Himachal Climate Change: जलवायु परिवर्तन एक विश्वव्यापी समस्या है जिससे भारत और इसके राज्य भी अछूते नहीं हैं. जलवायु परिवर्तन पूरे विश्व को प्रभावित कर रहा है. पिछली एक सदी में उत्तर पश्चिमी हिमालय क्षेत्र के तापमान में 1.6 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है. साल 2050 तक 1 डिग्री सेल्सियस तापमान और बढ़ने की संभावना है. पिछले दशकों की तुलना में शिमला में भी अधिक ग्लोबल वार्मिंग दर्ज की गई है.
रिपोर्ट्स के मुताबिक साल 1996 के बाद से शिमला में हुई बारिश में 17 फ़ीसदी की कमी दर्ज हुई. इसके साथ ही शिमला में बर्फबारी में भी कमी दर्ज की जा रही है. इस सीजन में अब तक शहर में नाम मात्र ही बर्फ पड़ी है. शहर के निचले इलाकों को तो बर्फबारी अब तक छू भी नहीं सकी है.
बिना प्लानिंग खड़े किए जा रहे कंक्रीट के जंगल
शिमला नगर निगम के पूर्व डिप्टी मेयर और पर्यावरणविद टिकेंद्र पंवर ने शिमला के साथ हिमाचल प्रदेश की स्थिति पर चिंता व्यक्त की है. पंवर का कहना है कि हिमाचल प्रदेश में बिना प्लानिंग के हो रहा विकास दिन-प्रतिदिन खतरे को बुलावा देने का काम कर रहा है. प्रदेश में बनाए जा रहे हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट इलाके को खोखला करने का काम कर रहे हैं. वर्ल्ड बैंक से मिलने वाली आर्थिक सहायता के लालच में प्राकृतिक संपदाओं के दोहन के नाम पर उनका शोषण किया जा रहा है. पर्यावरणविद टिकेंद्र पंवर का कहना है कि इस समय शिमला भी जोशीमठ जैसे हालात पैदा करने की तैयारी कर रहा है.
भले ही अभी शिमला में ऐसे हालात पैदा न हुए हो, लेकिन भविष्य में ऐसे ही हालात देखने के लिए मिल सकते हैं. विकास के नाम पर शिमला में खड़ा किया जा रहा कंक्रीट का जंगल आपदा को बुलावा दे रहा है.
तीव्र भूकंप से शिमला में हो सकती है बड़ी तबाही
पर्यावरणविद टिकेंद्र पंवर के मुताबिक पहाड़ पर बेतरतीब बनाए जा रहे भवन किसी भी समय जमींदोज हो सकते हैं. अगर शिमला शहर में गहराई और अधिक तीव्रता वाला भूकंप आता है, तो सीस्मिक जोन 4 और 5 में होने की वजह से कम से कम 20 हजार लोगों की जान जा सकती है. उनका कहना है कि वे इस आंकड़े के जरिए किसी को डराना नहीं बल्कि जागरूक करना चाहते हैं. इसी तरह राजधानी शिमला के रिज मैदान पर बने अंडर ग्राउंड वाटर टैंक पर बढ़ते दबाव के चलते खतरा पैदा हो रहा है. इस बारे में भी सरकार को विचार करने की जरूरत है. क्योंकि इससे भी एक बड़ी आपदा आने की पूरी संभावना है.
ग्लोबल वार्मिंग बढ़ाने में विकसित देशों का बड़ा हाथ
पर्यावरण पर बारीकी से शोध करने वाले टिकेंद्र पंवर का कहना है कि बढ़ती ग्लोबल वार्मिंग का बड़ा कारण विकसित देश भी हैं. विकसित देश अपने कथित विकास के लिए प्रकृति का जमकर शोषण कर रहे हैं. जहां विश्व के सभी देशों को एक साथ लेकर चलने की बारी आती है, वहां अमेरिका जैसे बड़े देश कार्बन उत्सर्जन कम करने से इनकार कर देते हैं. अपने निजी हित के लिए प्रकृति का शोषण कर रहे बड़े देशों का असर विश्वभर के अन्य देशों पर पड़ता है. इसका बड़ा खामियाजा छोटे देशों को उठाना पड़ता है. इस खतरे से बचाव के लिए सरकार के संवेदनशील और जनता को जागरूक होने की जरूरत है.
विकास-विनाश के बीच की बारीक रेखा को समझना जरूरी
पंवर के अनुसार हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले दोनों ही मुख्य राजनीतिक दलों के घोषणा पत्र में पर्यावरण की कोई बात नहीं की गई. देश-प्रदेश की राजनीति में पर्यावरण का विषय हाशिए पर जा पहुंचा है. जिन खूबसूरत पहाड़ों के नाम पर हिमाचल प्रदेश का पर्यटन आगे बढ़ रहा है, विकास के नाम पर उन पहाड़ों का शोषण किया जा रहा है. विकास और विनाश के बीच एक महीन रेखा है. इस महीन रेखा को पार करते ही विकास विनाश में तबदील हो जाता है. उत्तराखंड के जोशीमठ में आई आपदा से हिमाचल प्रदेश को सीख लेने की जरूरत है.