Himachal: करंट लगने के बाद रजत कुमार ने गंवाए अपने हाथ, मुंह से लिखना सीख कर रहे साइकोलॉजी की पढ़ाई
Himachal Pradesh: रजत कुमार साल 2008 में बिजली का करंट लगने की वजह से अपने हाथ गंवा बैठे थे, लेकिन उन्होंने मुश्किलों के आगे कभी हार नहीं मानी. आज रजत हर किसी के लिए प्रेरणास्रोत हैं.
Himachal Pradesh News: हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में साइकोलॉजी की पढ़ाई कर रहे रजत कुमार हर किसी के लिए प्रेरणास्रोत हैं. साल 2008 में घर पर खेलते हुए बिजली का करंट लगा और रजत अपने दोनों हाथ गंवा दिए. आठ साल की मासूम उम्र में रजत शुरुआत में यह समझ नहीं सका कि उसने आखिर क्या खो दिया है. कुछ वक्त बीता, तो आगे बढ़ने के लिए रजत ने अपने रोजमर्रा के काम हाथ की जगह पैर से करना शुरू किया. स्कूल में पढ़ाई और लिखाई का वक्त आया, तब रजत कुमार ने माता-पिता और स्कूल टीचर्स की मदद से पैरों से लिखना सीखा. पेंटिंग का शौक रखने वाले रजत ने पैरों की मदद से ही पेंटिंग करना भी जारी रखा.
मूल रूप से जिला मंडी के सुंदर नगर के रहने वाले रजत कुमार अपने दादा की देहांत के बाद घर गए हुए थे. दादा के देहांत के दु:ख से दूर बाल मन रजत खेल में मशगूल था. खेलते-खेलते अचानक रजत ने हाथ में डंडा उठाया और उसे झंडे की तरह हिलाने लगा. तभी और डंडा साथ लगती एक बिजली की हाई टेंशन वायर पर जाकर लग गया. इससे रजत बुरी तरह झुलस गया. आनन-फानन में घरवाले रजत को अस्पताल ले गए. जैसे-तैसे रजत की जान बचाई गई, लेकिन इस हादसे में रजत को अपने हाथ गंवाने पड़े.
पहले लगा कोई खेल है!
एबीपी न्यूज को रजत ने बताया कि शुरुआत में उन्हें लगता था कि यह कोई खेल है. आज उनके हाथ गए हैं, तो कल किसी दूसरे दोस्त के हाथ इसी तरह गायब हो जाएंगे. दुनिया शायद ऐसी ही चलती है, लेकिन जब धीरे-धीरे रजत बड़े हुए तो उन्हें पता चला कि ऐसा उनके साथ तो दर्दनाक हादसा हुआ है. अब तो हाथ कभी वापस नहीं मिलेंगे. आगे का जीवन अब उन्हें इसी तरह जीना होगा.
पिता जयराम के कहने पर पहले रजत ने पैरों से लिखना सीखा. एक दिन रजत ने अपना पेंटिंग ब्रश दांतों की मदद से टेबल से उठाना चाहा, तो रजत को महसूस हुआ कि दांत से ज्यादा बेहतर पकड़ यानी ग्रिप बनती है. वह पैर की जगह दांत से भी लिख सकते हैं. रजत ने दांत में पेन फंसाकर लिखने का अभ्यास किया और इसमें प्रवीणता हासिल की. अब रजत अपनी दातों में पेन फंसा कर ही लिखते हैं. रजत की राइटिंग साफ-सुथरी होने के साथ खूबसूरत भी है. रजत अपनी मेहनत से हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में एमए (MA) साइकोलॉजी की पढ़ाई कर रहे हैं. रजत ने कभी परीक्षा देने के लिए किसी लेखक की मदद नहीं ली. वह परीक्षा में खुद ही अपना पेपर लिखते हैं. दसवीं और बारहवीं के साथ बोर्ड के एग्जाम के साथ कॉलेज के एग्जाम भी रजत ने खुद ही बिना किसी लेखक के मदद के दिए.
रजत ने NEET की परीक्षा भी की पास
रजत कुमार बचपन से ही डॉक्टर बनना चाहता था. बारहवीं की परीक्षा पास करने के बाद उसने NEET की भी परीक्षा पास कर ली, लेकिन हाथ न होने की वजह से मेडिकल कॉलेज ने रजत कुमार को दाखिला देने से इनकार कर दिया. इस मामले को लेकर रजत न्यायालय तक भी गए, लेकिन बाद में राहत न मिलने पर उन्होंने यह तय किया कि शायद डॉक्टर बन पाना उनके लिए संभव नहीं होगा. रजत बताते हैं कि उन्हें अपने मन को समझने में यह दो साल लग गए कि वह कभी डॉक्टर नहीं बन सकेंगे. रजत के पिता जयराम चाहते हैं कि वह आईएएस अधिकारी बने. रजत भी पिता के इसी सपने को साकार करना चाहता हैं, लेकिन साथ-साथ मन में टीचर बनने की भी लालसा है.
कुछ बड़ा हासिल करने के लिए आगे बढ़ रहे रजत
रजत कुमार बेहद सकारात्मक मनोदृष्टि के साथ जीवन में आगे बढ़ने का काम करते हैं. उन्हें पिता जयराम के साथ माता दिनेश कुमारी का भी भरपूर सहयोग मिलता है. म्यूजिक में बीए कर रहा छोटा भाई राहुल भी हर कदम पर साथ देता है. रजत चाहते हैं कि वह हर सपने को पूरा करें, जिसे वे बचपन से देखते आए हैं. रजत बताते हैं कि वह कभी भी ऐसा महसूस नहीं करते हैं कि भगवान ने उनसे कुछ छीना है. वे कुछ बड़ा हासिल करने के लिए सकारात्मक के साथ ही आगे बढ़ते हैं और दूसरों को भी ऐसा ही करने की प्रेरणा देते रहे हैं.