोगों द्वारा दिए गए जनादेश की रक्षा के लिए, लोकतांत्रिक मूल्यों के संरक्षण के लिए और इस संविधानिक पाप के निवारण के लिए हिमाचल प्रदेश विधानसभा (सदस्यों के भत्ते और पेंशन) अधिनियम, 1971 में संशोधन करना आवश्यक हो गया है. यह विधेयक उपर्युक्त उद्देश्यों की पूर्ति के लिए है.
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