Himachal Pradesh News: हिमाचल प्रदेश में कर्मचारी अक्सर अपने ट्रांसफर को लेकर बेहद परेशान रहते हैं. राज्य सचिवालय में दिन-रात ट्रांसफर कराने वाले अधिकारियों और कर्मचारियों का जमावड़ा लगा रहता है. हर कर्मचारी अपनी पहुंच के मुताबिक मनपसंद जगह पर नौकरी करने की हर संभव कोशिश करता है. ऐसे में हाल ही में बिजली बोर्ड के सहायक इंजीनियर ने हाई कोर्ट (High Court) में अपने ट्रांसफर को चुनौती दी. मामले की सुनवाई न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायाधीश वीरेंद्र सिंह की खंडपीठ ने की.
सहायक इंजीनियर अपने चार किलोमीटर दूर हुए ट्रांसफर के खिलाफ हाई कोर्ट पहुंचा गया. दरअसल, याचिका में कहा गया था कि उन्हें राजनीतिक सिफारिश के आधार पर मल्याणा खंड नंबर-2 से कसुम्पटी भेजा गया है. इसके लिए प्रतिवादी देवेंद्र सिंह को समायोजित करने के लिए ग्रामीण विकास मंत्री अनिरुद्ध सिंह ने सिफारिश की थी. अदालत ने जब मामले से जुड़ा रिकॉर्ड तलब किया, तो पाया कि अधिकारी 33 साल से शिमला में ही नौकरी कर रहा है. इसके बाद कोर्ट ने एक अधिकारी को किन्नौर तो दूसरे अधिकारी को लाहौल स्पीति ट्रांसफर कर दिया.
4 किलोमीटर दूर हुआ था ट्रांसफर
हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट की खंडपीठ ने पाया कि सहायक इंजीनियर राजेश ने बीते 33 साल से शिमला में ही नौकरी की है. रिकॉर्ड में पता चला कि साल 1990 से साल 2004 तक अधिकारी ने खंड नंबर एक में ही सेवाएं दी. इसके बाद खंड नंबर 2 में उन्होंने साल 2021 तक सेवाएं दी. इसके बाद खंड के अंतर्गत उन्हें जब मल्याणा भेजा गया, तो इसके खिलाफ उन्होंने कोर्ट में याचिका दायर कर दी. आरोप लगाया गया था कि 18 मार्च, 2023 को उनका तबादला मल्याणा खंड नंबर दो कसुम्पटी के लिए कर दिया गया है और प्रतिवादी को मल्याणा में तैनाती दे दी है.
1 मई तक हाई कोर्ट ने तलब की रिपोर्ट
गौरतलब है कि बोर्ड के खंड नंबर 1 और 2 कसुम्पटी में ही आते हैं. वहीं दूसरी ओर प्रतिवादी भी साल 1989 से साल 2009 तक खंड नंबर 1 में ही रहा और 2009 से अब तक खंड नंबर 2 में सेवाएं दे रहा था. अदालत ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि दोनों ने उन समानांतर अधिकारियों के साथ अन्याय किया है, जो जनजातीय इलाकों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं. इन प्रभावशाली इंजीनियरों ने अपनी पहुंच का फायदा उठाते हुए शिमला से बाहर नौकरी ही नहीं की. हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने बिजली बोर्ड से 1 मई तक अनुपालन रिपोर्ट भी मांगी है. इस रिपोर्ट में बोर्ड को हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट की खंडपीठ को बताना होगा कि दोनों अधिकारियों को ट्रांसफर दिया गया है या नहीं. कुल मिलाकर दोनों अधिकारियों को चार किलोमीटर दूर रास न आ रहे ट्रांसफर अब सैकड़ों किलोमीटर दूर जनजातीय इलाके में पहुंचा चुका है.