Himachal News: भारतीय जनता पार्टी के आलाकमान ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि वो ऐसा फैसला लेते है कि किसी ने सोचा तक नहीं हो. बीजेपी ने हिमाचल के लिए नए अध्यक्ष के तौर पर आश्चर्यजनक ढंग से डॉ. राजीव बिंदल की नियुक्ति की है. आलकमान के इस फैसले को देखकर तो यहीं कहा जा सकता है. 3 साल पहले मई महीने में डॉ. बिंदल ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था. इसके बाद जुलाई 2020 में कोरोना काल के बीच शिमला संसदीय क्षेत्र के सांसद सुरेश कश्यप को हिमाचल बीजेपी अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी गई. 


चौंका देने वाली है बिंदल की वापसी
आपको बता दें कि डॉ. बिंदल का इस्तीफा कथित पी.पी.ई. घोटाले के बाद हुआ था. ऐसे में किसी ने भी यह नहीं सोचा था कि डॉ. बिंदल की अध्यक्ष के तौर एक बार फिर वापसी हो सकती है. हाल ही में विधानसभा चुनाव हारे डॉ. बिंदल के लिए यह मौका किसी संजीवनी से कम नहीं है.


धूमल के नजदीकी हैं बिंदल
हिमाचल बीजेपी के नए सरदार डॉ. राजीव बिंदल पूर्व मुख्यमंत्री प्रो. प्रेम कुमार धूमल के नजदीकी माने जाते हैं. डॉ. बिंदल धूमल सरकार में स्वास्थ्य मंत्री के पद पर भी रहे. हिमाचल प्रदेश के राजनीतिक गलियारों में कुशल संगठक माने जाने वाले राजीव बिंदल पार्टी की नई दिशा और दशा तय करने वाले हैं. साल 2020 में 5 महीने के छोटे से कार्यकाल में ही डॉ. राजीव बिंदल ने पार्टी की वर्किंग को पूरी तरह बदल डाला था. बूथ लेवल के कार्यकर्ता से लेकर मंत्री और मुख्यमंत्री पार्टी के काम के लिए एक्टिव नजर आते थे.


एक सूत्र में पिरोने की चुनौती 
इससे पहले कि डॉ. राजीव बिंदल हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में जीत की रणनीति तैयार कर पाते, उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. बिंदल को अब बीजेपी ने एक अहम मौके पर पार्टी का अध्यक्ष बनाया है. मौजूदा वक्त में अलग-अलग गुटों में बंटी बीजेपी को एक सूत्र में पिरोने की चुनौती बिंदल के सामने रहने वाली है. डॉ. बिंदल ही अब हिमाचल बीजेपी की सियासी नब्ज़ पकड़ेंगे और दु:खी हुई नब्ज़ पकड़कर सही इलाज देंगे, जिसकी बीजेपी को जरूरत है.


हाशिए पर गया गुट होगा सक्रिय
डॉ. राजीव बिंदल के अध्यक्ष नियुक्त होने के बाद जानकार इसे नई दशा और दिशा देने वाला फैसला बता रहे हैं. जानकारों का मत यह भी है कि इससे हाशिए पर गया धूमल गुट एक बार फिर पार्टी में सक्रिय होगा. हालांकि डॉ. बिंदल के सामने सबसे बड़ी चुनौती गुटों को एक्टिव न कर पूरी पार्टी को ही एक्टिव करने की रहने वाली है. लोकसभा चुनाव में एक साल से भी कम समय रह गया है.


क्या पार्टी को मिलेगी नई जान?
पहले उपचुनाव और फिर विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद पार्टी कार्यकर्ता खासे हतोत्साहित हैं. ऐसे में बिंदल को एक बार फिर कार्यकर्ताओं को एक्टिव कर उनमें जोश भरने का भी काम करना होगा. 8 दिन बाद दो मई को शिमला नगर निगम के चुनाव हैं. यहां भी पार्टी की स्थिति इतनी मजबूत नजर नहीं आ रही. यह देखना भी दिलचस्प रहने वाला है कि इन आठ दिनों में डॉ. बिंदल पार्टी को चुनाव जिताने के लिए कौन-सी दिशा देते हैं. कुल-मिलाकर बीते 5 सालों से हाशिए पर गई बीजेपी का एक हिस्सा एक बार फिर सक्रिय होगा और पार्टी को नई जान मिलेगी.


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