Himachal Pradesh Assembly Zero Hour: हिमाचल प्रदेश विधानसभा का शीतकालीन सत्र धर्मशाला में बुधवार से शुरू होने जा रहा है. इस सत्र में शून्य काल भी होगा. यह पहली बार है, जब हिमाचल प्रदेश विधानसभा में शून्य काल होने जा रहा है. इससे पहले मानसून सत्र के दौरान हिमाचल प्रदेश विधानसभा अध्यक्ष कुलदीप सिंह पठानिया ने शून्य काल शुरू करने की बात कही थी. अब शीतकालीन सत्र में इसे मंजूरी मिल गई है. प्रश्न काल के बाद सदस्यों को 30 मिनट का वक्त दिया जाएगा, जिसमें वे जनहित से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दे सदन के समक्ष उठा सकेंगे.
एक दिन में 10 विषयों को ही मिलेगी अनुमति
शून्य काल प्रश्न काल खत्म होने और दिन के कार्य के लिए सूचीबद्ध किए गए मदों को लेने के बीच के अंतराल में होगा. सत्र के दौरान प्रत्येक कार्य दिवस में प्रश्न काल के बाद 30 मिनट का शून्य काल किया जाएगा. शून्य काल के दौरान जनहित मामले उठाने के लिए सदस्यों को बैठक के शुरू होने से डेढ़ घंटा पहले विधानसभा अध्यक्ष या विधानसभा सचिव को लिखित या ऑनलाइन माध्यम से सूचित करना होगा. सूचना देने के बाद ही सदस्य शून्य काल में कोई विषय उठा सकेंगे. एक दिन के लिए एक सदस्य एक ही प्रस्ताव दे सकेगा. निश्चित समय अवधि के बाद मिलने वाले नोटिस स्वत: समाप्त माने जाएंगे
संबंधित विषय पर ही रखनी होगी बात
विधानसभा अध्यक्ष जिन विषयों को उठाने की अनुमति देंगे, इस विषय पर सदस्य को अपनी बात रखनी होगी. विधानसभा सचिवालय को मिलने वाले विषय को हिमाचल प्रदेश विधानसभा सचिवालय की ओर से बैलट की प्राथमिकता के मुताबिक ही हर दिन 10 विषयों को उठाने की अनुमति दी जाएगी. इसे भी विधानसभा अध्यक्ष ही तय करेंगे. विधानसभा अध्यक्ष की अनुमति से जो विषय बैलट की प्राथमिकता में आए होंगे, उन्हीं विषयों को सदस्य उठा सकेंगे. शून्य काल में सदस्यों को अपनी बात दो से तीन मिनट में रखनी होगी. इसके बाद संबंधित मंत्री की ओर से उत्तर मिलने के बाद अनुपूरक चर्चा नहीं होगी.
यह हैं शून्य काल के नियम
1. शून्य काल में ऐसे विषयों का उल्लेख होगा, जो मुख्य रूप से प्रदेश सरकार के क्षेत्राधिकार में आते हों.
2. किसी मामले की गंभीरता, महत्व और तात्कालिकता विशेष उल्लेख के दौरान उसे उठाने के लिए मुख्य मानदंड होने चाहिए.
3. शून्य काल में केवल उन विषयों को उठाने की अनुमति दी जाएगी, जो पिछले सत्र की बैठक के समापन के बाद और दिन की बैठक शुरू होने से पहले की अवधि के बीच का हो.
4. सदस्य कोई मामला उठाने के लिए तभी नोटिस दे सकता है, जब प्रासंगिक समय पर उसके पास सरकार का ध्यान उस मुद्दे की ओर आकर्षित करने के लिए कोई अन्य विकल्प उपलब्ध न हो.
5. नोटिस 50 शब्दों से अधिक नहीं होना चाहिए.
6. उसमें ऐसे विषय का उल्लेख नहीं होगा, जिस पर उसी सत्र में चर्चा हो चुकी हो या सत्र के दौरान अन्य नियमों में चर्चा होने की संभावना हो.
7. एक नोटिस में एक से अधिक विभागों के मुद्दों को नहीं उठाया जाएगा.
8. विषय में तर्क, अनुमान, व्यंग्यात्मक अभिव्यक्तियां, आरोप, व्यक्ति विशेष या मानहानि, सत्र की कार्यवाही में रूकावट, न्यायालय के विचाराधीन और कथन नहीं होंगे.
9. इसमें विधान सभा सचिवालय/विधान सभा समिति/अध्यक्ष के क्षेत्राधिकार की कार्यवाही का उल्लेख नहीं होगा.
10. यदि संबंधित मंत्री के पास सूचना उपलब्ध है, तो वह उठाए गए मामले पर जवाब दे सकते हैं. अन्यथा मंत्री की ओर से जल्द से जल्द जवाब सदस्य को उपलब्ध करवा दिया जाएगा.
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