Himachal News: किन्नौर में आज भी इस्तेमाल होती है वजन मापने की ये पुरानी तकनीक, जानिए- क्या है इसका इतिहास
Batti Takli Weighing Technique: हिमाचल के किन्नौर में आज भी वजन मापने की सालों पुरानी तकनीक बट्टी तकली का इस्तेमाल किया जाता है. यहां घूमने आने वाले पर्यटक इसके बारे में जानने को उत्सुक रहते हैं.
Kinnaur News: हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) भले ही विकास के पथ पर तेजी से आगे बढ़ रहा हो, लेकिन यहां सालों पुरानी परंपरा और विरासत को जीवंत रखा जाता है. प्रदेश के जनजातीय जिला किन्नौर (Tribal District Kinnaur) में आज भी वजन मापने के लिए सालों पुरानी तकनीक का इस्तेमाल होता है. किन्नौर में इसे पट्टी तकली या पोरे भी कहा जाता है. सैकड़ों साल पहले जब व्यापारी एक दूसरे को सामान बेचा करते थे, उस समय इस बट्टी तकली से वजन मापने का काम होता था.
खास बात यह है कि आज सैकड़ों साल बीत जाने के बाद भी वजन मापने की यह तकनीक उतनी ही कारगर है. ऐसा नहीं है कि किन्नौर में वजन मापने के लिए केवल यही तकनीक इस्तेमाल होती है. यहां आधुनिक उपकरणों के जरिए भी वजन मापा जाता है.
कैसी होती है बट्टी तकली की बनावट?
बट्टी तकली या पोरे का ऊपरी हिस्सा लकड़ी का बना होता है. निचले हिस्से में समान रखने के लिए तिरपाल और चमड़े का इस्तेमाल होता है. बट्टी तकली में ऊपर की तरफ पत्थर का बट्टा लगाया जाता है. इसके बाद बट्टी तकली में सामान डालकर उसका वजन आसानी से मापा जा सकता है. बट्टी तकली में वजन सेर में मापा जाता है. एक सेर 933 ग्राम के बराबर होता है.
पर्यटक बट्टी तकली के बारे में जानने को रहते हैं उत्सुक
आधुनिकता के इस दौर में जहां वजन मापने के लिए डीजिटल मशीनों का इस्तेमाल हो रहा है. तो वहीं, इस समय कुछ लोग विरासत को बचाने के लिए आज भी बट्टा तकली का इस्तेमाल करते हैं. किन्नौर के छितकुल के रहने वाले मुकेश नेगी ने इसे संभाल कर रखा है. वह आज भी इसे प्रयोग में लाते हैं. देश-विदेश से किन्नौर घूमने आने वाले पर्यटक यहां आकर इस खास तकनीक के बारे में जानने के लिए खासे उत्साहित रहते हैं. मुकेश नेगी चाहते हैं कि आधुनिकता के साथ लोग पुरानी चीजों को न भूलें. वह चाहते हैं कि लोग आधुनिक दौर में विरासत के साथ ही आगे बढ़ें.
तिब्बत के व्यापारी भारत में व्यापार के दौरान करते थे बट्टी तकली का इस्तेमाल
सालों पहले जब तिब्बत के व्यापारी भारत व्यापार करने के लिए आते थे, तो वे वजन मापने के लिए इसी खास तकनीक का इस्तेमाल करते थे. विश्व के साथ देश में तेजी से हो रहे बदलाव के चलते यह तकनीक गायब हो रही है. किन्नौर में भी कुछ ही लोग ऐसे हैं, जिनके पास बट्टी तकली है. जरूरत है कि आधुनिकता के इस युग में विकास के साथ विरासत को भी साथ लेकर चला जाए.
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