Himachal Pradesh Loan: केंद्र के वित्त पोषण पर चलने वाले हिमाचल प्रदेश पर लगातार कर्ज का दबाव बढ़ता ही चला जा रहा है. पूर्व में वीरभद्र सिंह (Virbhadra Singh) सरकार ने साल 2012 से साल 2017 के दौरान 19 हजार 200 करोड़ रुपये का कर्ज लिया. साल 2012 में जब प्रो. प्रेम कुमार धूमल (Prem Kumar Dhumal) ने सत्ता छोड़ी थी, तब प्रदेश पर 28 हजार 760 का कर्ज था. साल 2017 में यह कर्ज बढ़कर 47 हजार 906 हो गया. ऐसे में अगर हिमाचल प्रदेश में कर्ज लेने की रफ्तार इसी तरह बनी रही, तो साल 2027 तक राज्य पर एक लाख करोड़ रुपये से अधिक का कर्ज हो जाएगा.


हिमाचल प्रदेश पर मौजूदा वक्त में 74 हजार 662 करोड़ रुपये का कर्ज हो गया है. जयराम ठाकुर सरकार ने पांच साल के अंतराल में 26 हजार 716 करोड़ रुपये का कर्ज लिया. यह जानकारी शुक्रवार को विधानसभा सत्र के दौरान एफआरबीएम संशोधन विधेयक के पारित होने के वक्त सामने आई. इस विधेयक के जरिए सरकार लोन लेने की सीमा को प्रदेश की जीडीपी के 6 फीसदी तक बढ़ा रही है. इससे पहले सरकार अपनी जीडीपी का केवल 3 फीसदी लोन ले सकती थी. बढ़ी हुई कर्ज सीमा से लोन 31 मार्च तक लेना होगा. पूर्व सरकार के दौरान इस बाबत अध्यादेश पारित करवाया गया था.


कर्ज के बोझ को कम करने का किया जा रहा प्रयास
विधेयक में इस शर्त को भी जोड़ा गया है कि केंद्र सरकार से मिला 50 साल का लंबी अवधि का कर्ज इस लिमिट में न जोड़ा जाए. हिमाचल प्रदेश में मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू की नेतृत्व वाली सरकार ने आने वाले दो वित्तीय वर्षों में इस लोन लिमिट को 3.5 फ़ीसदी तक सीमित रखने का लक्ष्य रखा है. सरकार ने एफआरबीएम एक्ट के प्रावधानों को लागू करने की प्रक्रिया का अधिकार भी कैग को दिया है.


पूर्व सरकार ने जमा नहीं करवाए उपयोगिता प्रमाण पत्र
हिमाचल प्रदेश के शीतकालीन सत्र में तीन बैठकों में नौ घंटे तक चली कार्यवाही के दौरान दो विधेयक ध्वनिमत से पारित हुए. इनमें राज्य सरकार की कर्ज लेने की सीमा को बढ़ाने और जीएसटी रिटर्न भरने के दौरान सरलीकरण का बिल शामिल रहा. हिमाचल प्रदेश विधानसभा में सदन पर रखी गई रिपोर्ट से यह बात भी सामने आई कि पूर्व सरकार ने 2 हजार 392 करोड़ रुपये खर्च के उपयोगिता प्रमाण पत्र अब तक जमा नहीं करवाए हैं.


ढीला पड़ रहा सरकार का सिस्टम!
साथ ही सीएजी की रिपोर्ट में टिप्पणी की गई है कि यह सुनिश्चित नहीं है कि उक्त रकम खर्च हुई है या नहीं. दोनों वित्तीय वर्षों के कुल 3 हजार 619 यूसी 4 हजार 752 करोड़ रुपये से अधिक के कार्यों से संबंधित हैं. इसी तरह 31 मार्च 2022 तक 4 हजार 752 करोड़ रुपये से अधिक के कार्यो के उपयोगिता प्रमाण पत्र जमा होने थे, जो निकायों और एजेंसियों ने जमा नहीं करवाए. सरकार को यह रकम ग्रांट-इन-एड के तौर पर मिली थी. सरकारी धन खर्च करने के बाद उपयोगिता प्रमाण पत्र दर्ज न करवाना सरकारी सिस्टम के धीरे रवैया को भी साफ दर्शाता है.


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