यौन अपराध और यौन उत्पीड़न समाज के सबसे ज्वलंत मुद्दों में शामिल है. बच्चों और महिलाओं के साथ अत्याधिक जघन्य अपराध देखने को मिलते हैं. बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों को रोकने के लिए भारत सरकार ने साल 2012 में पोक्सो अधिनियम (POCSO Act) बनाया. दिल्ली के कुख्यात निर्भया मामले के बाद न्यायमूर्ति वर्मा समिति का गठन किया गया. इस समिति का उद्देश्य तेजी के साथ यौन अपराधों को अंजाम देने वाले अपराधियों को सजा सुनिश्चित करवाना था.


60 दिनों में पेश की जा रही चार्जशीट
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सीसीटीएनएस परियोजना के तहत यौन अपराधों के लिए जांच ट्रैकिंग प्रणाली प्लेटफार्म को शुरू किया है. यहां बलात्कार और पोक्सो अधिनियम के मामलों में चार्जशीट 60 दिन में डिजिटली दायर की जा रही है. हिमाचल प्रदेश पुलिस भी यौन अपराधों और यौन उत्पीड़न के पीड़ितों को समय पर प्रभावी न्याय देने की कोशिश में जुटी हुई है. हिमाचल प्रदेश पुलिस ने रेप के मामलों में समय पर जांच सुनिश्चित करने की कोशिश की है. एफआईआर दर्ज होने के 60 दिन के अंदर ही चार्जसीट को डिजिटली अदालत के सामने पेश किया जा रहा है. 


यह हैं बीते तीन साल के आंकड़े
रेप और पॉक्सो के साल 2020 में 559 मामले दर्ज हुए. इनमें 64 मामलों का फैसला आ चुका है. कुल 64 में से 29 को सजा हुई जबकि 35 को बरी किया गया. साल 2021 में 612 मामले दर्ज किए गए. इनमें से 67 मामलों का फैसला सुनाया जा चुका है. कुल 67 में से 25 को सजा हुई, जबकि 42 आरोपियों को दोषमुक्त किया गया. इसके अलावा साल 2022 में 543 मामले दर्ज किए गए. इनमें 170 मामलों पर फैसला आया. कुल 170 मामलों में 68 को सजा हुई जबकि 103 को बरी किया गया. बीते 3 सालों में प्रदेश में कनविक्शन रेट 50 फ़ीसदी से भी कम रहा है. हालांकि आईटीएसएसओ का प्रदर्शन साल 2018 के 22.09 फीसदी से सुधर कर साल 2022 में 87.3 फीसदी हो गया है.


मौजूदा वक्त में हिमाचल प्रदेश की अलग-अलग अदालतों में बलात्कार और पक्षों के 1 हजार 535 मामले विचाराधीन हैं. प्रदेश में बलात्कार और पोक्सो अधिनियम के मामलों में पीड़ितों को त्वरित न्याय देने के लिए दो पुलिस जिलों सहित नौ जिलों को कवर किया गया है.


किस जिला में कितने मामले लंबित?
प्रदेश भर में कुल सात फास्ट ट्रेक कोर्ट भी गठित किए गए हैं. इन अदालतों में मामलों को निपटाने की पंजीकृत मामलों के अनुरूप नहीं है. इससे पीड़ित और उनके परिवारों को त्वरित न्याय देने में देरी हो रही है. कांगड़ा, मंडी, सिरमौर, सोलन और शिमला के फास्ट ट्रैक कोर्ट में सबसे ज्यादा मामले लंबित हैं. मौजूदा वक्त में कांगड़ा में 99, नूरपुर में 50, किन्नौर में 52, कुल्लू में 33, मंडी में 141, शिमला में 199, सिरमौर में 209, सोलन में 57 और बद्दी में 89 मामले लंबित हैं.


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