Himachal Pradesh Latest News: हिमाचल प्रदेश कांग्रेस ने विधानसभा अध्यक्ष कुलदीप सिंह पठानिया के समक्ष एक नई याचिका दायर की है, जिसमें उन तीन निर्दलीय विधायकों के खिलाफ दलबदल विरोधी कानून के तहत कार्रवाई की मांग की गई है, जिन्होंने राज्य विधानसभा से इस्तीफा दे दिया था. पठानिया के पास दायर एक नई याचिका में कांग्रेस विधायकों- जगत सिंह नेगी और हरीश जनार्था ने दलील दी कि इन विधायकों के इस्तीफे स्वीकार न होने के बावजूद इन्होंने भारतीय जनता पार्टी का दामन थामा और ऐसा करना दल-बदल निरोक कानून के तहत कार्रवाई के योग्य है.
इस बीच हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने बृहस्पतिवार को तीन बागी निर्दलीय विधायकों के इस्तीफे स्वीकार करने के निर्देश देने संबंधी अर्जी पर विचार किया और मामले की सुनवाई 30 अप्रैल तक के लिए स्थगित कर दी. तीन निर्दलीय विधायकों- होशियार सिंह, आशीष शर्मा और केएल ठाकुर ने 27 फरवरी को राज्यसभा चुनाव में बीजेपी उम्मीदवार हर्ष महाजन के पक्ष में मतदान किया था. इन विधायकों ने 22 मार्च को विधानसभा से इस्तीफा दे दिया था और अगले दिन बीजेपी में शामिल हो गए थे.
'किसी भी पार्टी में शामिल नहीं हो सकते निर्दलीय विधायक'
जगत सिंह नेगी ने गुरुवार को कहा, ‘‘निर्दलीय विधायक किसी भी पार्टी में शामिल नहीं हो सकते हैं और यदि वे ऐसा करते हैं तो वे दल-बदल निरोधक कानून के तहत कार्रवाई के लिए उत्तरदायी हैं और हमने अध्यक्ष से ऐसी कार्रवाई करने का आग्रह किया है.’’ अध्यक्ष ने बताया, ‘‘कांग्रेस नेताओं की नई याचिका पर प्रक्रिया शुरू हो गई है और तीन निर्दलीय विधायकों को याचिका की प्रति के साथ नोटिस जारी किया गया है और चार मई तक जवाब देने को कहा गया है.’’
इस बीच विधायकों की ओर से पेश महाधिवक्ता अनूप रतन ने कहा कि उनके मुवक्किलों की दलीलें आज पूरी हो गईं और अध्यक्ष के वकील अगली सुनवाई पर अपनी दलील पेश करेंगे. विधानसभा अध्यक्ष ने पहले इन विधायकों को ‘कारण बताओ नोटिस’ जारी किए थे और 10 अप्रैल तक उनसे स्पष्टीकरण मांगा था. याचिकाकर्ताओं का कहना है कि उन्होंने स्वेच्छा से इस्तीफा दिया है और उनका इस्तीफा तुरंत स्वीकार किया जाना चाहिए था.
विधायकों ने किया था 10 अप्रैल को हाई कोर्ट का रुख
मंत्रियों सहित 10 कांग्रेस विधायकों की ओर से दायर शिकायत के अनुसार, विधायकों ने दबाव में इस्तीफा दिया था और परिस्थितियों की जांच की मांग की थी. हालांकि, तीनों विधायकों ने 10 अप्रैल को हाई कोर्ट का रुख किया, जिसके बाद अध्यक्ष ने कहा कि मामला अदालत में लंबित होने के कारण इसपर फैसला आने तक कोई निर्णय नहीं लिया जा सकता है. याचिकाकर्ताओं का कहना है कि उन्होंने स्वेच्छा से इस्तीफा दिया है और उनका इस्तीफा तुरंत स्वीकार किया जाना चाहिए था.
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