Himachal Pradesh News: हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू दिल्ली दौरे पर हैं. दिल्ली में मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू की कांग्रेस आलाकमान से मुलाकात की योजना है. दिल्ली दौरे पर उनके साथ मंत्री पद की दौड़ में शामिल कुल्लू के विधायक सुंदर सिंह ठाकुर, राजनीतिक सलाहकार सुनील शर्मा बिट्टू और मीडिया समन्वयक यशपाल शर्मा भी हैं. मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के दिल्ली जाते ही सोशल मीडिया पर उनके इस्तीफे की खबरें छा गई.
इस पर अब मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू का बयान सामने आया है. मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कहा कि कुछ लोग उनके इस्तीफे की खबरें चलाकर लोगों का ध्यान भटकाने की कोशिश कर रहे हैं. मुख्यमंत्री ने कहा कि जब से कांग्रेस दोबारा 40 सीटों पर पहुंची है, तब से उन पर व्यक्तिगत हमले किए जा रहे हैं.
मजबूत मुद्दे लेकर आए विपक्ष- CM सुक्खू
मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह ने कहा कि कभी टॉयलेट टैक्स की बात की जाती है, तो कभी समोसे की बात की जाती है. उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश में विपक्ष बचकाना बातें कर रहा है. विपक्ष को जनहित से जुड़े मजबूत मुद्दों को सामने लाना चाहिए. मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कहा कि विपक्ष को बेरोजगारी महंगाई और भ्रष्टाचार के मुद्दे सामने लाने चाहिए. उन्होंने कहा कि कांग्रेस सरकार ने बीते दो सालों में अंतिम पायदान पर खड़े लोगों के हित के लिए काम किया है. राज्य सरकार आम जनता के हित के लिए प्रतिबद्ध है.
सुप्रीम कोर्ट से मिली राहत का स्वागत
वहीं मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्ति के मामले में सुप्रीम कोर्ट से मिली राहत का भी स्वागत किया. सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के फैसले पर फिलहाल रोक लगाई है. मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कहा, "सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कानून की परिभाषा तय कर दी है. हाईकोर्ट के ऑर्डर के पैरा- 50 की व्याख्या उससे मेल नहीं खाती. आज सुप्रीम कोर्ट के सामने जो कुछ पेश किया गया, उससे राहत मिली है. अब हम आगे उठाए जाने वाले कदमों पर विचार-विमर्श करेंगे".
सुप्रीम कोर्ट से राज्य सरकार को मिली राहत
बता दें कि हिमाचल प्रदेश सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में एक स्पेशल लीव पिटिशन दायर की गई थी. सुनवाई के बाद सरकार ने हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के उस फैसले के खिलाफ दायर विशेष अनुमति याचिका पर नोटिस जारी किया, जिसमें साल 2006 के राज्य कानून को निरस्त कर दिया गया था.
इसके तहत राज्य सरकार को राज्य विधानसभा के सदस्यों (विधायकों) को संसदीय सचिव के रूप में नियुक्त करने की अनुमति दी गई थी. भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति पीवी संजय कुमार की पीठ ने अगली सुनवाई तक उच्च न्यायालय के उस निर्देश पर भी रोक लगा दी, जिसमें कहा गया था कि संसदीय सचिवों के खिलाफ कार्रवाई की जाए.
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