Mata Jwala Ji Temple: पानी में भी जलती रहती है मां के मंदिर की ज्योत, चमत्कार कहें या विज्ञान? वैज्ञानिकों ने मानी हार
Himachal Pradesh: हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में मां ज्वाला जी का मंदिर है. मां के इस वित्र दर पर पानी में भी प्राकृतिक ज्योत जलती है. यही नहीं मंदिर के गर्भगृह में सात पवित्र ज्योतियां हैं.
Mata Jawala Ji Mandir: विश्व भर में हिमाचल प्रदेश की पहचान देवभमि के रूप में है. देवभूमि में स्थित सिद्ध शक्तिपीठों की पहचान देश में नहीं बल्कि विदेश में भी है. हिमाचल प्रदेश के जिला कांगड़ा में एक ऐसा ही मंदिर है, जहां मां ज्वाला की अखंड ज्योति लगातार चलती रहती है. खास बात यह है कि यह ज्योति प्राकृतिक है और आग का दुश्मन पानी तक नहीं इसे नहीं बुझा सकता. मां ज्वाला के इस पवित्र दर पर पानी में भी प्राकृतिक ज्योत जलती है. कहा जाता है कि यह प्राकृतिक ज्योति कालांतर से लगातार जल रही है. इस पवित्र पावन स्थान का नाम ज्वालामुखी है.
राजा दक्ष के यज्ञ से जुड़ी है कहानी
मान्यता है कि जब राजा दक्ष प्रजापति ने ब्रह्मांड के सबसे बड़े यज्ञ का आयोजन किया था. राजा दक्ष ने उस यज्ञ में भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया. भगवान शिव के इस तिरस्कार से माता सती बेहद नाराज हुई. इसके बाद उन्होंने सभी देवी-देवताओं के सामने प्रचंड अग्नि कुंड में छलांग लगाकर अपने शरीर को होम कर दिया. भगवान शिव को जब इस बारे में पता चला, तो उन्होंने सती को कंधों पर उठाकर ब्रह्मांड की परिक्रमा शुरू कर दी.
मां की जीभ गिरने से हुई ज्वालामुखी की उत्पत्ति
भगवान शिव के इस तांडव से बचने के लिए भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से माता सती के अंग भंग कर दिए. इसके बाद माता सती के अंग जहां-जहां गिरते चले गए, वहां-वहां शक्तिपीठ बंद बन गए. जिस स्थान पर आज ज्वालामुखी मंदिर है, वहां माता सती की जीभ गिरी थी. जीभ में ही अग्नि तत्व होता है और तब से लेकर आज तक यहां प्राकृतिक रूप से ज्योत जल रही है. मंदिर के गर्भगृह में सात पवित्र ज्योतियां हैं. यह शक्तिपीठ हजारों साल से लाखों लोगों की आस्था का केंद्र है. कहा जाता है कि मां ज्वाला के दर्शन मात्र से ही भक्तों के दु:ख दूर हो जाते हैं.
अकबर ने ली थी मां के भक्त ध्यानू की परीक्षा
एक मान्यता यह भी है कि अकबर ने मां ज्वाला जी के परम भक्त ध्यानू की श्रद्धा और आस्था की परीक्षा ली. जब भक्त ध्यानू मां के दरबार में शीश नवाने के लिए जा रहा था. तब अकबर ने बिना तेल-घी के जल रही ज्योतियों को पाखंड बताया. अकबर ने भक्त ध्यानू से पूछा कि अगर वह उसके घोड़े का सिर धड़ से अलग कर देगा, तो क्या उसकी मां ज्वाला घोड़े का धड़ फिर लगा देगी?
भक्त ध्यानू ऊपर थी मां की असीम अनुकंपा
ध्यानू भक्त ने मां की आस्था पर विश्वास करते हुए हां में जवाब दिया. इस पर अकबर ने घोड़े का सिर कलम करवा दिया. घोड़े का सिर मां ज्वाला की शक्ति से दोबारा लग गया. कहा जाता है कि ध्यानू भक्त ने भी मां के आगे अपना सिर धड़ से अलग कर दिया था. इसे भी माता ने अद्भुत शक्ति ने फिर जोड़ दिया. इस तरह मां के परम भक्त ध्यानू पर मां ज्वाला की असीम अनुकंपा हुई. भक्त ध्यानू की गिनती मां ज्वाला के प्रियतम भक्तों में होती है.
अकबर ने की थी नहर से ज्योत बुझाने की कोशिश
कहा जाता है कि अकबर ने पवित्र ज्योति के स्थान पर लोहे के कड़े लगवा दिए, ताकि ज्योतियां बुझ सके. अकबर ने ज्योति बुझाने के लिए ज्वालामुखी के साथ लगते जल स्रोत से पानी की नहर ज्योत की तरफ मोड़ दी, लेकिन मां की चमत्कारिक पवित्र ज्योतियां बुझी नहीं. इसके बाद राजा अकबर की तमाम कोशिश जब विफल हो गई, तो उसने नतमस्तक होकर मां ज्वाला जी के दर पर सोने का छत्र चढ़ाया.
मां ज्वाला के आगे चूर हुआ था अकबर का घमंड
कहा जाता है कि अकबर को इस बात का भी घमंड हो गया था कि उसके जैसे सोने का छत्र कोई नहीं चढ़ा सकता. इसके बाद माता ने अकबर का छत्र ही स्वीकार नहीं किया और यह छत्र अज्ञात धातु में बदल गया. इस तरह सर्वशक्तिमान कहे जाने वाले राजा अकबर का घमंड भी मां ज्वाला के चमत्कार के आगे चूर हो गया.