Himachal Pradesh Politics: कहते हैं कि राजनीति में कुछ भी स्थाई नहीं होता. करीब पांच महीने पहले मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व वाली जिस कांग्रेस सरकार पर खतरा नजर आ रहा था, वह अब स्थिर हो चुकी है. लंबी उठापटक के बाद कांग्रेस एक बार फिर 40 सीटों का आंकड़ा छूने में सफल हुई है. 


इसके पीछे मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू की रणनीति की अहम भूमिका है. उपचुनाव में जीत ने न सिर्फ मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू का पार्टी में सियासी कद बढ़ाया है, बल्कि उनकी विश्वनीयता में भी इजाफा हुआ है.


बगावत के बाद अस्थिर नजर आ थी थी सुक्खू सरकार 
27 फरवरी को हुए राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस के छह तत्कालीन विधायकों ने खुलेआम बगावत कर दी थी. तीन तत्कालीन निर्दलीय विधायकों ने भी मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू का साथ छोड़ दिया था. पहले न सिर्फ कांग्रेस को अपने अधिकृत प्रत्याशी डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी की हार के बाद कांग्रेस बैकफुट पर आ गई, बल्कि सरकार भी अस्थिरता अस्थिर नजर आने लगी. 


लोक निर्माण मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने भी मंत्री पद से इस्तीफा तक दे दिया, जो बाद में स्वीकार नहीं हुआ. विक्रमादित्य सिंह दिल्ली से लेकर चंडीगढ़ तक के चक्कर लगाते रहे, जिससे लगातार अनिश्चितता बनी रही.


हिमाचल कांग्रेस अध्यक्ष के बयानों ने भी किया परेशान
इस बीच हिमाचल कांग्रेस अध्यक्ष प्रतिभा सिंह के भी लगातार सरकार विरोधी बयानों ने मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू की परेशानी बढ़ाने का काम किया. आलम यह था कि सरकार को ठीक अगले दिन 28 फरवरी को अपना बजट पास करवाने के लिए भी खूब उठक-बैठक करनी पड़ी. जैसे-तैसे बजट तो पास हुआ, लेकिन फिर भी सरकार पर खतरा मंडराता रहा. 


बीजेपी दावा करती रही कि कई अन्य विधायक भी उनके संपर्क में हैं और जल्द ही सरकार गिर जाएगी. 


कांग्रेस के छह विधायकों ने गवाई सदस्यता
इस बीच सत्तापक्ष के सदस्य और सरकार में संसदीय कार्य मंत्री हर्षवर्धन चौहान ने छह विधायकों के खिलाफ व्हिप के उल्लंघन पर विधानसभा अध्यक्ष को याचिका सौंपी. तत्काल कार्रवाई करते हुए विधानसभा अध्यक्ष ने भी सभी छह सत्तपक्ष सदस्यों की सदस्यता को रद्द कर दिया. इनमें सुधीर शर्मा, राजेंद्र राणा, चैतन्य शर्मा, देवेंद्र कुमार भुट्टो, इंद्र दत्त लखनपाल और रवि ठाकुर शामिल थे. 


मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा, लेकिन फिर इन सभी बगावत करने वाले तत्कालीन विधायकों को समझ आ गया कि कोर्ट से संभवत: राहत मिलने वाली नहीं है.


कांग्रेस के बागियों को बीजेपी ने गले लगाया 
सभी छह विधायकों ने भाजपा का दामन थामा और सुप्रीम कोर्ट से भी याचिका वापस ले ली. छह सीट पर उपचुनाव घोषित हो गए और भाजपा ने बागियों गले लगाकर चुनावी मैदान में उतार दिया. भाजपा न तो जनता को इसके पीछे की वजह समझ सकी और न ही अपने काडर को. जनता के साथ पार्टी के लिए परिश्रम करने वाले कार्यकर्ताओं की नाराजगी भाजपा को भारी पड़ी. 


छह में से सिर्फ दो सीट पर ही बीजेपी जीत सकी. अन्य चार पर कांग्रेस ने जीत हासिल कर ली. बीजेपी की टिकट पर सिर्फ सुधीर शर्मा और आईडी लखनपाल ही चुनाव जीतने में सफल रहे.


