Himachal Pradesh News: भारत में भले ही संविधान लागू होने के बाद राजतंत्र की समाप्ति हो गई हो, लेकिन आज भी रस्म अदायगी के लिए राजवंश में राजतिलक की परंपरा जारी है. दरअसल, गुरुवार को हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा (Kangra) के ऐतिहासिक किले में कटोच वंश के 489वें राजा ऐश्वर्य चंद कटोच का राजतिलक हुआ. कांगड़ा किले के कुलदेवी मां अंबिका के मंदिर में इस राजतिलक की रस्म निभाई गई. नवमी के मौके पर हुए इस कार्यक्रम में देश-विदेश से मेहमान पहुंचे थे. कांगड़ा किले में बनी मां अंबिका के इस मंदिर को प्राचीनतम मंदिरों में गिना जाता है.
राजतिलक होते ही शैलजा कुमारी कटोच को महारानी और उनके बेटे अंबिकेश्वर चंद कटोच को टिक्का राज की उपाधि मिल गई. कांगड़ा किले में अंतिम राज्य अभिषेक 1629 ईस्वी में हुआ था. 'राजमाता' चंद्रेश कुमारी नए-नए महाराजा ऐश्वर्य चंद कटोच के राजतिलक के मौके पर 2 अप्रैल को राजमहल लंबागांव में स्थानीय जनता के लिए कांगड़ी धाम का भी आयोजन किया है. चंद्रेश कुमारी कटोच वंश की बहू होने के साथ-साथ कांग्रेस पार्टी की नेता भी हैं. कटोच वंश दुनिया में सबसे लंबे समय तक जीवित रहने वाले राजवंशों में शामिल है.
विक्रमादित्य सिंह का भी हुआ था राजतिलक
जुलाई 2021 में वीरभद्र सिंह के देहांत के बाद उनके बेटे विक्रमादित्य सिंह का भी रस्म अदायगी के लिए राजतिलक किया गया था. वीरभद्र सिंह हिमाचल प्रदेश के छह बार के मुख्यमंत्री रहे और उनके बेटे मौजूदा वक्त में लोक निर्माण मंत्री हैं. भले ही देश संविधान से चलता हो, लेकिन आज भी हिमाचल प्रदेश के लोग प्यार और सम्मान के साथ स्वर्गीय वीरभद्र सिंह को 'राजा साहब' ही बोलते हैं.
जहांगीर ने किया था कब्जा
कांगड़ा किला 463 एकड़ में फैला हुआ है. इसका निर्माण कांगड़ा राज्य कटोच वंश के राजपूत परिवार ने करवाया था, जिन्होंने खुद को प्राचीन त्रिगत साम्राज्य के वंशज होने का प्रमाण दिया था. त्रिगत साम्राज्य का उल्लेख महाभारत में मिलता है. कांगड़ा किला पर राज करने वाले को संपूर्ण पहाड़ का राजा माना जाता था. 1615 ईस्वी में मुगल सम्राट अकबर ने इस किले को जीतने के लिए घेराबंदी की थी, लेकिन वो इसमें असफल रहा था. इसके बाद 1620 ईस्वी में अकबर के बेटे जहांगीर ने इस किले पर कब्जा कर लिया था.
1789 में कटोच वंश ने वापस लिया था कब्जा
मुगल सम्राट जहांगीर ने सूरज मल की सहायता से अपने सैनिकों को इस किले में प्रवेश करवाया था. 1789 ईस्वी में यह किला एक बार फिर कटोच वंश के अधिकार में आ गया. राजा संसार चंद द्वितीय ने इस प्राचीन किले को मुगलों से जीत लिया. वहीं 1828 ईस्वी तक यह किला कटोच वंश के अधीन ही रहा, लेकिन राजा संसार चंद द्वितीय की मृत्यु के बाद महाराजा रणजीत सिंह ने इस किले पर कब्जा कर लिया. उसके बाद 1846 तक यह सिखों की देखरेख में रहा और बाद में यह अंग्रजों के अधीन हो गया.