Himachal Pradesh News: हर साल लाखों की संख्या में पर्यटक हिमाचल प्रदेश घूमने आते हैं. हिमाचल प्रदेश का किन्नौर जिला पर्यटकों की पसंद में सबसे ऊपर शुमार रहता है. किन्नौर घूमने के लिए आने वाले लोग अक्सर तरंडा ढांक को देखकर उत्साहित हो जाते हैं. सोशल मीडिया पर भी इसकी तस्वीर और वीडियो की भरमार है. जो लोग इस जगह पर अब तक जा नहीं सके, वह भी तस्वीर देखते ही तरंडा ढांक को पहचान जाते हैं. ढांक का मतलब गहरी खाई होता है. तरंडा ढांक से सड़क बनाने का काम बिलकुल भी आसान नहीं था.


किन्नौर के तरंडा ढांक की सड़क भारत को चीन की सीमा से जोड़ती है. जब इन पहाड़ों में सड़क बनाने का काम शुरू हुआ, उस समय किसी ने सोचा नहीं था कि इन विषम परिस्थिति वाले पहाड़ के बीच सड़क बनाई जा सकती हैं. इस सड़क के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले इंजीनियर राज बहादुर को आज भी याद किया जाता है. इंजीनियर राज बहादुर ने ही इस सड़क को बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. जहां-जहां की सड़क को बनाने में परेशानी आ रही थी, वहां राज बहादुर ने अपने उत्कृष्ट इंजीनियरिंग का प्रदर्शन करते हुए पहाड़ों के बीच से सर्पीली सड़कों का निर्माण किया.


राजबहादुर की उत्कृष्ट इंजीनियरिंग का नमूना
इंजीनियर राज बहादुर ही सड़क बनाने वाली टीम का नेतृत्व कर रहे थे. उनके नेतृत्व में पांगी, लाहौल, किन्नौर, काजा जैसे दुर्गम क्षेत्रों में सड़कों को निर्माण हुआ. रामपुर-सराहन सड़क और रोहड़ू के पास पुल का निर्माण में उनकी अहम भूमिका रही. इंजीनियर राज बहादुर ने देश के आजादी के बाद साल 1951 में हिमाचल लोक निर्माण विभाग में नौकरी शुरू की थी. उनका जन्म देहरादून में साल 1924 में हुआ था. लखनऊ से पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने हिमाचल लोक निर्माण विभाग में नौकरी शुरू की. किसी भी साधारण इंजीनियर की तरह वह अपनी नौकरी कर रहे थे, लेकिन उनके कौशल को पहचानते हुए उच्च अधिकारियों ने उन्हें ही इस कठिन काम को पूरा करने की जिम्मेदारी दी.




सड़क हादसे में गई थी इंजीनियर राजबहादुर की जान
इंजीनियर राज बहादुर की टीम के लोग उन्हें राजा कहकर पुकारा करते थे. वह अपनी टीम के मजदूरों की मदद के लिए हमेशा आगे रहा करते थे. उनकी टीम के लोग उन्हें अपने टीम लीडर के तौर पर बेहद पसंद किया करते थे. साल 1975 में 15 जनवरी के दिन 51 साल की उम्र में इंजीनियर राज बहादुर की मौत हो गई. वह अपने दो साथियों के साथ दिल्ली जा रहे थे. जिस जीप में इंजीनियर राज बहादुर सवार थे, उसे सोनीपत में एक तेज रफ्तार ट्रक ने टक्कर मार दी. इस हादसे में दो साथियों के साथ उनकी मौत हो गई थी. साल 1975 में इंजीनियर राज बहादुर सिंह पर 'कर्मयोगी' के नाम से एक लेख भी प्रकाशित हुआ था.


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