Himachal Pradesh News: पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश अपने 52 साल का सफर पूरा कर 53 साल में प्रवेश कर चुका है. आकार में छोटे और विषम भौगोलिक परिस्थिति के बावजूद हिमाचल प्रदेश में विकास के कई आयाम स्थापित किए गए. पहाड़ी राज्यों में हिमाचल प्रदेश की गिनती हमेशा से ही अव्वल स्थान पर की जाती रही है. 25 जनवरी 1971 को देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने हिमाचल प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की घोषणा की थी. हिमाचल प्रदेश के गठन से लेकर पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने में डॉ. यशवंत सिंह परमार ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. पहाड़ के लोगों के दर्द की समझ रखने वाले डॉ. परमार ने न केवल हिमाचल का इतिहास बदला बल्कि भूगोल को भी बदलने का काम किया.
बेटे यशवंत की पढ़ाई के लिए पिता ने गिरवी रखी थी जायदाद
हिमाचल प्रदेश के निर्माता कहे जाने वाले डॉ. यशवंत सिंह परमार ने हिमाचल प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने के लिए केंद्र के सामने जोरों-शोरों से अपनी मांग रखी. डॉ. परमार तब तक पीछे नहीं हटे, जब तक हिमाचल प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं मिल गया. 4 अगस्त 1906 को हिमाचल प्रदेश के जिला सिरमौर के चन्हालग गांव में जन्मे डॉ. परमार ने हिमाचल प्रदेश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उनका जन्म उर्दू और फारसी भाषा के विद्वान भंडारी शिवानंद के घर पर हुआ था. उनके पिता सिरमौर रियासत के राजा के पास दीवान का काम करते थे. बेटे यशवंत की शिक्षा के लिए उन्होंने अपनी सारी जायदाद गिरवी रख दी थी.
सेशन जज भी रहे डॉ. यशवंत परमार
यशवंत परमार पढ़ाई-लिखाई में बहुत तेज थे. यशवंत सिंह ने साल 1922 में मैट्रिक और साल 1926 में लाहौर के प्रसिद्ध सीसीएम कॉलेज से स्नातक के बाद 1928 में लखनऊ के कैनिंग कॉलेज में प्रवेश लिया. यहां से उन्होंने स्कूली शिक्षा के बाद लॉ की पढ़ाई की. डॉ. परमार साल 1930 से साल 1937 तक सिरमौर रियासत के सब जज और साल 1941 में सिरमौर रियासत के सेशन जज रहे.
साल 1946 में पकड़ी राजनीति की राह
साल 1943 में उन्होंने सेशन जज के पद से इस्तीफा दे दिया. साल 1946 में परमार ने राजनीति की राह पकड़ ली और डॉ. परमार हिमाचल हिल्स स्टेटस रिजनल कॉउंसिल के प्रधान चुने गए. अपने सक्षम नेतृत्व के बल पर 31 रियासतों को समाप्त कर हिमाचल राज्य की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. डॉ. परमार साल 1952 में प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री बने. साल 1956 में वे संसद सदस्य के रूप में निर्वाचित हुए. साल 1963 में दोबारा प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. 24 जनवरी 1977 को उन्होंने मुख्यमंत्री पद से त्याग पत्र दे दिया.
मृत्यु के बाद बैंक में था सिर्फ 563 रुपये बैलेंस
डॉ. यशवंत सिंह परमार इतने सरल स्वभाव के थे कि मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देने के बाद वे किसी वीआईपी प्रोटोकॉल में नहीं बल्कि शिमला बस स्टैंड से एचआरटीसी बस में बैठकर सिरमौर गए थे. मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफे के बाद उनका कभी भी राजनीतिक कामों में हस्तक्षेप नहीं रहा. इसके चार साल बाद 2 मई, 1981 को डॉ. परमार ने दुनिया को अलविदा कह दिया. डॉ. यशवंत सिंह परमार की मृत्यु के बाद उनका बैंक बैलेंस केवल 563 रुपये था.