(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Himachal Political Crisis: कौन हैं विक्रमादित्य सिंह? जिन्होंने हिमाचल में मंत्री पद से इस्तीफा देकर बढ़ाईं सुक्खू की मुश्किलें
Himachal Political Crisis: हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की टेंशन और बढ़ गई है. अब विक्रमादित्य सिंह ने सीएम सुक्खू के खिलाफ मोर्चा खोला है और मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है.
Vikramaditya Singh Resigns: हिमाचल प्रदेश की कांग्रेस सरकार में भूचाल की स्थिति पैदा हो गई है. कांग्रेस में दो फाड़ होती साफ दिख रही है. अब विक्रमादित्य सिंह ने बड़े ही भावुक तरीके से मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है. आपको बता दें, विक्रमादित्य सिंह हिमाचल कांग्रेस सरकार में लोक निर्माण मंत्री थे, जिस पद से उन्होंने बुधवार 28 फरवरी को इस्तीफा दे दिया. वे कांग्रेस प्रमुख प्रतिभा सिंह और पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत वीरभद्र सिंह के बेटे हैं.
ऐसा है विक्रमादित्य सिंह का राजनीतिक सफर
साल 2013 में हिमाचल प्रदेश कांग्रेस कमेटी जॉइन करने के बाद विक्रमादित्य सिंह युवा कांग्रेस अध्यक्ष बने. फिर साल 2017 तक अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभाली. 2017 में वह पहली बार शिमला से विधायक बनें और फिर विधानसभा चुनाव 2022 में बीजेपी के रवि कुमार मेहता को 13 हजार से ज्यादा मतों से हराकर विक्रमादित्य सिंह ने विधायक की कुर्सी बरकरार रखी. इस सीट से 6 उम्मीदवार मैदान में थे. इस बार सुक्खू सरकार में उन्हें लोक निर्माण विभाग का जिम्मा मिला, जिस पद से उन्होंने इस्तीफा दे दिया है.
विक्रमादित्य सिंह राजघराने से ताल्लुक रखते हैं. साल 2021 में कांग्रेस के दिग्गज नेता और 6 बार के मुख्यमंत्री रहे उनके पिता वीरभद्र सिंह की मृत्यु के बाद विक्रमादित्य राजा बने. विक्रमादित्य सिंह का जन्म 17 अक्टूब 1989 में हुआ था. शुरुआती पढ़ाई हिमाचल प्रदेश के बिशप स्कूल में करने के बाद उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन डिग्री ली. वे दिल्ली विश्वविद्यालय के हंसराज कॉलेज से हिस्ट्री ग्रेजुएट हैं. सेंट स्टीफेंस कॉलेज से उन्होंने हिस्ट्री में ही पोस्ट ग्रेजुएशन भी किया है. इतना ही नहीं, विक्रमादित्य सिंह एक स्पोर्ट्समैन भी हैं और उन्होंने नेशनल लेवल पर हिमाचल प्रदेश का प्रतिनिधित्व किया है.
विक्रमादित्य सिंह के इस्तीफे की वजह
जानकारी के लिए बता दें कि विक्रमादित्य सिंह ने मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू पर अपने अपमान का आरोप लगाया है. बुधवार 28 फरवरी को रोते हुए उन्होंने अपना इस्तीफा पेश किया और कहा कि यह विधायकों की अनदेखी और असंतोष का नतीजा है. उन्होंने यह दावा किया कि उनकी निष्ठा कांग्रेस पार्टी के साथ है.
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