Himachal Politics: आखिर क्यों क्षेत्रीय संतुलन साधने में नाकाम है हिमाचल कांग्रेस, रणनीति या ओवर कॉन्फिडेंस?
हिमाचल प्रदेश मंत्रिमंडल के बाद अब नगर निगम शिमला में भी क्षेत्रीय और संतुलन नजर आ रहा है. कुछ जानकार इसे राजनीतिक मजबूरी तो कोई इसे सरकार का ओवरकॉन्फिडेंस करार दे रहे हैं.
Himachal Politics: दिसंबर 2022 में हिमाचल प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के बाद देशभर में कांग्रेस की सियासत बदलती हुई नजर आ रही है. हिमाचल के पहाड़ों से निकली जीत की हवा कर्नाटक के समुंदर तक जा पहुंची है. देशभर में हिमाचल प्रदेश कांग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं के लिए एक आदर्श राज्य के तौर पर बनकर उभरा है. लेकिन, इस सबके बीच हिमाचल कांग्रेस क्षेत्रीय समीकरण साधने में नाकाम नजर आ रही है. पहले तो सुक्खू मंत्रिमंडल में सबसे बड़े जिला कांगड़ा को नाम मात्र का स्थान मिला. अब नगर निगम शिमला में भी क्षेत्रीय संतुलन की भारी कमी नजर आ रही है.
मंत्रिमंडल में भी साफ नजर आता है क्षेत्रीय असंतुलन
हिमाचल प्रदेश की कुल 68 विधानसभा क्षेत्रों में से 15 विधानसभा क्षेत्र जिला कांगड़ा में आते हैं. जिला कांगड़ा ने कांग्रेस की झोली में 10 सीटें डाली. एक तरह से कांग्रेस को कांगड़ा में प्रचंड बहुमत मिला, लेकिन जब कांगड़ा को अधिमान का समय आया तो सुक्खू मंत्रिमंडल में सिर्फ कांगड़ा जिला से सिर्फ चौधरी चंद्र कुमार के रूप में एक मंत्री ही दिया गया. जबकि कांगड़ा से तीन मंत्री बनाए जाने के कयास लगाए जा रहे थे. सरकार बने पांच महीने से ज्यादा का वक्त हो गया है, लेकिन अब तक मंत्रिमंडल विस्तार की सिर्फ अटकलें ही लगाई जा रही हैं.
अब नगर निगम शिमला में भी क्षेत्रीय असंतुलन
इसी तरह नगर निगम शिमला के मेयर और डिप्टी मेयर के चयन में भी भारी क्षेत्रीय असंतुलन नजर आया. नगर निगम शिमला तीन विधानसभा क्षेत्र में फैला हुआ है. इसमें शिमला शहरी के 18, कसुम्पटी के साथ 12 और शिमला ग्रामीण के 4 वॉर्ड शामिल हैं. अब जब मेयर-डिप्टी मेयर के चयन की बात आई, तो दोनों पद ही शिमला शहरी विधानसभा क्षेत्र की झोली में आ गिरे जबकि राजनीतिक जानकार एक पद कसुम्पटी या शिमला ग्रामीण को दिए जाने की बात कर रहे थे. माना यह भी जा रहा है कि कसुम्पटी से कांग्रेस को पांच वार्डों में हार का सामना करना पड़ा. इस वजह से भी मेयर-डिप्टी मेयर का पद की झोली में नहीं आया और शिमला ग्रामीण के सिर्फ चार वॉर्ड ही परिधि में होने के चलते मौका नहीं मिल सका.
क्या भविष्य में पड़ेगी कांग्रेस की परेशानियां?
नगर निगम शिमला में यह असंतुलन भविष्य में कार्यकर्ताओं के बीच रोष का एक बड़ा कारण बन कर उभर सकता है. हालांकि दोनों ही विधानसभा क्षेत्रों के विधायक अनिरुद्ध सिंह और विक्रमादित्य सिंह को सुक्खू मंत्रिमंडल में जगह मिली हुई है. इस सब के बीच राजनीतिक जानकारों ने यह भी ध्यान दिलाया कि मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि वे अपने करीबियों को साथ लेकर चलने वाले नेता हैं. सुरेंद्र चौहान को मेयर बनाए जाने की अटकलें उन्हें टिकट दिए जाने के साथ ही शुरू हो गई थी. मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने न केवल सुरेंद्र चौहान के लिए जमकर प्रचार किया बल्कि उन्हें मेयर बनाकर यह भी साबित कर दिया कि अपने करीबियों के लिए उनका समर्पण बेलाग है.