आसमान छूती इमारतें Himachal के लिए बनी अभिशाप, एक्सपर्ट्स बोले- यहां हो सकता है अगला 'Joshimath'
हिमाचल हाई कोर्ट ने अवैध निर्माण को लेकर राज्य के सचिव को तलब किया था, इस दौरान पीठ के सदस्यों ने राज्य के पहाड़ी क्षेत्रों में पारिस्थितिक तंत्र और अवैध निर्माण पर कड़ी फटकार लगाई थी.
Himachal Pradesh News: प्रदेश के धर्मशाला शहर (Dharmshala City) में अवैध निर्माण के कारण अधिकांश इमारतें खड़ी ढलानों पर लटकी हुई हैं और एक दूसरे से चिपकी हुई हैं. विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि शिमला, मैक्लोडगंज, कसौली, मनाली, पालमपुर, मंडी, सोलन आदि इलाकों में स्थित इमारतें उच्च तीव्रता वाले भूकंप (Earthquake) का सामना नहीं कर सकती हैं और ताश के पत्तों की तरह ढह सकती है.
वहीं हाल के वर्षों में पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश में बादल फटना और अचानक आई बाढ़ एक रेगुलर फीचर बन गया है. इस तरह की आपदाओं के कारण होने वाली जीवन की भारी हानि के लिए मुख्य रूप से बढ़ती अवैध मानवीय गतिविधियों के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है. इस तथ्य के बावजूद कि हिमालयी राज्य के अधिकांश पिकनिक स्थल उच्च भूकंपीय क्षेत्र 4-5 में आते हैं. गंभीर भूकंपीय संवेदनशीलता का संकेत देने के बावजूद स्थानीय अधिकारी अभी तक अपनी नींद से नहीं जागे हैं.
बीजेपी और कांग्रेस सरकारों पर लगे ये आरोप
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) और राज्य की उच्च न्यायालय ने पूरे हिमाचल में बढ़ते अनधिकृत निर्माणों की प्रक्रिया में कमी लाने के लिए, राज्य के अधिकारियों को बार-बार फटकार लगाई है. इस मामले में लोग बीजेपी और कांग्रेस सरकारों पर ज्यादातर सुरम्य शहरों को कंक्रीट के जंगलों में बदलने का आरोप लगाते हैं. शिमला के बाहरी इलाके में भीड़भाड़ वाले इलाके संजौली में, मृतकों को अक्सर रस्सियों के सहारे घरों से बाहर निकालना पड़ता है.
अवैध निर्माण को लेकर स्थानीय निवासी का छलका दर्द
शिमला में जन्मे और पले-बढ़े अस्सी वर्षीय रमेश मंटा ने कहा, आप शिमला के तेजी से बदलते चेहरे को देख सकते हैं. यहां इमारतें, भले ही संरचनात्मक रूप से सुरक्षित हों या नहीं, बेतरतीब ढंग से एक के बाद एक आ रही हैं. हिमाचल पर्यटन विकास निगम लिफ्ट के पास खड़े होकर मॉल रोड के नीचे आने वाले वर्टिकल निर्माण की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा, आप विकास के दबाव को देख सकते हैं. रमेश मंटा ने कहा ये पिछले कुछ दशकों में जनसंख्या वृद्धि और पर्यटकों के उच्च प्रवाह के कारण बढ़ा है.
अधिकारी ने बताता शिमला में कुछ जगहों पर धंस रही इमारतें
इस संबंध में अधिकारियों ने माना कि शिमला में 14 प्रमुख इलाके 70 से 80 डिग्री के औसत ढाल पर स्थित हैं, जहां अधिकांश इमारतें सरकारी नियमों और भवन निर्माण मानदंडों का उल्लंघन करती हैं और यहां तक कि भूकंपीय मानदंडों का भी पालन नहीं किया है. टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि शिमला के रिज के उत्तरी ढलान, मॉल के ठीक ऊपर एक खुली जगह, जो पश्चिम में ग्रैंड होटल और पूर्व में लक्कड़ बाजार तक फैली हुई है, धीरे-धीरे धंस रही है.
चिपकी इमारतें भू धंसाव के दौरान हो सकती हैं विनाशकारी
एक अन्य स्थानी निवासी नरेश सूद ने कहा, ज्यादातर इमारतें खतरनाक रूप से खड़ी ढलानों पर लटकी हुई हैं और एक-दूसरे से चिपकी हुई हैं. एक मध्यम या उच्च तीव्रता वाला भूकंप भीड़भाड़ वाली बस्तियों के लिए विनाशकारी हो सकता है. वे ताश के पत्तों की तरह ढह सकते हैं. अधिकतम 16 हजार की आबादी के लिए बना शिमला, अब 2 लाख 50 हजार से अधिक लोगों का घर है.
200 से अधिक सरकारी इमारतें भूकंप का झटका सहने योग्य नहीं
शिमला के पूर्व उप महापौर टिकेंद्र पंवार ने स्वीकार किया कि, शिमला की नगरपालिका के भीतर अस्पतालों, सरकारी स्कूलों और कॉलेजों सहित 200 से अधिक सार्वजनिक इस्तेमाल वाले भवनों को भूकंप के झटके को सहने योग्य बनाने की जरुरत है. विशेषज्ञों का अनुमान है कि अगर कोई बड़ा भूकंप आता है तो शिमला में 98 प्रतिशत से अधिक इमारतों के ढहने का खतरा है.
