कभी हिमाचल सरकार को देता था कर्ज, आज खुद आर्थिक बदहाली के 'झटके' खा रहा बिजली बोर्ड
Himachal News: एक वक्त था जब राज्य बिजली बोर्ड हिमाचल प्रदेश सरकार को कर्ज देता था. आज बिजली बोर्ड खुद ही आर्थिक बदहाली के झटके खा रहा है.
Himachal Pradesh News: साल 1971 में बने हिमाचल प्रदेश बिजली बोर्ड को 53 साल से ज्यादा का वक्त हो गया है. इन दिनों बिजली बोर्ड के कर्मचारी भी परेशान हैं. कभी कर्मचारियों की तनख्वाह देरी से आती है, तो कभी ओल्ड पेंशन स्कीम की बहाली के लिए कर्मचारियों को सड़कों पर उतरना पड़ता है. एक वक्त था जब बिजली बोर्ड हिमाचल प्रदेश सरकार को कर्ज देता था, लेकिन आज वही बिजली बोर्ड आर्थिक बदहाली के झटके खा रहा है.
हाल ही में राज्य सरकार ने बिजली बोर्ड के 51 पदों को खत्म कर दिया. इसके बाद से ही कर्मचारियों में रोष है और सोमवार को बोर्ड कर्मचारी और प्रदेशभर में सांकेतिक धरना प्रदर्शन करने जा रहे हैं. बिजली बोर्ड कर्मचारियों की साथ मांगे हैं, जिन पर गौर न करने की स्थिति में ब्लैक आउट की भी चेतावनी दी गई है.
लगातार घर रही कर्मचारियों की संख्या
एक समय था हिमाचल प्रदेश राज्य बिजली बोर्ड में 43 हजार कर्मचारी काम करते थे. अब कर्मचारियों की यह संख्या घटकर सिर्फ 16 हजार रह गई है. बोर्ड में तीन हजार आउटसोर्स कर्मचारी भी काम कर रहे हैं. जानकारी के मुताबिक, बिजली बोर्ड में फिलहाल नौ हजार पद विभिन्न श्रेणियों में खाली हैं. हिमाचल प्रदेश बिजली बोर्ड लंबे वक्त से लगातार घाटा झेल रहा है.
तीन हजार करोड़ रुपए के घाटे में है बिजली बोर्ड
1990 के दशक में बिजली बोर्ड राज्य सरकार को कर्ज दिया करता था, लेकिन आज बिजली बोर्ड खुद ही तीन हजार करोड़ रुपए के घाटे में है. यह बिजली बोर्ड के लिए खुद ही झटके से कम नहीं है. 31 मार्च, 2015 को बिजली बोर्ड 1813.23 करोड़ रुपए के घाटे में था. साल 2017 में यह बढ़कर 1 हजार 999 करोड़ रुपए हुआ. साल 2020 में यह घाटा 1531.50 करोड़ रुपए और साल 2021 में घाटा बढ़कर 2 हजार 043 करोड़ पर पहुंच गया. मौजूदा वक्त में यह घाटा तीन हजार करोड़ रुपए है.
क्या हैं बिजली बोर्ड कर्मचारियों की मांगें?
1. 16 अक्टूबर, 2024 को जारी अधिसूचना के तहत समाप्त किए गए इंजीनियरिंग कैडर के 51 पदों को बहाल किया जाए.
2. हिमाचल प्रदेश राज्य बिजली बोर्ड की विभिन्न इकाइयों में पिछले 10-12 सालों से ड्राइवर के पद पर काम कर रहे 81 आउटसोर्स कर्मचारी की छंटनी के आदेश वापस लिए जाएं.
3. हिमाचल प्रदेश राज्य बिजली बोर्ड के कर्मचारियों के लिए बिना देरी ओल्ड पेंशन स्कीम लागू हो.
4. हिमाचल प्रदेश सरकार और बिजली बोर्ड कर्मचारियों और इंजीनियरों के संयुक्त संगठन के बीच एचपीएसईबी स्थानांतरण योजना, 2010 से जुड़े द्विपक्षीय समझौते के प्रावधानों का अक्षरशः पालन करना हो. संयुक्त मोर्चा के परामर्श के बिना किसी भी परिसंपत्ति जैसे लाइन, सब स्टेशन और पावर हाउस को अन्य इकाई को ट्रांसफर न किया जाए.
5. एचपीएसईबीएल-एचपीएसएल की सेवा समिति की के से पहले से अनुमोदित टी-मेट के 1 हजार 030 पदों के लिए चयन प्रक्रिया शुरू हो. साथ ही बिजली बोर्ड में खाली पदों पर भर्ती भी की जाए.
6. सातवें वेतन आयोग का कर्मचारियों/पेंशनभोगियों को पेंशन और वेतन का बकाया जारी किया जाए.
7. कर्मचारियों और पेंशनभोगियों के सभी लंबित टर्मिनल लाभ, भुगतान को और विलंबित रूप से जारी किया जाए.
संकट में है ऊर्जा राज्य हिमाचल का बिजली बोर्ड
देशभर में ऊर्जा राज्य के तौर पर अपनी पहचान स्थापित करने वाले हिमाचल प्रदेश ने हर घर बिजली का लक्ष्य हासिल किया है. राज्य की नदियों में बहने वाला पानी किसी सोने से काम नहीं है. राज्य में यह पानी 'बहता सोना' है. हिमाचल प्रदेश में सतलुज जल विद्युत निगम भी एक कमाऊ बेटे के रूप में काम कर रहा है, जो हर साल नया रिकॉर्ड स्थापित करने के लिए जाना जाता है. हिमाचल प्रदेश में 24 हजार मेगावाट बिजली उत्पादन की क्षमता है. इसमें अब तक 11 हजार 209 मेगावाट का दोहन हुआ है.
यहां बनने वाली बिजली पर 7.6 फीसदी हिस्सा राज्य सरकार का है, जबकि शेष केंद्र सरकार के इस्तेमाल में है. मौजूदा वक्त में घरेलू उपभोक्ताओं को 125 मिनट तक मुक्त बिजली दी जा रही है. आने वाले वक्त में राज्य सरकार जरूरतमंद घरेलू उपभोक्ताओं को 300 यूनिट तक मुफ्त बिजली देने की भी योजना बना रही है. यह मुफ्त बिजली भी बिजली बोर्ड के घाटे के प्रमुख वजहों में से एक है.
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