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शिव भक्तों के लिए खुशखबरी! अगले महीने से शुरू होगी पवित्र मणिमहेश की यात्रा, जानें यहां पहुंचने का आसान रास्ता

Manimahesh Yatra Chamba 2024: हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले में भगवान मणिमहेश की यात्रा 26 अगस्त से शुरू होकर 13 सितंबर तक चलेगी. हर साल लाखों की संख्या में शिव भक्त यहां दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं.

Manimahesh Yatra Chamba: लंबे वक्त से मणिमहेश यात्रा के शुरू होने का इंतजार कर रहे शिव भक्तों के लिए खुशखबरी है. इस साल हिमाचल प्रदेश में भगवान मणिमहेश की यात्रा 26 अगस्त से शुरू होगी. यह यात्रा 13 सितंबर तक चलेगी. चंबा जिला प्रशासन की ओर से आयोजित बैठक में यात्रा के संबंध में फैसला लिया गया है. 

हर साल लाखों की संख्या में शिव भक्त यहां दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं. साल भर शिव भक्तों को इस यात्रा का इंतजार रहता है, जो जल्द ही खत्म होने वाला है. यहां भगवान शिव के मणि रूप में दर्शन होते हैं. इसी वजह से इस परम पावन स्थान को मणिमहेश के नाम से जाना जाता है. भक्त यहां झील में आस्था की डुबकी भी लगाते हैं.

मणिमहेश आने के हैं कई रास्ते
मणिमहेश झील के एक कोने में शिव की एक संगमरमर की छवि है, जिसकी पूजी की जाती है. यहां पवित्र जल में स्नान के बाद तीर्थ यात्री झील के परिधि के चारों ओर तीन बार जाते हैं. झील और उसके आसपास एक शानदार दृश्य दिखाई देता है. झील के शांत पानी में बर्फ की चोटियों का प्रतिबिंब छाया के रूप में प्रतीत होता है. 

यहां आने के लिए लाहौल-स्पीति से तीर्थयात्री कुगति पास से आते हैं. कांगड़ा और मंडी में से कुछ कवारसी या जलसू पास से आते हैं. यहां आने के लिए सबसे आसान रास्ता चंबा से है और यहां भरमौर से भी आया जा सकता है. यहां आने के लिए एचआरटीसी की बसें हडसर तक जाती हैं. हडसर और मणिमहेश के बीच एक महत्वपूर्ण स्थाई स्थान है, जिसे धन्चो के नाम से जाना जाता है. यहां तीर्थ यात्री आमतौर पर रात बिताते हैं और फिर अगले दिन की यात्रा शुरू करते हैं.

भरमौर से 21 किलोमीटर की है दूरी
मणिमहेश झील बुद्धिल घाटी में भरमौर से 21 किलोमीटर की दूरी पर है. यह झील कैलाश पीक (18 हजार 564 फीट) के नीचे 13 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है. हर साल भाद्रपद के महीने में हल्के अर्द्धचंद्र आधे के आठवें दिन इस झील पर एक मेला आयोजित किया जाता है. इस दिन शिव भक्त यहां पवित्र जल में आस्था की डुबकी लगाने के लिए इकट्ठा होते हैं. 

भगवान शिव इस मेले के अधिष्ठाता देवता हैं. माना जाता है कि वह कैलाश में रहते हैं. कैलाश पर एक शिवलिंग के रूप में एक चट्टान को भगवान शिव की अभिव्यक्ति माना जाता है. स्थानीय लोग पर्वत के आधार पर बर्फ के मैदान को शिव का चौगान कहते हैं. कैलाश पर्वत को अजय माना जाता है. अब तक इस चोटी को मापने में कोई सफल नहीं हुआ है. 

कैलाश से जुड़ी हैं अलग-अलग कहानी
कैलाश से जुड़ी हुई एक कहानी है कि एक बार एक गद्दी ने भेड़ के झुंड के साथ पहाड़ पर चढ़ने की कोशिश की और वह अपनी भेड़ों के साथ पत्थर में बदल गया है. माना जाता है कि प्रमुख चोटी के नीचे छोटी चोटियों की श्रृंखला चरवाहा और उसके झुंड के अवशेष हैं. एक अन्य किंवदंती है कि सांप ने भी इस चोटी पर चढ़ने की कोशिश की थी, लेकिन वह भी असफल रहा और पत्थर में बदल गया.

यह भी माना जाता है कि शिव भक्त कैलाश की चोटी केवल तभी देख सकते हैं, जब भगवान प्रसन्न होते हैं. खराब मौसम में जब चोटी बादलों के पीछे छिप जाती है, तो इसे भगवान की नाराजगी का संकेत माना जाता है.

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