इस्तीफा स्वीकार करवाने हाईकोर्ट तक गए निर्दलीय विधायक
इस सबके बीच ही दिलचस्प ढंग से 22 मार्च को तीन तत्कालीन निर्दलीय विधायकों ने भी सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था. इस्तीफा स्वीकार होने से पहले ही विधायक भाजपा में शामिल हो गए. तीनों तत्कालीन निर्दलीय विधायकों ने इस्तीफा स्वीकार करवाने के लिए हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, लेकिन हाईकोर्ट ने भी इन्हें कोई राहत नहीं दी. लंबे इंतजार के बाद इस्तीफा तीन जून को स्वीकार हुआ और फिर यहां भी उपचुनाव हुए. 


इन उपचुनाव में भी भाजपा को फिर झटका लगा. भाजपा ने तीनों तत्कालीन निर्दलीय विधायकों होशियार सिंह, कृष्ण लाल ठाकुर और आशीष शर्मा को ही अपना प्रत्याशी बनाया था. इनमें सिर्फ हमीरपुर से आशीष शर्मा ही जीत हासिल करने में सफल रहे. देहरा से होशियार सिंह और नालागढ़ से कृष्ण लाल ठाकुर को हार का सामना करना पड़ा.


एक बार फिर 40 के आंकड़े पर पहुंची कांग्रेस
कुल-मिलाकर बीते दो महीने में नौ सीटों पर हुए विधानसभा चुनाव में छह सीटों पर कांग्रेस और तीन सीटों पर भारतीय जनता पार्टी ने जीत हासिल की. कांग्रेस एक बार फिर इस 40 के आंकड़े पर पहुंच गई है, जहां वह साल 2022 के विधानसभा चुनाव के परिणाम के बाद थी. मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कांग्रेस से बगावत करने वाले अपने ही पुराने साथियों के खिलाफ माहौल तैयार करने का काम किया. 


मुख्यमंत्री जनता को यह समझाने की कोशिश करते हुए नजर आए कि कांग्रेस के पूर्व विधायकों ने जनता के आदेश का अपमान किया है. मुख्यमंत्री ने सभी बगावत करने वाले पूर्व विधायकों पर 15-15 करोड़ रुपए लेकर बिकने तक के भी आरोप लगाए. अपना यह आख्यान यानी नेरेटिव सेट करने में मुख्यमंत्री सफल भी रहे. इससे कांग्रेस को चार सीटों पर जीत मिली.


पूर्व निर्दलीय विधायकों के खिलाफ नेरेटिव भी रहा सफल
इसके बाद जब अन्य तीन सीटों पर उपचुनाव आए, तब मुख्यमंत्री ने जनता के बीच एक नया नेरेटिव सेट किया. इसके तहत मुख्यमंत्री ने जनता से कहा कि पूर्व निर्दलीय विधायकों से पूछा जाना चाहिए कि आखिर उन्होंने इस्तीफा दिया क्यों. वह विधायक पद से इस्तीफा देकर दोबारा विधायक बनने के लिए ही चुनाव क्यों लड़ रहे हैं. 


वह तो निर्दलीय विधायक थे. वह चाहते तो निर्दलीय रहते हुए विपक्ष का भी साथ दे सकते थे, लेकिन फिर भी उन्होंने इस्तीफा दिया. देहरा में तो मुख्यमंत्री की धर्मपत्नी कमलेश ठाकुर के चुनाव लड़ने से राह आसान हुई और देहरा में कांग्रेस का दो दशकों का सूखा खत्म हुआ.


जनता से सरकार के साथ चलने में समझी भलाई
इससे इतर, पूर्व निर्दलीय विधायक जनता को यह समझाने में बड़े स्तर पर नाकाम रहे कि उन्होंने आखिर ऐसा किया क्यों. कुल-मिलाकर मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू जनता तक अपनी बात पहुंचाने में सफल रहे और जनता ने भी सरकार के साथ चलने वाला ही विधायक चुनने में अपने इलाके की भलाई समझी. 


फिलहाल, अब सरकार स्थिर हो गई है. मुख्यमंत्री का दावा है कि वह खुलकर अब कई बड़े निर्णय लेंगे जो जनता के हित में होंगे. मुख्यमंत्री के दावों के मुताबिक, अब जनता की नजरें आने वाले वक्त में उनके बड़े फैसलों पर रहेगी.


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