Manimahesh Yatra Chamba: हिंदू धर्म में भगवान शिव को समर्पित मणिमहेश यात्रा का अत्यधिक महत्व है. हर साल यहां हजारों की संख्या में भक्त अपने अधिष्ठाता भगवान शिव के चरणों में हाजिरी लगाने के लिए पहुंचते हैं. हर साल भाद्रपद के महीने में अर्धचांद के आठवें दिन इस झील पर एक मेला आयोजित होता है. मणिमहेश यात्रा के दौरान भगवान शिव के भक्त पवित्र-पावन जल में डुबकी लगाने के लिए एकत्रित होते हैं.


अजय है कैलाश की चोटी


मणिमहेश हिमाचल प्रदेश के प्रमुख तीर्थ स्थलों में शामिल है. यह बुद्धि घाटी में भरमौर से 21 किलोमीटर की दूरी पर है. यह झील कैलाश पीक जो 18 हजार 564 फीट पर है. उससे नीचे 13 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है. हिंदू धर्म में मान्यता है कि भगवान शिव कैलाश पर एक शिवलिंग के रूप में रहते हैं. इसी शिवलिंग को भगवान शिव की अभिव्यक्ति माना जाता है. स्थानीय लोग पर्वत के आधार पर बर्फ के मैदान को शिव का चौगान भी कहते हैं. कैलाश पर्वत अजय है. आज तक कोई कैलाश पर्वत की चढ़ाई नहीं कर सका है.


कोई नहीं कर सकता कैलाश की चढ़ाई


माना जाता है कि एक बार गद्दी ने अपने भेड़ों के झुंड के साथ इस पहाड़ पर चढ़ने की कोशिश की, लेकिन फिर वह पत्थर में तबदील हो गया. आज यही पत्थर प्रमुख चोटी के नीचे चोटियों की श्रृंखला के रूप में नजर आते हैं. कहा जाता है कि यह वही चरवाहा और भेड़ का झुंड है. एक अन्य कहानी भी इसी प्रकार है कि जब एक सांप ने इस चोटी पर चढ़ने की कोशिश की, तो वह भी पत्थर में बदल गया. माना जाता है कि भक्ति कैलाश की चोटी को केवल तभी देख सकते हैं, जब भगवान प्रसन्न हो. खराब मौसम के चलते जब चोटी बादल के पीछे छिप जाती है, तो इसे भगवान शिव की नाराजगी का संकेत माना जाता है. मणिमहेश की यात्रा में विशेष दिन पर यहां मणि के भी दर्शन होते हैं, जिसे पाकर भक्त अभिभूत हो जाते हैं. यहां हर आधे घंटे में मौसम बदल जाता है.


कैसे पहुंचे मणिमहेश?


मणिमहेश की यात्रा 65 किलोमीटर दूर चंबा मुख्यालय से शुरू होती है. चंबा से होते हुए आप भरमौर पहुंचते हैं. भरमौर से बस में हडसर तक पहुंचा जा सकता है. इसके बाद हडसर से शुरू होती है पैदल यात्रा. हडसर से धन्छो और गौरीकुंड होते हुए मणिमहेश तक पहुंचा जा सकता है. गौरीकुंड से यदि कमल कुंड जाना हो, तो इसकी दूरी तीन किलोमीटर है. हेलीकॉप्टर से भी यह सफर पूरा किया जा सकता है. भरमौर से गौरीकुंड तक पहुंचने में केवल सात मिनट का वक्त लगता है. इसके अलावा कुछ लोग यात्रा पूरा करने के लिए पहाड़ी घोड़े का भी सहारा लेते हैं. मणिमहेश पहुंचने के लिए लाहौल स्पीति से तीर्थ यात्री कुगति पास का भी सहारा लेते हैं. हालांकि भरमौर की ओर से जाने वाला रास्ता ज्यादा इस्तेमाल होता है. गौरीकुंड से मणिमहेश झील की दूरी केवल एक किलोमीटर है.


बेहद सुंदर है मणिमहेश का दृश्य


मणिमहेश झील के एक कोने में भगवान शिव की संगमरमर की छवि है. यहीं भक्त भगवान शिव की पूजा भी करते हैं. यहां पवित्र जल में स्नान लेने के लिए भक्तों की भारी भीड़ उमड़ी रहती है. झील और इसके आसपास का सुंदर दृश्य देखते ही बनता है. झील के शांत पानी में बर्फ की छुट्टियों के प्रतिबिंब भी बेहद खूबसूरत नजर आते हैं.


राधाष्टमी तक चलेगी पवित्र-पावन यात्रा


मणिमहेश यात्रा जन्माष्टमी के पवित्र दिन से आधिकारिक तौर पर शुरू हो चुकी है. यह यात्रा राधाष्टमी तक जारी रहेगी. बड़ा स्नान दोपहर 1:36 बजे से शुरु होगा और 23 सितंबर की 12:18 बजे तक चलेगा. स्थानीय प्रशासन ने लोगों से अपील की है कि वे पंजीकरण करवाकर ही यात्रा करें और जारी गाइडलाइन का पालन करें. यात्रियों को अपने साथ चिकित्सक प्रमाण पत्र लाने के लिए कहा गया है. आधार शिविर हडसर में स्वास्थ्य जांच के बाद ही भक्तों को आगे भेजा जाता है. इसके अलावा छाता, बरसाती, गर्म कपड़े और गर्म जूते रखने की भी हिदायत दी गई है. स्थानीय प्रशासन ने लोगों से नशे का सामान इस्तेमाल न करने के साथ सुबह 4 बजे से पहले और शाम 5 के बाद हडसर से यात्रा न करने की अपील की है.


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