HP Assembly Election: हिमाचल की पहाड़ियों पर जीत हार की गणित के चर्चे, क्या इस बार बदलेगा रिवाज? जानिए- क्या कहता है इतिहास
Himachal Pradesh Election 2022: अकेले डॉ यशवंत सिंह परमार ही लगातार 14 साल तक CM रहे और 3 बार कांग्रेस की सरकार जीत हासिल कर सता में काबिज रही, लेकिन ये 4 दशक पुरानी बात है.
Himachal Pradesh Assembly Election 2022: हिमाचल प्रदेश के लगभग 42 लाख मतदाताओं ने अपना वोट रिवाज बदलने के लिए डाला है या फिर राज बदलने के लिए मतदान किया है, इसका खुलासा अब 8 दिसंबर के दिन होगा. हिमाचल में 75 फीसदी से ज्यादा मतदान हुआ है. अब प्रदेश के गली मुहल्लों, चौराहों, चौपालों से लेकर दुकानों में जहां गुजरात चुनावों (Gujarat Assembly Elections) के जंग पर चर्चा छिड़ी रहेगी तो वहीं जीत हार का अंकगणित भी चलता रहेगा.
क्या इसबार बदलेगा रिवाज?
सबसे बड़ा सवाल हिमाचल में इस बार यही है कि क्या बीजेपी (BJP) का रिवाज बदलने का नारा सच साबित होगा या फिर कांग्रेस (Congress) का नारा रिवाज नहीं ताज बदलने के लिए मतदाताओं ने अपना मत दिया है. यूं तो हिमाचल प्रदेश में पिछले 37 सालों से यही परंपरा चली आ रही है कि हर पांच साल बाद सत्ता परिवर्तन हो जाता है. अकेले डॉ यशवंत सिंह परमार ही एक ऐसे मुख्यमंत्री हुए हैं जो लगातार 14 साल तक मुख्यमंत्री रहे और तीन बार कांग्रेस की सरकार जीत हासिल कर सता में काबिज रही, लेकिन ये चार दशक पुरानी बात है.
क्या रहा है इतिहास
हिमाचल गठन के बाद 8 मार्च 1952 को सिरमौर जिले से संबंधित डॉ यशवंत सिंह परमार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने और 31 अक्टूबर 1956 तक मुख्यमंत्री के पद पर रहे. इसके बाद प्रदेश में टैरोटोरियल काउंसिल का गठन हुआ जिसके चेयरमैन मंडी के चच्योट जो आज सराज के नाम से है व जहां से मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर विधायक हैं, से जीत हासिल करने वाले ठाकुर कर्म सिंह इसके चेयरमैन बने. 1963 में फिर से प्रदेश में विधानसभा के चुनाव हुए और 1 जुलाई 1963 को फिर से डॉक्टर परमार मुख्यमंत्री बने जो मंडी के नेताओं ठाकुर कर्म सिंह और पंडित सुख राम की आपसी टांग खिंचाई के चलते 1967 व 1972 में फिर मुख्यमंत्री बन गए. डॉ परमार 28 जनवरी 1977 तक मुख्यमंत्री रहे.
सियासत का रहा ये दौर
आज के बदले सियासी माहौल में भले ही सरकार बनाने के लिए 45 या 50 प्लस के दावे चुनावी हवा में गूंज रहे हैं लेकिन प्रदेश की सियासत ने वो दौर भी देखा है जब 8 सीटें जीतने वाली कांग्रेस को अचानक सत्ता में बैठने का मौका मिल गया था. इसे सियासत का खेल ही कहेंगे कि 1977 के चुनाव में कांग्रेस पूरी 68 सीटों पर चुनाव भी नहीं लड़ पाई थी, लेकिन अढाई साल बाद ही माहौल ऐसा बना कि 8 विधायकों वाली इस पार्टी को जनता पार्टी के विधायकों और निर्दलीयों का सपोर्ट मिल गया और विपक्ष में बैठे ठाकुर रामलाल मुख्यमंत्री बन गए.
कब बनी गैर कांग्रेसी सरकार
1977 में जनता पार्टी की लहर ऐसी चली कि पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार हिमाचल में बनी. प्रदेश के सबसे बड़े जिला कांगड़ा से शांता कुमार मुख्यमंत्री बने. 1980 में उनकी सत्ता को अपनों ने ही दलबदल कर तख्ता पलट दिया और शिमला जिला के जुब्बल कोटखाई से जीते ठाकुर राम लाल कांग्रेस की सरकार के मुख्यमंत्री बन गए. चुनाव नहीं हुए मगर दलबदल के सहारे से ही कांग्रेस ने सरकार बना ली. ठाकुर राम लाल ने 14 फरवरी 1980 को मुख्यमंत्री पद संभाला और वह 7 अप्रैल 1983 तक इस पद पर रहे.
वीरभद्र सिंह बने सीएम
राम लाल ठाकुर की जगह अप्रैल 1983 में वीरभद्र सिंह को केंद्र से लाकर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया और 1985 में हिमाचल में फिर विधानसभा के चुनाव हुए और वीरभद्र सिंह के नेतृत्व में सरकार बनी. 1990 में पहली बार जनता दल के साथ गठजोड़ में बीजेपी ने चुनाव जीता व सरकार बनाई और शांता कुमार को दूसरी बार प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया. शांता कुमार की सरकार बाबरी मस्जिद ध्वंस के बाद गिरा दी गई और फिर से चुनाव हुए और वीरभद्र सिंह मुख्यमंत्री बने.
1998 में प्रेम कुमार धूमल की अगुवाई में बीजेपी हिविकां सरकार बनी जो पूरे पांच साल चली मगर इससे पहले एक नाटकीय घटनाक्रम में वीरभद्र सिंह ने कांग्रेस को बहुमत में न होते हुए भी रमेश ध्वाला आजाद उम्मीदवार को अपने साथ मिलाया और सरकार बना ली, जो महज 28 दिन तक ही चल पाई थी. 2003 में फिर से कांग्रेस सत्ता में आई व वीरभद्र सिंह मुख्यमंत्री बने.
प्रेम कुमार धूमल हारे चुनाव
2007 में पहली बार प्रदेश में विशुद्ध बीजेपी की सरकार बनी और प्रेम कुमार धूमल मुख्यमंत्री बने. 2012 में फिर से प्रदेश में कांग्रेस सता में आई और वीरभद्र सिंह छठीं बार मुख्यमंत्री बने. 2017 में फिर सत्ता परिवर्तन हुआ और बीजेपी सत्ता में आई. जय राम ठाकुर ने मुख्यमंत्री पद संभाला क्योंकि बीजेपी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार प्रेम कुमार धूमल सुजानपुर से अपना चुनाव हार गए.
विधानसभा का यह चुनाव रिवाज बदलने या ताज बदलने के नाम पर हुआ है. इसके लिए 8 दिसंबर को EVM के खुलने का इंतजार करना होगा. परंपरा टूटेगी या बनी रहेगी, इसी सवाल को लेकर अब चर्चाएं रहेंगी?