Himachal Pradesh News: भारतीय राजनीति और परिवारवाद का रिश्ता अब अटूट-सा हो चुका है. जहां राजनीति होती है, वहां परिवारवाद की एंट्री हो ही जाती है. हिमाचल प्रदेश में भी परिवारवाद को लेकर नए सिरे से चर्चा शुरू हुई है. चाय की दुकान से लेकर सोशल मीडिया तक परिवारवाद को लेकर लोग अपने-अपने तर्क दे रहे हैं. यह चर्चा हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू की धर्मपत्नी कमलेश ठाकुर की चुनावी राजनीति में एंट्री के साथ शुरू हुई है.


CM सुक्खू की धर्मपत्नी लड़ रही उपचुनाव


कमलेश ठाकुर को कांग्रेस आलाकमान ने देहरा विधानसभा क्षेत्र के उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर चुनावी रण में उतार दिया है. कमलेश ठाकुर का यह पहला चुनाव है. इससे पहले उन्होंने कभी चुनाव नहीं लड़ा. कांग्रेस की कमलेश ठाकुर का मुकाबला भारतीय जनता पार्टी के होशियार सिंह के साथ है. इन सब के बीच जानते हैं कि हिमाचल की राजनीति में दोनों दलों पर ही परिवारवाद कितना ज्यादा हावी है.


पहले भी मुख्यमंत्री पर हावी रहा है परिवारवाद


राज्य में परिवारवाद को लेकर छिड़ी चर्चा में सबसे पहले बात हिमाचल प्रदेश के पूर्व में रहे सभी मुख्यमंत्री की करते हैं. हिमाचल में अब तक कुल सात मुख्यमंत्री रहे हैं. इनमें से पांच के परिवार के सदस्य राजनीति में सक्रिय रहे और आज भी हैं. हिमाचल प्रदेश के निर्माता और पहले मुख्यमंत्री डॉ. यशवंत सिंह परमार के बेटे कुश परमार विधानसभा चुनाव जीत कर सदन में पहुंचे थे. पूर्व मुख्यमंत्री ठाकुर राम लाल के पोते रोहित ठाकुर कांग्रेस सरकार में शिक्षा मंत्री हैं. पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के बेटे विक्रमादित्य सिंह भी मौजूदा सरकार में लोक निर्माण मंत्री हैं.


प्रो. धूमल के बेटे हैं अनुराग ठाकुर 


पूर्व मुख्यमंत्री प्रो. प्रेम कुमार धूमल के बेटे अनुराग ठाकुर केंद्रीय कैबिनेट मंत्री रहे हैं और अब पांचवीं बार लोकसभा चुनाव जीते हैं. कद्दावर कांग्रेस नेता वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह सांसद रही हैं और मौजूदा वक्त में हिमाचल कांग्रेस के अध्यक्ष भी हैं. इस तरह सत्ता के शिखर पर रहे नेताओं के वंश से अभी भी राजनेता सक्रिय हैं. पूर्व में मुख्यमंत्री रहे शांता कुमार और जयराम ठाकुर के परिवार से कोई भी सक्रिय राजनीति में नहीं आया.


शांता कुमार पर भी था बड़ा दबाव


शांता कुमार के मुख्यमंत्री रहते हुए उन पर भी अपनी धर्मपत्नी और बेटे को चुनाव लड़ने का भारी दबाव था. इस दबाव को शांत कुमार ने किसी भी सूरत में स्वीकार नहीं किया. आदर्श राजनीति करने के लिए पहचान रखने वाले शांता कुमार ने मुख्यमंत्री रहते हुए अपने परिवार से भी इस बारे में चर्चा की. उनकी धर्मपत्नी संतोष शैलजा ने भी चुनावी राजनीति में आने से साफ इनकार कर दिया था. शांता कुमार खुद भी ऐसा नहीं चाहते थे और उनके परिवार के लोग भी राजनीति में अपनी कोई भूमिका नहीं निभाना चाहते थे.


कांग्रेस में परिवारवाद...


