Himachal Pradesh Politics: राजनीति में कहते हैं कि ना तो कोई किसी का दोस्त होता है और न ही कोई किसी का दुश्मन होता है. राजनीति में कुछ भी स्थाई नहीं होता, लेकिन कार्यकर्ताओं के लिए यह सब मायने रखता है. अपने नेताओं के बचाव के साथ सड़कों पर भिड़ जाने वाले कार्यकर्ता के लिए पार्टी का विचार और नेता की जुबान दोनों का ही महत्व है. अपने नेताओं से भी ज्यादा पार्टी के लिए समर्पित कार्यकर्ता दिन-रात पार्टी को आगे बढ़ाने के लिए काम करते हैं.
हिमाचल प्रदेश में यही कार्यकर्ता अब पार्टी के भविष्य को लेकर चिंता में आ गए हैं. भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता चिंता में हैं, क्योंकि बड़ी संख्या में कांग्रेस के नेताओं को बीजेपी में शामिल करवा लिया गया है. कल तक खुलकर जिन नेताओं के मुखालफत की, आज उन्हीं के समर्थन में नारे लगाने पड़ रहे हैं. शनिवार (23 मार्च) को ही कांग्रेस से बगावत करने वाले सुधीर शर्मा, राजिंदर राणा, इंद्र दत्त लखनपाल, रवि ठाकुर, देवेंद्र कुमार भुट्टो और चैतन्य शर्मा कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हो गए. इसका असर सिर्फ इन्हीं छह विधानसभा क्षेत्र में नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश पर पड़ रहा है.
'भगवाधारी' हो गए कांग्रेस के बागी
यह पहली बार नहीं है जब कांग्रेस छोड़कर नेता बीजेपी में आए हों. इससे पहले भी साल 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले बड़ी संख्या में नेता कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए थे. भारतीय जनता पार्टी के जिस नए नेता हर्ष महाजन ने कांग्रेस का खेल बिगाड़ा, वह भी मूल रूप से कांग्रेस के ही सिपाही रहे. साल 2022 में कांग्रेस और बीजेपी में शामिल हुए हर्ष महाजन राज्यसभा सांसद बन चुके हैं. हर्ष महाजन को बीजेपी ने प्रदेश कार्यसमिति का सदस्य भी बनाया है.
पहले भी कांग्रेस नेता बीजेपी में हुए शामिल
इससे पहले हिमाचल कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष रहे पवन काजल भी कांग्रेस छोड़ बीजेपी में आए और बीजेपी की टिकट पर कांगड़ा से विधायक बन गए. अनिल शर्मा ने भी साल 2017 के विधानसभा के चुनाव से पहले कांग्रेस छोड़ बीजेपी का दामन थामा और तत्कालीन जयराम सरकार में मंत्री भी रहे. खास बात है कि तत्कालीन वीरभद्र सरकार के दौरान भी अनिल शर्मा ऊर्जा मंत्री रहे और जयराम सरकार के दौरान भी उन्हें इसी विभाग का जिम्मा सौंपा गया. अनिल शर्मा के भारतीय जनता पार्टी में रहते हुए ही उनके बेटे आश्रय शर्मा ने साल 2019 में कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ा.
हालांकि, आश्रय शर्मा के चुनाव में जीत तो नहीं हुई, लेकिन पूरे चुनाव के दौरान अनिल शर्मा बीजेपी का प्रचार करने के लिए ग्राउंड पर नहीं उतरे. साल 2019 में अनिल शर्मा ने ऊर्जा मंत्री के तौर पर इस्तीफा दिया, लेकिन वह बीजेपी के विधायक बने रहे. बीजेपी विधायक रहते हुए उन्होंने साल 2019 से लेकर साल 2022 तक लगातार बीजेपी के खिलाफ कई बार बयान दिए, लेकिन फिर अंत में साल 2022 के विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी की टिकट पर ही चुनाव लड़कर जीत हासिल की.
स्वागत में 200 कार्यकर्ता भी नहीं पहुंचे
शनिवार देर रात भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए सभी नौ नेता शिमला पहुंचे. राजधानी में नेताओं के जोर-शोर से स्वागत का कार्यक्रम रखा गया था. इसके लिए खास तौर पर बीजेपी शिमला जिला की ड्यूटी लगाई गई थी. कार्यकर्ताओं को शिमला के होटल पीटर हॉफ में जुटने के लिए कहा गया, लेकिन स्वागत के लिए बीजेपी के 200 कार्यकर्ता भी नहीं पहुंचे. शिमला के होटल पीटर हॉफ के बाहर कार्यकर्ता अपनी ही पार्टी के इस फैसले की आलोचना करते हुए भी नजर आए. कार्यकर्ताओं का मत था कि 'जिन नेताओं के खिलाफ पहले मोर्चा खोल रखा. अब उन्हीं के पक्ष में बात करना मुश्किल हो जाएगा. इससे जनता के बीच भी बीजेपी की गलत छवि जा रही है.'
कार्यकर्ताओं ने आगे कहा कि 'कार्यकर्ताओं में उत्साह होता, तो पूरा मैदान पहले के कई कार्यक्रमों की तरह ही भरा रहता. बहरहाल, पार्टी का फैसला है तो साथ तो देना ही पड़ेगा'. आने वाले वक्त में भी पहाड़ी प्रदेश की सियासत में कई नए मोड़ देखने को मिलेंगे. यह देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस से आए नए नेताओं को BJP काडर स्वीकार करेगा या नहीं.