Himachal Pradesh Assembly Election 2022: क्या किसी व्यक्ति के सिर पर लगी टोपी उसकी विचारधारा के बारे में बता सकती है. सुनने में भले ही बात बेबुनियाद से लगे, लेकिन हिमाचल प्रदेश में ऐसा ही होता आया है. यहां व्यक्ति के सिर पर लगी टोपी उसकी विचारधारा के बारे में बताती है. हिमाचल प्रदेश में हरी पट्टी वाली टोपी कांग्रेस, मैरून पट्टी वाली टोपी बीजेपी की पहचान है. इन टोपियों को हिमाचल प्रदेश के अलग-अलग क्षेत्रों से भी जोड़कर देखा जाता है. जहां हरी पट्टी वाली टोपी ऊपरी हिमाचल, तो मैरून पट्टी वाली टोपी निचले हिमाचल की मानी जाती है. हालांकि कुछ जानकार इस बात से इत्तेफाक भी नहीं रखते और इसे केवल लोगों को बांटने वाली राजनीति बताते हैं.


हिमाचल के बड़े नेताओं ने शुरू की परंपरा ?


हिमाचल प्रदेश में भले ही जातिवाद का जहर न घुला हो, लेकिन यहां की राजनीति में क्षेत्रवाद काफी हद तक हावी रहता है. हिमाचल प्रदेश के छह बार के मुख्यमंत्री स्वर्गीय वीरभद्र सिंह हरी पट्टी वाली टोपी लगाते रहे और पूर्व मुख्यमंत्री प्रो. प्रेम कुमार धूमल मैरून पट्टी वाली. धीरे-धीरे इन टोपियों ने कांग्रेस-बीजेपी का रंग ले लिया और इनकी पहचान राजनीतिक दलों की टोपी के तौर पर हो गई. अब प्रदेश भर में टोपी के रंग के आधार पर ही लोग एक-दूसरे की विचारधारा की का अंदाजा लगाते हैं. हालांकि कुछ लोग ऐसे भी हैं, जिनकी विचारधारा अलग और टोपी का रंग अलग होता है.




हिमाचल में खत्म हुई टोपी की राजनीति ?


साल 2017 में जब हिमाचल प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन हुआ और मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने सूबे के मुखिया के तौर पर कमान संभाली, तो वे लगातार यह दावा करते नजर आए कि उन्होंने प्रदेश से टोपी की राजनीति को खत्म कर दिया है. मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर खुद भी अमूमन बिना टोपी के ही नजर आते हैं. उनके कार्यक्रमों में अब पहले की तरह बीजेपी की हर मैरून रंग की टोपी ही नजर नहीं आती बल्कि सम्मान के दौरान उन्हें हरे रंग की टोपी भी दी जाती है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भी हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में प्रचार के दौरान के दावा किया था कि प्रदेश में टोपी की राजनीति खत्म हो चुकी है. अब हरी और मैरून दोनों ही टोपी अब बीजेपी की है. वहीं, हमेशा हिमाचलियत की बात करने वाले कांग्रेस नेता विक्रमादित्य सिंह ने केंद्रीय मंत्री के बयान पर हमला साधते हुए टोपी को बीजेपी-कांग्रेस से हटकर हिमाचल की बताया था.


वीरभद्र सिंह ने किया था मैरून रूम टोपी पहनने से इनकार


सितंबर, 2017 में देश के तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री जगत प्रकाश नड्डा हिमाचल प्रदेश के विभिन्न स्वास्थ्य संस्थानों की नींव रखने शिमला के होटल पीटरहॉफ पहुंचे थे. यहां प्रदेश के उस समय के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के साथ उनकी सरकार में स्वास्थ्य मंत्री कौल सिंह ठाकुर मौजूद थे. कौल सिंह ठाकुर ने हिमाचल प्रदेश की परंपरा के मुताबिक कार्यक्रम शुरू होने से पहले जगत प्रकाश नड्डा को टोपी पहनाई और इसके बाद प्रोटोकॉल के मुताबिक उन्होंने वीरभद्र सिंह को टोपी पहनाना चाहिए. टोपी का रंग मैरून होने की वजह से वीरभद्र सिंह ने यह टोपी पहनने से इनकार कर दिया. हालांकि यह बात भी सच है कि मैरून टोपी रामपुर-बुशहर की भी पहचान रही. वीरभद्र सिंह इस रियासत के राजाओं के वंशज हैं और पहले वे मैरून टोपी पहना करते थे.


हिमाचली टोपी का राजनीतीकरण


हिमाचल प्रदेश की टोपी ने न केवल देश में बल्कि विश्व में अपनी पहचान बनाई है, लेकिन प्रदेश में हिमाचली टोपी राजनीति की भेंट चढ़ती ही नजर आती है. आम जन मानस के मन में आज भी टोपी का रंग विचारधारा को तय करने का काम करता है. भले ही कुछ लोग इस बात से इत्तेफाक न रखते हों, लेकिन हिमाचली टोपी को विचारधारा के साथ क्षेत्र विशेष से जोड़ा जाता रहा है.


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