Dr Yashwant Singh Parmar: पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश के निर्माता और पहले मुख्यमंत्री डॉ यशवंत सिंह परमार का आज 118वां जन्मदिन है. इनका जन्म 4 अगस्त, 1906 को हिमाचल के जिला सिरमौर के चन्हालग गांव में हुआ था. हिमाचल के अधिकारों के संरक्षण के लिए आज भी हर हिमाचली इन्हें सच्चे दिल से याद करता है.


डॉ यशवंत परमार वो नाम है, जिन्होंने हिमाचल प्रदेश का इतिहास और भूगोल बदलने में अहम भूमिका अदा की है. डॉ परमार को न सिर्फ हिमाचल प्रदेश, बल्कि पड़ोसी राज्य उत्तराखंड के लोग भी अपना आदर्श मानते हैं.


पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने में अहम भूमिका 


25 जनवरी 1971 को देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने हिमाचल प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की घोषणा की थी. हिमाचल प्रदेश के गठन से लेकर पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने में यशवंत सिंह परमार ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. पहाड़ के लोगों के दर्द की समझ रखने वाले डॉ परमार ने न केवल हिमाचल का इतिहास बदला, बल्कि भूगोल को भी बदलने का काम किया.


पढ़ाई के लिए पिता ने गिरवी रखी थी जायदाद


हिमाचल प्रदेश निर्माता डॉ यशवंत सिंह परमार ने हिमाचल प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने के लिए केंद्र के सामने जोरों-शोरों से अपनी मांग रखी थी. डॉ परमार तब तक पीछे नहीं हटे, जब तक हिमाचल प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं मिल गया. पूर्व मुख्यमंत्री ने हिमाचल प्रदेश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. इनका जन्म उर्दू और फारसी भाषा के विद्वान भंडारी शिवानंद के घर पर हुआ था. इनके पिता सिरमौर रियासत के राजा के पास दीवान का काम करते थे. बेटे यशवंत की शिक्षा के लिए उन्होंने अपनी सारी जायदाद गिरवी रख दी थी.


सेशन जज भी रहे डॉ यशवंत परमार


यशवंत परमार पढ़ाई-लिखाई में बहुत तेज थे. यशवंत सिंह ने साल 1922 में मैट्रिक और साल 1926 में लाहौर के प्रसिद्ध सीसीएम कॉलेज से स्नातक के बाद 1928 में लखनऊ के कैनिंग कॉलेज में प्रवेश लिया था. उन्होंने यहां से स्कूली शिक्षा के बाद लॉ की पढ़ाई की थी. डॉ परमार साल 1930 से साल 1937 तक सिरमौर रियासत के सब जज और साल 1941 में सिरमौर रियासत के सेशन जज रहे.


साल 1946 में पकड़ी राजनीति की राह


साल 1943 में यशवंत सिंह ने सेशन जज के पद से इस्तीफा दे दिया. साल 1946 में परमार ने राजनीति की राह पकड़ ली और हिमाचल हिल्स स्टेटस रिजनल कॉउंसिल के प्रधान बने. अपने सक्षम नेतृत्व के बल पर 31 रियासतों को समाप्त कर हिमाचल राज्य की स्थापना में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. डॉ. परमार साल 1952 में प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री बने. साल 1956 में वे संसद सदस्य के रूप में निर्वाचित हुए. साल 1963 में दोबारा प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. 24 जनवरी 1977 को उन्होंने मुख्यमंत्री पद से त्याग पत्र दे दिया.


मृत्यु के बाद बैंक बैलेंस सिर्फ 563 रुपये 


डॉ यशवंत सिंह परमार इतने सरल स्वभाव के थे कि मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देने के बाद वे किसी वीआईपी प्रोटोकॉल में नहीं, बल्कि शिमला बस स्टैंड से एचआरटीसी बस में बैठकर सिरमौर वापस गए थे. मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफे के बाद उनका कभी भी राजनीतिक कामों में हस्तक्षेप नहीं रहा. इसके चार साल बाद 2 मई, 1981 को डॉ परमार ने दुनिया को अलविदा कह दिया. डॉ यशवंत सिंह परमार की मृत्यु के बाद उनका बैंक बैलेंस केवल 563 रुपये था.


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