Himachal Pradesh News: हिमाचल कांग्रेस अध्यक्ष प्रतिभा सिंह इन दिनों दिल्ली दौरे पर हैं. दिल्ली में उन्होंने अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे से मुलाकात की. इस मुलाकात के दौरान प्रतिभा सिंह ने हिमाचल प्रदेश में चार लोकसभा चुनाव और नौ सीटों पर हुए विधानसभा उपचुनाव की विस्तृत रिपोर्ट खरगे को सौंपी.


हिमाचल प्रदेश की सभी चार लोकसभा सीट पर कांग्रेस की हार हुई, जबकि नौ सीटों पर हुए उपचुनाव में छह पर कांग्रेस पार्टी ने जीत हासिल कर अपनी सरकार को सुरक्षित किया. 


अभी चार लोकसभा सीटों पर कांग्रेस की हार


मंडी से कांग्रेस प्रत्याशी विक्रमादित्य सिंह, शिमला से विनोद सुल्तानपुरी, हमीरपुर से सतपाल रायजादा और कांगड़ा से आनंद शर्मा को हार का सामना करना पड़ा. कांगड़ा में कांग्रेस का प्रदर्शन सबसे खराब रहा. जहां एक भी विधानसभा सीट पर कांग्रेस को लीड नहीं मिल सकी. इसके अलावा कांग्रेस को मंडी और शिमला संसदीय क्षेत्र में जीत की बड़ी उम्मीद थी, लेकिन यहां भी कांग्रेस के हाथ जीत नहीं लग सकी.


साल 2024 में कांग्रेस की हार की हैट्रिक लगी है. इससे पहले साल 2014 और साल 2019 के लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस को सभी चार सीटों पर हार का सामना करना पड़ा था. हालांकि साल 2021 के चुनाव में मंडी संसदीय क्षेत्र में प्रतिभा सिंह ने जीत हासिल कर ली थी, लेकिन साल 2024 आते-आते यह सीट एक बार फिर कांग्रेस के हाथ से छिटक गई.


विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस का बेहतर प्रदर्शन


लोकसभा चुनाव से इतर विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस पार्टी का प्रदर्शन बेहतरीन रहा. कुल नौ विधानसभा क्षेत्र में उपचुनाव हुए. इनमें छह सीटों पर कांग्रेस ने जीत हासिल की. पहले छह सीटों पर 1 जून और अन्य तीन सीटों पर 10 जुलाई को उपचुनाव हुए. कुल नौ विधानसभा क्षेत्र में उपचुनाव में छह पर जीत हासिल करने के बाद कांग्रेस एक बार फिर 40 सदस्यों की संख्या पर पहुंच गई.


राज्यसभा चुनाव में 27 फरवरी को हुई सियासी उठापटक के बाद कांग्रेस कमजोर स्थिति में आ गई थी और सरकार खतरे में नजर आ रही थी. सरकार और संगठन में समन्वय की कमी के बावजूद कांग्रेस ने जीत हासिल कर सरकार को सुरक्षित किया. इससे पहले लोकसभा चुनाव में हार की रिपोर्ट के लिए दो सदस्यों की फैक्ट फाइंडिंग कमेटी भी शिमला आई थी. इनमें रजनी पाटिल और पीएल पुनिया शामिल थे. 


 कांग्रेस की हार के संभावित मुख्य कारण बताए जा रहे हैं. 


• सरकार और संगठन में समन्वय की कमी 


लोकसभा चुनाव में प्रत्याशियों की घोषणा में देरी 


• कई सीटों पर विधायकों और उनके समर्थकों में आत्मविश्वास की कमी 


• विधानसभा स्तर पर नेताओं और समर्थकों में गुटबाजी


• राज्य सरकार से कार्यकर्ताओं की नाराजगी


• कांग्रेस कार्यकर्ताओं के आगे अफसरशाही की कथित मनमानी


• कांग्रेस नेताओं के पास बीजेपी के राष्ट्रीय स्तर के मुद्दों का तोड़ न होना


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