Himachal Pradesh Assembly: धर्मशाला स्थित तपोवन में हिमाचल प्रदेश विधानसभा का शीतकालीन सत्र खत्म हो गया. शीतकालीन सत्र के तीसरे दिन सदन में इमरजेंसी की गूंज सुनने को मिली. साल 1975 में देश में लगी इमरजेंसी के मुद्दे पर पक्ष-विपक्ष के सदस्य आमने-सामने आ गए. हिमाचल प्रदेश विधानसभा में सत्तापक्ष के विधायक संजय रतन ने हिमाचल प्रदेश में स्वतंत्रता प्रहरियों के साथ इमरजेंसी के दौरान जेल में डाले गए नेताओं को पेंशन दिए जाने पर सवाल खड़े किए.


बता दें कि बीजपी सरकार ने इमरजेंसी के दौरान जेल गए नेताओं के लिए लोकतंत्र प्रहरी सम्मान राशि योजना के शुरुआत की है. इसके तहत इमरजेंसी के दौरान जेल गए नेताओं को 11 हजार रुपए की मासिक पेंशन दी जाती है.


पेंशन बंद करने की बात कही


संजय रतन ने कहा कि पूर्व सरकार स्वतंत्रता सेनानियों की हितैषी होने की बात करती रही, लेकिन बीते पांच साल में बीजेपी सरकार स्वतंत्रता कल्याण बोर्ड का गठन तक नहीं कर सकी. संजय रतन ने अपनी सरकार से मांग की है कि सरकार इमरजेंसी के दौरान जेल गए नेताओं की पेंशन को बंद करे. बीते पांच साल में बीजेपी की सरकार के दबाव में चलती रही. उन्होंने कहा कि जयराम सरकार को पलटू राम सरकार के नाम से जाना गया. उन्होंने सदन में पूर्व सरकार के दौरान हुए भर्ती घोटाले का भी मुद्दा उठाया. गौरतलब है कि संजय रतन के पिता सुशील चंद रतन खुद स्वतंत्रता सेनानी रहे हैं.


महिलाओं से सीमेंट की बोरी उठवाने का मुद्दा


ज्वालामुखी से विधायक संजय रतन ने कहा कि जनता ने बीजेपी को पांच साल के कामों का नतीजा दिखाया. एमटीएस में भर्ती के लिए महिलाओं और पुरुषों को सिर पर सीमेंट की बोरी रखकर भगाया गया. आखिरी के छह महीने में सरकार ने 900 से ज्यादा संस्थान खोल दिए. साल 2017 से लेकर साल 2021 तक आखिर सरकार क्या करती रही. आखिरी साल में ही सरकार को संस्थान खोलने की याद क्यों आई.


इस पर विपक्ष के सदस्य और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष विपिन परमार ने कहा कि कांग्रेस की सरकार ने देश की स्वतंत्रता के लिए योगदान देने वाले स्वतंत्रता सेनानी को भुलाने का काम किया. उन्होंने पूछा कि आखिर किन वजहों से सुभाष चंद्र बोस को भुलाया गया. परमार ने पूछा कि क्यों 75 साल तक देश में उनकी प्रतिमा तक नहीं लगी. उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता सेनानियों को सम्मान देने के लिए बीजेपी सरकार ने दिल्ली में सुभाष चंद्र बोस की आदम कद की प्रतिमा स्थापित की.


काले कानून के विरोध में सड़कों पर उतरे थे नेता


परमार ने कहा कि इमरजेंसी के दौरान लोगों पर काला कानून थोपा गया. इसके विरोध में ही नेता सड़कों पर उतरे. उन्होंने पूछा कि आज ऐसा कानून लागू कर दिया जाए, तो क्या नेता उसके खिलाफ आवाज नहीं करेंगे. हिमाचल प्रदेश विधानसभा के शीतकालीन सत्र के आखिरी दिन पक्ष और विपक्ष के विधायक के बीच अलग-अलग मुद्दों को लेकर गहमागहमी देखने के लिए मिलती रही.


Republic Day 2023: गणतंत्र दिवस पर शिमला में होगा राज्य स्तरीय समारोह, परेड में जम्मू-कश्मीर राइफल्स भी लेगी भाग