Himachal Pradesh Assembly Election 2022: पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश अपनी विविध भौगोलिक परिस्थिति के लिए जाना जाता है. साथ ही हिमाचल प्रदेश की पहचान अलग-अलग रिकॉर्ड स्थापित करने को लेकर भी है. ऐसा ही एक विविध रिकॉर्ड यह है कि आज तक हिमाचल प्रदेश विधानसभा )Himachal Pradesh Legislative Assembly) में कभी मुस्लिम (Muslim) विधायक नहीं बना है. हिमाचल प्रदेश की 97 फीसदी आबादी हिंदू (Hindu) है. यहां चुनाव के दौरान हिंदू-मुसलमान का मुद्दा भी कभी देखने को नहीं मिला.

 

साल 2011 की जनगणना के अनुसार हिमाचल प्रदेश में 2.1 फीसदी मुस्लिम रहते हैं, लेकिन बावजूद इसके आज तक प्रदेश विधानसभा को मुस्लिम विधायक नहीं मिल सका है. एक अनूठी बात यह भी है कि हिमाचल प्रदेश के प्रमुख राजनीतिक दलों के टिकट आवंटन में भी मुस्लिम प्रत्याशियों के नाम नजर नहीं आते. साल 2022 के विधानसभा चुनाव में भी केवल एक मुस्लिम प्रत्याशी चुनाव लड़ रहा है. नाहन विधानसभा क्षेत्र से रमजान आजाद प्रत्याशी के तौर पर चुनावी मैदान में हैं. इस विधानसभा क्षेत्र में भी मुकाबला कांग्रेस-बीजेपी के बीच ही है. ऐसे में इस बार भी हिमाचल प्रदेश विधानसभा में कोई मुस्लिम विधायक जीतकर पहुंचे, इसकी संभावना कम ही है.

 

चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे हैं दो सिख विधायक

दूसरी तरफ हिमाचल प्रदेश की आबादी में केवल 1.6 फीसदी हिस्सा रखने वाले सिख समुदाय के दो विधायक आज तक जीतकर विधानसभा पहुंचे हैं. इसमें पहला नाम आता है नालागढ़ से तीन बार लगातार विधायक रहे हरि नारायण सैनी का. हरि नारायण सैनी साल 1998 से साल 2003 तक धूमल मंत्रिमंडल का महत्वपूर्ण हिस्सा भी रहे. इसके अलावा साल 2017 के विधानसभा चुनाव में दून विधानसभा क्षेत्र से परमजीत सिंह 'पम्मी' जीतकर विधानसभा पहुंचे. दोनों ही विधायक भारतीय जनता पार्टी की टिकट पर जीतकर विधानसभा पहुंचे.

 

प्रतिनिधित्व न मिलने की क्या है वजह?

जानकार मानते हैं कि हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में मुस्लिम नुमाइंदे को प्रतिनिधित्व न मिलने की बड़ी वजह मुस्लिम आबादी का अलग-अलग इलाकों में फैलाव है. आबादी के अलग-अलग इलाकों में बसे होने की वजह से प्रतिनिधित्व नहीं मिल सका है. इसके अलावा हिमाचल प्रदेश की राजनीति में अब तक किसी बड़े मुस्लिम नेता का उभार भी नहीं हुआ है. इससे हटकर कुल आबादी कम होने के बावजूद सिख वोटरों का ऊना, दून, सोलन और पांवटा साहिब के साथ आसपास के इलाकों में प्रभाव है. इसी प्रभाव के चलते सिख विधायकों को विधानसभा की दहलीज तक पहुंचने का मौका मिला है.