Himachal Pradesh Budhi Diwali: हिमाचल प्रदेश के सिरमौर, कुल्लू, मंडी और शिमला के ऊपरी क्षेत्रों में दीपावली के एक माह बाद बूढ़ी दीपावली (Budhi Diwali) मनाई जाती है. इन इलाकों में आज भी सदियों पुरानी अनूठी परंपरा का निर्वहन हो रहा है. यहां के अधिकांश गांवों में बूढ़ी दीपावली मनाई जाती है. सिरमौर व शिमला (Shimla) में दीपावली 14 वर्ष का वनवास पूरा होने के बाद सीताजी बहु बनकर घर आई थीं तो ग्रामीण इलाकों में दीपावली मनाई थी. तब महालक्ष्मी के रूप में उनका अयोध्या में बूढ़ी महिलाओं ने जोरदार स्वागत किया था.


इसलिए मनाई जाती है बूढ़ी दिवाली


इसके एक माह बाद अमावस्या के दिन बहुओं ने बूढ़ी महिलाओं को भी वही मान-सम्मान वापस दिया. उन्होंने सास की आरती उतारी फिर राम और सीता को जयमाला पहनाई. उसी याद में बूढ़ी दीपावली भी मनाई जाती है. बूढ़ी दीवाली के दौरान रात में मशाल जलाई जाती है. इसे सुबह तक जलाए रखा जाता है. इन्हें स्थानीय भाषा में 'डाव' कहा जाता है. रात भर लोक वाद्ययंत्रों की थाप पर नाटियों का दौर चलता रहता है.


इस दिना होती है दो गांवों के लोगों के बीच लड़ाई


मंडी व कुल्लू के इलाकों में मशालें व अश्लील जुमलों से भूत-पिशाच भगाए जाते है. इसमें अश्लील जुमले कसते हुए ढोल नगाड़ों की थाप पर नृत्य किया और पुरानी परंपरा का निर्वहन किया जाता है. बूढ़ी दीवाली में दो गांवों के लोगों के बीच लड़ाई होती है. दोनों गांवों के लोग मशालों से एक-दूसरे पर वार करते हैं. पहाड़ों में ये जश्न 2 से 4 दिन तक चलता है. स्थानीय लोगों के अनुसार, इस साल का उत्सव ट्रांस-गिरि क्षेत्र में हट्टी समुदाय के लिए और भी खास है क्योंकि इसने आदिवासी का दर्जा प्राप्त करने के लिए 55 साल पुरानी लड़ाई जीत ली है. प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एक संविधान संशोधन विधेयक को मंजूरी दी गई. हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले के ट्रांस-गिरि क्षेत्र में रहने वाले हट्टी समुदाय को आदिवासी का दर्जा मिला


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