इसके अलावा हिमाचल में कई नेताओं के बेटे राजनीति में खूब सक्रिय हैं. कांग्रेस के प्रभावशाली राजनेता रहे जीएस बाली के बेटे आरएस बाली इस समय कैबिनेट रैंक वाले नेता हैं. सिरमौर के बड़े नेता रहे गुमान सिंह चौहान के बेटे हर्षवर्धन चौहान उद्योग मंत्री हैं. सिरमौर के ही कांग्रेस नेता डॉ. प्रेम सिंह के बेटे विनय कुमार विधानसभा उपाध्यक्ष हैं. कृषि मंत्री चंद्र कुमार के बेटे नीरज भारती शिक्षा विभाग के सीपीएस रहे हैं. चौधरी लज्जा राम के बेटे राम कुमार चौधरी मौजूदा सरकार में सीपीएस हैं. पूर्व कैबिनेट मंत्री सुजान सिंह पठानिया के बेटे भवानी पठानिया को भी मौजूदा सरकार में कैबिनेट रैंक हासिल है.


विधायक का बेटा आगे चलकर बना विधायक 


पूर्व कैबिनेट मंत्री पंडित संत राम के बेटे सुधीर शर्मा वीरभद्र सिंह सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे. अब कांग्रेस छोड़ने के बाद सुधीर शर्मा भाजपा के विधायक हैं. पूर्व विधायक मिलखी राम गोमा के बेटे यादविंदर गोमा सुखविंदर सरकार में खेल मंत्री हैं. इसके अलावा कौल सिंह ठाकुर की बेटी चंपा ठाकुर विधानसभा चुनाव लड़ चुकी हैं. उप मुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री की बेटी डॉ. आस्था अग्निहोत्री की भी चुनावी राजनीति में आने की चर्चा रही. उनके गगरेट उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी होने की चर्चा थी, लेकिन बाद में ऐसा नहीं हुआ. हालांकि डॉ. आस्था अपने पिता मुकेश अग्निहोत्री के चुनावी प्रचार में अग्रणी भूमिका में नजर आती हैं.


'परिवारवाद की विरोधी भाजपा' भी अछूती नहीं


हमेशा ही परिवारवाद को लेकर मुखर नजर आने वाली भारतीय जनता पार्टी में भी खूब परिवारवाद चलता है. पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के बेटे अनुराग ठाकुर ने तो राष्ट्रीय राजनीति में भी नाम कमाया है. वहीं, भाजपा के दिग्गज नेता ठाकुर जगदेव चंद के बेेटे नरेंद्र ठाकुर विधायक रहे हैं. पूर्व मंत्री नरेंद्र बरागटा के बेटे चेतन बरागटा विधानसभा चुनाव लड़े हैं. पूर्व मंत्री महेंद्र ठाकुर के बेटे ने विधानसभा चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए. महेंद्र ठाकुर की बेटी वंदना गुलेरिया भी सक्रिय राजनीति में हैं. भाजपा के प्रभावशाली नेता रहे आई.डी. धीमान के बेटे डॉ. अनिल धीमान विधायक रहे हैं.


पंडित सुखराम की तीसरी पीढ़ी भी राजनीति में सक्रिय


कांग्रेस के दिग्गज राजनेता पंडित सुखराम केंद्र में मंत्री रहे. उनके बेटे अनिल शर्मा भाजपा के साथ कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे. इस समय वे भाजपा में हैं और मंडी सदर सीट से विधायक हैं. पंडित सुखराम के पोते और अनिल शर्मा के बेटे आश्रय शर्मा भी लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं. आने वाले समय के लिए खुद को राजनीति में साबित करने के लिए सक्रिय हैं. वे राजनीति में तीसरी पीढ़ी हैं. कुल्लू से भाजपा नेता रहे ठाकुर कुंज लाल के बेटे गोविंद ठाकुर भाजपा सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे हैं. भाजपा के राज्यसभा सांसद हर्ष महाजन के पिता कांग्रेस सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे हैं. हर्ष महाजन खुद भी कांग्रेस टिकट पर विधानसभा पहुंच चुके हैं.


राजनीति से परिवारवाद हटाना करना दूर की कौड़ी


कुल-मिलाकर कांग्रेस के साथ भारतीय जनता पार्टी में भी खूब परिवारवाद है. हिमाचल प्रदेश विधानसभा में कई ऐसे विधायक हैं, जिनके माता और पिता राजनीति में रहे. इसके अलावा कांग्रेस और भाजपा के प्रभावशाली नेताओं के परिवार के लोगों को संगठन में भी प्रभावशाली नियुक्ति ही मिलती है. हालांकि इस सबके बीच भी असल ताकत जनता के हाथ में ही होती है. लोकतंत्र में जनता ही जनार्दन है. जनता के पास ही यह तय करने की ताकत है कि किसे जिताकर अपना प्रतिनिधि बनाना है और किस घर पर बिठाना है.


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