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Himachal Pradesh: इंग्लैंड से शिमला लाई गई बेल की मेंटेनेंस का हो रहा काम, 150 सालों से गूंज रही है इसकी आवाज
Shimla News: शिमला के ऐतिहासिक क्राइस्ट चर्च की स्थापना के करीब 25 साल बाद इंग्लैंड से बेल को शिमला लाया गया. ब्रिटिश शासन काल के दौरान यह बेल पूरे शिमला में गुंजायमान रही थी.
Shimla Christ Church: ऐतिहासिक इमारतों के लिए पहचान रखने वाला हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) का शिमला पूरी दुनिया में विख्यात है. ऐसी ही एक ऐतिहासिक इमारत है साल 1857 में बनी क्राइस्ट चर्च. यह क्राइस्ट चर्च न केवल शिमला की पहचान है, बल्कि ऐतिहासिक धरोहर भी है. इन दिनों क्रिसमस (Christmas) और न्यू ईयर के जश्न को लेकर यहां तैयारियां जोरों पर हैं. तैयारियों के बीच यहां करीब 150 साल पहले इंग्लैंड (England) से लाई गई बेल की मेंटेनेंस का काम किया जा रहा है.
यह कोई साधारण बेल नहीं है, बल्कि बेल मेटल से बने छह बड़े पाइप के हिस्से हैं. इन पाइप पर ए, बी, सी, डी, ई और एफ तक सूर हैं, जो संगीत के 'सा रे ग म प' की तरह ध्वनि करते हैं. इन पाइप पर हैमर यानी हथौड़े से आवाज होती है, जिसे रस्सी खींचकर बजाया जाता है. यह रस्सी मशीन से नहीं, बल्कि हाथ से खींचकर बजाई जाती है. यह बेल हर रविवार सुबह 11 बजे होने वाली प्रार्थना से पांच मिनट पहले बजाई जाती है. इसके अलावा क्रिसमस और न्यू ईयर के मौके पर रात 12 बजे इस बेल को बजाकर जश्न मनाया जाता है.
साल 1982 में खराब हो गई थी बेल
ब्रिटिश शासन काल के दौरान इस बेल की आवाज तारादेवी की पहाड़ियों तक सुनाई देती थी, लेकिन अब आबादी बढ़ने की वजह से चर्च के नजदीक के इलाकों में ही यह बेल सुनाई देती है. शिमला के ऐतिहासिक क्राइस्ट चर्च की स्थापना के करीब 25 साल बाद इंग्लैंड से बेल को शिमला लाया गया. ब्रिटिश शासन काल के दौरान यह बेल पूरे शिमला में गुंजायमान रही, लेकिन 100 साल का समय बीत जाने के बाद 1982 में यह बेल खराब हो गई, चूंकि यह बेल इंग्लैंड से लाई गई थी, ऐसे में इसके पुर्जे भारत में नहीं मिल पा रहे थे. पुर्जे और कारीगर न मिलने की वजह से यह बेल साल 2019 तक बंद पड़ी रही.
21 नवंबर 2019 को ठीक हुई बेल
अपने बचपन से ही हर रविवार प्रार्थना के लिए चर्च आते रहे डीन विक्टर ने साल 2017 में बेल को ठीक करने का जिम्मा संभाला. चंडीगढ़ और दिल्ली से अलग-अलग पुर्जे जुटाने के साथ उन्होंने शिमला के एक कारीगर से मदद ली. दो साल की कड़ी मेहनत और भाग-दौड़ के बाद डीन विक्टर ने 21 नवंबर 2019 को इस बेल को ठीक कर दिया. साल 2019 से यह बेल सही तरह से काम कर रही है. हालांकि पुरानी होने की वजह से इसकी समय-समय पर मेंटेनेंस करना बेहद जरूरी है. साल 2020-21 में कोरोना की वजह से यह बेल नहीं बजाई जाती थी. साल 2022 के क्रिसमस और नए साल के जश्न के लिए यह बेल मेंटेनेंस के बाद एक बार फिर पूरी तरह तैयार है. यह बेल शिमला पहुंचने वाले पर्यटकों के लिए नया अनुभव और शिमला के बाशिंदों के लिए अपनी पुरानी यादें ताजा करने वाला होगा.
क्या है शिमला क्राइस्ट चर्च का इतिहास?
शिमला का क्राइस्ट चर्च एशिया का दूसरा सबसे पुराना चर्च है. 9 सितंबर 1844 में इस चर्च की नींव कोलकाता के बिशप डेनियल विल्सन ने रखी और 1857 में इसका काम पूरा हो गया. इस चर्च को नियो गोथिक शैली में बनाया गया है. चर्च का सीजन कर्नल जे टी बालू ने तैयार किया था. शिमला के सर्द मौसम में 10 जनवरी 1857 को बनकर तैयार हुए इस चर्च के निर्माण में करीब 50 हजार रुपये खर्च आया था.
साल 1961 में चर्च के इमारत को हुआ था नुकसान
रिज मैदान पर बना यह शिमला का पहला चर्च था. इससे पहले ईसाई धर्म को मानने वाले अंग्रेज मॉल रोड पर टेलीग्राफ ऑफिस के नजदीक नॉर्थ बुक टेरेस पर प्रार्थना किया करते थे. आजादी के बाद साल 1961 में हुई भारी बर्फबारी की वजह से ऐतिहासिक चर्च की इमारत को काफी नुकसान हुआ था. भारी बर्फबारी की वजह से इमारत के साथ बने पिनेकल ध्वस्त गए थे. मौजूदा वक्त में शिमला का क्राइस्ट चर्च यहां का लैंडमार्क है. देश-विदेश से यहां पहुंचने वाले पर्यटक चर्च देखकर ही रिज मैदान की पहचान करते हैं.
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राजेश शांडिल्यसंपादक, विश्व संवाद केन्द्र हरियाणा
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