हिमाचल में योद्धा राम सिंह पठानिया की प्रतिमा का अनावरण, 24 साल की उम्र में दिया था सर्वोच्च बलिदान
Himachal News:कांगड़ा में सोमवार को योद्धा वजीर राम सिंह पठानिया की प्रतिमा का अनावरण राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल ने किया. बता दें कि उन्होंने मुट्ठीभर लोगों के सहयोग से ब्रिटिश सल्तनत को हिला दिया था.
Ram Singh Pathania: भारत देश की आजादी के लिए असंख्य सेनानियों ने अपने प्राण न्योछावर किए. साल 1857 में देश की आजादी के लिए छिड़े संग्राम को स्वतंत्रता की पहली लड़ाई के तौर पर देखा जाता है, लेकिन इससे करीब 10 साल पहले ही साल 1848 में पहाड़ों पर वीर योद्धा वजीर राम सिंह पठानिया ने ब्रिटिश हुकूमत की जड़ें दिला दी थी. 10 अप्रैल, 1824 को जन्मे वीर योद्धा वजीर राम सिंह पठानिया ने साल 1857 की क्रांति से एक दशक पहले पहाड़ी क्षेत्रों में साल 1848 की क्रांति का नेतृत्व किया और ब्रिटिश शासन के खिलाफ लोगों को खड़ा होने के लिए प्रेरित किया.
राज्यपाल शिव प्रताप ने किया प्रतिमा का अनावरण
वीर योद्धा वजीर राम सिंह पठानिया ने शाहपुर की लड़ाई में उनका अपार शौर्य ने आजादी के लिए उनके समर्पण को दिखा दिया. वजीर राम सिंह पठानिया ने मुट्ठीभर लोगों के सहयोग से ब्रिटिश सल्तनत को हिला दिया था. ऐसे वीर योद्धा वजीर राम सिंह पठानिया की प्रतिमा का आज अनावरण हुआ. हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल ने प्रतिमा का अनावरण किया. इस दौरान उनके साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारिणी के सदस्य इंद्रेश कुमार भी मौजूद रहे.
वजीर राम सिंह को हमेशा रखा जाएगा याद- राज्यपाल
इस दौरान हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल ने कहा- 'वजीर राम सिंह पठानिया की विरासत हमारे स्मृति पटल पर हमेशा बनी रहेगी, जिन्होंने भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ पहला संगठित सशस्त्र विद्रोह शुरू कर लोगों को अपनी आवाज उठाने के लिए प्रेरित किया. वजीर राम सिंह पठानिया साहस, देशभक्ति और दृढ़ संकल्प का उदाहरण हैं, जिसके लिए इतिहास में उन्हें सदैव याद रखेगा'.
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24 साल की उम्र में आजादी के लिए सर्वोच्च बलिदान
ब्रिटिश शासकों ने वीर योद्धा वजीर राम सिंह पठानिया को गिरफ्तार करने के लिए षड्यंत्र रचा था. उन्हें आजीवन कारावास की सजा देकर कालापानी भेज दिया गया था. इसके बाद उन्हें रंगून भेज दिया गया. उन पर ब्रिटिश हुकूमत ने कई जुल्म किए, लेकिन उनके हौसलों को पस्त नहीं कर सकी. 11 नवंबर, 1849 को सिर्फ 24 साल की उम्र में देश की आजादी के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया. उनका बलिदान देश के स्वतंत्रता संघर्ष की नींव था, जिसे आगे चलकर भारत की आजादी के लिए विद्रोह को ताकत मिली.