Success Story of Anjana Thakur: अपना लक्ष्य हासिल करने से हमें क्या रोक सकता है? गरीबी, दिव्यांगता या समाज का दबाव? हिमाचल प्रदेश के करसोग की रहने वाली अंजना ठाकुर के सामने हर वह चुनौती थी, जिसे पार कर पाना आसान नहीं था. पहाड़ की बेटी अंजना का हौसला भी पहाड़ों जैसा ही बुलंद था, जिससे उसने हर चुनौती को पार पा लिया. करसोग के पांगना की रहने वाली अंजना हाल ही में बॉटनी की असिस्टेंट प्रोफेसर बनी हैं, लेकिन उनके लिए यह सफर इतना भी आसान नहीं रहा.


करंट की वजह से गंवाना पड़ा था हाथ
अपनी प्रारंभिक शिक्षा पांगना गांव के स्कूल से लेने के बाद अंजना ठाकुर जब साल 2016 में करसोग में बीएससी की पढ़ाई कर रही थी, तब वह बिजली का करंट लगने की वजह से बुरी तरह घायल हो गई. कई महीने तक शिमला के इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज में इलाज चला, लेकिन डॉक्टर को इस इलाज में सफलता नहीं मिली. इसके बाद अंजना ठाकुर को चंडीगढ़ स्थित पीजीआई भर्ती करवाना पड़ा और वहां डॉक्टर ने अंजना का दाहिना हाथ काटने की बात कही. परिवार के लिए यह फैसला मुश्किल था, लेकिन ऐसा करना उनकी मजबूरी हो गई थी. हाथ गंवाने के बाद अंजना भी मानसिक रूप से दबाव में आ गई.


अंजना ठाकुर ने नहीं मानी हार
पहाड़ की बेटी अंजना ठाकुर के लिए यह सबकुछ झकझोर देने वाला था, लेकिन अंजना ने कभी हार मानना नहीं सीखा था. अपना सपना पूरा करने और परिवार को गरीबी से निकालने के लिए अंजना ठाकुर ने अस्पताल में रहते हुए ही बाएं हाथ से लिखना सीखा और अस्पताल से छुट्टी के बाद वापस कॉलेज जाकर पढ़ाई शुरू की. इसके बाद अंजना ठाकुर ने बेहतरीन अंकों से बीएससी की परीक्षा पास की और समाज के हर उस शख्स को जवाब दे दिया, जो अंजना ठाकुर की इस दिव्यांगता पर दया भाव दिखा रहा था. अंजना ने बता दिया कि उसकी दिव्यांगता उसके उज्जवल भविष्य की राह में रोड़ा नहीं बन सकती.


पहले ही प्रयास में पास कर ली परीक्षा
इसके बाद अंजना ठाकुर ने हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में एमएससी बॉटनी में प्रवेश लिया. अंजना ठाकुर के घर-परिवार की आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं थी. ऐसे में बड़े भाई गंगेश कुमार को बहन की पढ़ाई जारी रखने के लिए पेंटर का काम करना पड़ा. घर की आर्थिक स्थिति के ठीक न होने के दबाव के बावजूद अंजना ने यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान बेहतरीन प्रदर्शन किया. अंजना ठाकुर ने पहले ही प्रयास में वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) की कठिन जूनियर रिसर्च फैलोशिप (JRF) परीक्षा भी पास की और अब बॉटनी की असिटेंट प्रोफेसर बनकर वे समाज के लिए प्रेरणास्रोत बनकर उभरी हैं.


पिता की तरह मिला प्रो. श्रीवास्तव का साथ
बॉटनी की असिस्टेंट प्रोफेसर बनी अंजना ठाकुर बताती हैं कि इस सफलता में उनके घर-परिवार और शिक्षकों का भरपूर साथ मिला. इस सबसे बढ़कर उनके लिए प्रो. अजय श्रीवास्तव का साथ रहा. हिमाचल प्रदेश राज्य विकलांगता सलाहकार बोर्ड के विशेषज्ञ सदस्य और उमंग फाउंडेशन के अध्यक्ष प्रो. अजय श्रीवास्तव ने हर मुश्किल घड़ी में अंजना का साथ दिया. यही नहीं, उन्होंने ही अपनी इस बेटी को राह दिखाने का भी काम किया. इससे पहले भी प्रो. श्रीवास्तव ऐसे ही कई दिव्यांग बच्चों का भविष्य संवार चुके हैं.


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