Himachal Pradesh Bureaucracy: अफसरों को जब अफसरशाही की संज्ञा दी गई होगी, तो शायद उनके ठाठ-बाट को ध्यान में रखा गया होगा. ठाठ-बाट भी ऐसे, जो अपनी ही सरकार के लिए परेशानी बन जाएं. इन दिनों हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) में मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू (Sukhvinder Singh Sukhu) के नेतृत्व वाली सरकार अफसरशाही से परेशान है. हालांकि परेशान करने वाले अफसरों में कुछ एक ही अफसर शामिल हैं.
ज्यादातर अफसर प्रदेश के विकास में सरकार की मदद ही करते हुए नजर आ रहे हैं. चुनिंदा अफसरों ने हिमाचल प्रदेश सरकार की परेशानी बढ़ा दी है. हाल ही में हिमाचल प्रदेश सरकार में लोक निर्माण मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने तो अफसरों को नसीहत दे डाली. विक्रमादित्य सिंह ने अधिकारियों को लक्ष्मण रेखा न लांघने की नसीहत दी. दरअसल, विक्रमादित्य का कहना है कि अधिकारी यहां बैठकर जो प्रपोजल तैयार करते हैं, उसे हिमाचल प्रदेश की सीमा खत्म होते ही बदल दिया जाता है. यह सरासर गलत है.
अधिकारियों के बारे में मुख्यमंत्री से शिकायत
विक्रमादित्य सिंह ने तो अफसरों को प्रदेश सरकार को दबाने की कोशिश न करने तक की हिदायत दे डाली थी. यही नहीं, हिमाचल प्रदेश सरकार तो अफसरों से इतनी ज्यादा परेशान है कि कई बार मुख्यमंत्री से शिकायत भी की जा चुकी है. मुख्यमंत्री कार्यालय में एक ऐसे अधिकारी तैनात हैं, जो न तो विधायकों की सुनते हैं और न ही मंत्रियों की. हालात यह हैं कि इन 'अधिकारी महोदय' के कमरे में जाने पर यह मंत्रियों को कुर्सी तक पर बैठने के लिए नहीं पूछते.
शायद यह अधिकारी नहीं जानते कि विधायक का प्रोटोकॉल मुख्य सचिव से भी अधिक होता है. प्रोटोकॉल की बात को यदि छोड़ भी दिया जाए, तो शिष्टाचार के नाते ही कम से कम अधिकारी को बैठने के लिए तो पूछना ही चाहिए. मुख्यमंत्री से कई बार इस अधिकारी की शिकायत की जा चुकी है, लेकिन अब भी अब तक न कोई करवाई हुई है और न ही इन्हें बदला गया है. दिलचस्प बात है कि यह अधिकारी पूर्व जयराम सरकार के वक्त भी मुख्यमंत्री कार्यालय में तैनात थे और मौजूदा सरकार में भी मुख्यमंत्री कार्यालय में ही हैं.
CM सुक्खू खुद भी परेशान!
मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू तो खुद ही अफसरशाही से खासे परेशान नजर आते हैं. इससे पहले बजट सत्र के दौरान मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू भी अनाधिकारिक तौर पर यह बात कहते हुए सुनाई दिए थे कि अफसर अधिकारियों से कोई भी नीति बजट में डलवाना टेढ़ी खीर से कम नहीं है. अधिकारी लगभग सभी नई बातों को लागू करने में कोई न कोई अड़ंगा लगा ही देते हैं. ऐसे में प्रदेश की जनता के लिए काम करने में खासी परेशानी का सामना करना पड़ता है. पूर्व में जयराम सरकार के वक्त भी अफसरशाही सरकार की सिर दर्दी बनी रहती थी.
सुक्खू सरकार के सामने बड़ा प्रश्न
तब विपक्ष में रहते हुए कांग्रेस तत्कालीन मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर पर यह आरोप लगाती थी कि जयराम ठाकुर की अफसरशाही पर पकड़ ही नहीं है. अब यही अफसरशाही सुक्खू सरकार के लिए भी सिरदर्द बन गई है. कुल-मिलाकर कुछ अफसर सरकार के मंत्रियों का काम रोकने की कोशिश कर रहे हैं. हालांकि इसके पीछे क्या राजनीति है? यह तो भीतर छिपी हुई बात है, लेकिन यह तो तय है कि सरकार पुरानी हो या नई. कुछ अफसरों का रवैया ज्यों का त्यों ही बना रहता है. देखना दिलचस्प होगा कि शख्स छवि वाले मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू इन चंद अफसरों को लाइन पर ला सकेंगे या नहीं?