Himachal Pradesh News: हिमाचल प्रदेश में दिवाली (Diwali) के दूसरे दिन सदियों पुराने वार्षिक पत्थरों के मेले का आयोजन किया गया. शिमला (Shimla) से लगभग 30 किलोमीटर दूर धामी (Dhami) इस कार्यक्रम का आयोजन हुआ. गांवों के दो समूहों में पथराव के साथ इस उत्सव की शुरुआत धामी के पूर्व शासक हलोग की उपस्थिति में की गई. लगभग 50 मिनट कर ये आयोजन किया गया. इस कार्यक्रम का अंत तब हुआ जब पथराव कर रहे समूह में शामिल जमोग गांव के दलीप ठाकुर को पत्थर से चोट लगी, जिससे उनका खून भी बहने लगा.


सदियों पुरानी परंपरा के अनुसार, हलोग और जामोग गांव के निवासियों के बीच पथराव के परंपरा रही है. इस प्रतियोगिता के दौरान एक गोलाकार संरचना के एक तरफ हलोग और दूसरी तरह जामोग गांव के लोग खड़े होते है. जो एक दूसरे पर छोटे पत्थर फेंकते हैं. पत्थरों का मेला तक शुरू होता है जब नरसिंह देवता मंदिर के पुजारी संगीतकारों की एक टीम के साथ काली देवी मंदिर तक जाते हैं. वहीं “परंपराओं के अनुसार, त्योहार प्रतियोगिता का समापन तब तक नहीं होता जब तक घायल लोगों के घावों से खून नहीं बहने लगता. धामी के पूर्व शासक जगदीप सिंह ने कहा ग्रामीणों ने देवी काली के माथे पर खून का तिलक लगाया.


मानव बलि के समय से चली आ रही है परंपरा


बता दें कि यह परंपरा मानव बलि के समय से चली आ रही है. वर्षों पहले एक बार एक राजा की मृत्यु के बाद रानी ने सती होने से पहले इस क्रूर प्रथा को समाप्त कर दिया गया था. इसके बाद ये पत्थरों के मेले यानि एक दूसरे पर पत्थर फेंकने की इस नई परंपरा की शुरुआत हुई. इस परंपरा के पत्थरबाजी परंपरा के अनुसार जब कोई व्यक्ति घायल हो जाता है तो उसके खून से देवी को तिलक लगाया जाता है. जिसके बाद इस प्रतियोगिता का समापन होता है.


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