अवैध निर्माण ने दलाई लामा के आवास के आवास की बढ़ाई मुश्किलें
धर्मशाला के उपनगरों में स्थित मैक्लोडगंज में तेजी से बढ़ते अवैध निर्माण से, तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा के आवास पर खतरा मंडरा रहा है. विशेषज्ञों को डर है कि एक उच्च तीव्रता वाला भूकंप चढ़ाई वाले शहर मैक्लोडगंज को मलबे में बदल सकता है, क्योंकि यह भूकंपीय क्षेत्र वी में पड़ता है. कांगड़ा जिले में मैक्लोडगंज लगभग 16 हजार निर्वासित तिब्बतियों और इतनी ही संख्या में भारतीयों का आवास है.
कोलकाता के पर्यटक संजय बसु ने टिप्पणी की, मैं पांच साल बाद मैक्लोडगंज गया था और उस जगह को देखकर चौंक गया था. यह हरे-भरे ढलानों के साथ एक खूबसूरत जगह हुआ करती थी, जबकि आज यह बड़े पैमाने पर ऊंची इमारतों के साथ कंक्रीट में तब्दील हो गई है.
20 हजार लोगों ने 1905 के भूकंप में गंवाई थी जान
1905 में एक विनाशकारी भूकंप ने कांगड़ा क्षेत्र में संपत्ति के साथ बड़ी मात्रा में जनधन की हानि हुई थी, जिसमें सेंट जॉन चर्च भी शामिल था. यहां कई ब्रिटिश अधिकारियों को दफनाया गया था. इस विनाशकारी भूकंप में 20 हजार से अधिक लोगों की जान ले ली थी. मैक्लोडगंज में विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के एक स्वायत्त अनुसंधान संस्थान वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के फील्ड स्टेशन के रिकॉर्ड से पता चलता है कि 1905 के बाद से इस क्षेत्र में कई भूकंप आए हैं.
मनाली भी भूस्खलन के मलबे पर है स्थित
इनमें से प्रमुख 15 जून, 1978 को आया था, जिसकी रिक्टर पैमाने पर तीव्रता 5 थी, वहीं दूसरा 26 अप्रैल, 1986 को आये भूकंप की रिक्टर पैमाने पर तीव्रता 5.7 थी. भारतीय सर्वेक्षण विभाग के पूर्व निदेशक राम कृष्ण ठाकुर ने खतरे की घंटी बजाते हुए बताया कि उत्तराखंड के जोशीमठ शहर की तरह मनाली और इसके उपनगर भी भूस्खलन के मलबे पर स्थित हैं.
आबादी कई गुना बढ़ गई है और पर्यटकों का इजाफा हो रहा है. इंफ्रास्ट्रक्चर का विस्तार नहीं हुआ है, लेकिन इसे अनियंत्रित किया गया. मनाली शहर में उचित जल निकासी और सीवरेज प्रणाली नहीं है. वर्ष 2002 में अपनी सेवानिवृत्ति के बाद मनाली में रह रहे ठाकुर ने कहा, रिसाव के कारण भूस्खलन हो सकता है, जिससे मनाली की इमारतों में दरारें आ सकती हैं. ठाकुर के अनुसार मनाली के उपनगरीय इलाके में स्थित बुरवा गांव में इन दिनों निर्माण में तेजी देखी जा रही है, जबकि पूरा क्षेत्र धंसाव क्षेत्र में आता है.
हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय लगा चुका है फटकार
बेतरतीब निर्माणों को गंभीरता से लेते हुए हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने पिछले साल अक्टूबर में मुख्य सचिव सहित राज्य के शीर्ष अधिकारियों को तलब किया था. मुख्य न्यायाधीश ए.ए. सईद और न्यायमूर्ति ज्योत्सना रेवल दुआ की खंडपीठ ने सोलन जिले के पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील बड़ोग क्षेत्र में अनियमित निर्माण को उजागर करने वाली एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि, आमतौर पर हम राज्य के उच्चाधिकारियों को अदालत में उपस्थित रहने का निर्देश देने वाले आदेश पारित करने से बचते हैं. हालांकि राज्य के अधिकारियों की हलफनामों में व्यक्त की गई मजबूरी को देखते हुए यह सुनिश्चित करने के लिए आदेश पारित किया गया है.
निर्माण गतिविधियों, विशेष रूप से पहाड़ियों में, जो राज्य के पारिस्थितिक रूप से नाजुक क्षेत्र हैं, को विनियमित किया जाता है और पर्यावरण की क्षति या आगे की गिरावट के अधीन नहीं हैं. हिमाचल प्रदेश विभिन्न प्रकार की आपदाओं के प्रति संवेदनशील है. केंद्र सरकार ने 25 खतरों की पहचान की है जिससे राज्य प्रभावित है.
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