Himachal Pradesh News: मां की ममता और पिता के त्याग का कोई मोल नहीं होता. मां-बाप के प्यार पर हजारों किताबें लिखी जा सकती हैं, लेकिन जिंदगी की किताब में ऐसे भी पन्ने होते हैं. जहां बच्चों के लिए मरने-जीने वाले मां-बाप को बच्चों को खुद से दूर करना पड़ जाता है. शिमला में ऐसा ही देखने को मिला. यहां कुदरत ने मोती लाल के जीवन में ऐसा ही एक काला पन्ना लिखा था, जिसमें देखते ही देखते उनके हाथ से सब छिन गया. बीमार पिता मोती लाल को मजबूरी में अपनी दो बेटियों को बालिका आश्रम भेजना पड़ा.
मोती लाल दो साल पहले शिवरात्रि के दिन पैरालिसिस के शिकार हो गए. इसके बाद से वे चलने-फिरने में अक्षम हो गए. कुदरत ने ऐसा खेल रचा कि मोती लाल की बीमारी के दो महीने बाद ही धर्मपत्नी की भी मौत हो गई. मां अपने पीछे तीन नन्हीं बेटियों और एक मासूम बेटे को छोड़ गई. सबसे बड़ी बेटी अमीषा की उम्र 14, मुस्कान की उम्र 10, मनीषा की उम्र आठ और बेटे रेयांश की उम्र छह साल है. मां के साए के बिना और पिता की बीमारी की दुश्वारियां के बीच बच्चे ही पिता का ख्याल रखते हैं. रोजगार न होने की वजह से पिता के लिए घर का किराया देना भी मुश्किल हो रहा है.
पिता ने आंखों में आंसू के साथ बच्चों को किया खुद से दूर
मूल रूप से चौपाल के रहने वाले मोतीलाल का कहना है कि जब तक वे स्वस्थ थे, तब तक सब सही था. घर-परिवार का गुजर-बसर अच्छे से हो रहा था. परिवार भी खुशी से शिमला में रहता था. अचानक एक दिन पैरालिसिस अटैक पड़ गया. उसी दिन से जिंदगी बदल सी गई. पहले काम छूटा और फिर धर्मपत्नी का साथ भी छूट गया. दो साल तक जैसे-तैसे बच्चों की मदद से जीवन आगे बढ़ रहा है, लेकिन अब वे नहीं चाहते कि उनकी वजह से बच्चों का जीवन खराब हो जाए. ऐसे में उनके लिए चाइल्ड केयर इंस्टीट्यूट ही बेहतर जगह है. भविष्य में वे जब ठीक होंगे, तो अपने जिगर के टुकड़ों को वापस बुला लेंगे. बीमार पिता मोती लाल ने आंखों में आंसुओं के साथ बेटी गुनु और जोगो को खुद से दूर किया. मोती लाल प्यार से मुस्कान और मनीषा को इसी नाम से बुलाते हैं.
चाइल्ड वेलफेयर कमेटी ने की मदद
बीमार मोती लाल की आर्थिक हालात इतने खराब हैं कि वे हर महीने अपनी दवाई भी नहीं खरीद पाते. मजबूर होकर पिता ने स्वयंसेवियों के जरिए चाइल्ड वेलफेयर कमेटी से संपर्क साधा. चाइल्ड वेलफेयर कमेटी की चेयरमैन अमिता भारद्वाज की अध्यक्षता में टीम योगराज और अंजना ने पहुंचकर पिता की काउंसलिंग की. इसके बाद 10 साल की मुस्कान और आठ साल की मनीषा को बालिका आश्रम ले जाया गया. अब यह दोनों बेटियां दुर्गा नगर स्थित बालिका आश्रम से ही अपने आगे की पढ़ाई करेंगी.
मोती लाल की मदद के लिए भी जिला प्रशासन से होगी बात
चाइल्ड वेलफेयर कमेटी की अध्यक्ष चेयरमैन अमिता भारद्वाज ने पिता को बड़ी बेटी अमीषा और छोटे बेटे रेयांश को भी आश्रम भेजने के लिए मन बनाने को कहा है, ताकि बच्चों का भविष्य सुरक्षित हो सके. वह बीमार मोती लाल की मदद के लिए भी जिला प्रशासन से संपर्क करेंगी. पिता मोती लाल ने अपनी दोनों बेटियों को दिल पर पत्थर रखकर चाइल्ड वेलफेयर कमिटी के साथ भेजा, ताकि उनका भविष्य सुरक्षित हो जाए. पिता मोती लाल चाहते हैं कि वह जल्द ठीक हो जाए ताकि बच्चों को वापस अपने पास बुला सके.
दोनों बच्चों को ले जाया गया चाइल्ड केयर इंस्टीट्यूट
चाइल्ड वेलफेयर कमेटी के अध्यक्ष अमिता भारद्वाज ने कहा कि उनके पास स्वयंसेवियों के जरिए जैसे ही परिवार की जानकारी आई. उन्होंने तत्काल बच्चों को बालिका चाइल्ड केयर इंस्टीट्यूट पहुंचाने की योजना बनाई. चाइल्ड हेल्पलाइन की टीम के साथ मिलकर पिता की काउंसलिंग के बाद दोनों बच्चियों को बालिका आश्रम भेजा जा रहा है. यहां बच्चियों की पढ़ाई का विशेष ध्यान रखा जाएगा. अमिता भारद्वाज ने कहा यह सही है कि पिता के लिए बेटियों से दूर होना बेहद दु:खदायी है, लेकिन इससे बच्चियों का भविष्य सुधरेगा. पिता जब अपना मन बना लेंगे, तो उनकी बड़ी बेटी अमीषा और छोटे बेटे रेयांश को भी आश्रम ले जाया जाएगा, ताकि उनका भविष्य भी संवर सके. भविष्य में जब मोती लाल की तबीयत सुधरेगी, तो वे बच्चों को वापस अपने पास बुला सकते हैं.
सरकार से कोई मदद नहीं, पड़ोसी ही हैं 'मसीहा'
बेहद हैरानी की बात है कि शिमला शहर में ही रहने वाले मोती लाल को सरकार-प्रशासन की तरफ से कोई मदद नहीं मिलती. न तो उन्हें सहारा योजना के तहत पेंशन मिलती है और न ही उनका हिम केयर कार्ड बना है. दवाई लेने के लिए भी शिमला से दूर जाना पड़ता है. टैक्सी से आने-जाने और फिर दवाई का खर्च इतना है कि वे हर महीने इतना पैसा नहीं खर्च सकते. मुश्किल के समय में मोती लाल के भाइयों का भी उन्हें कोई साथ नहीं मिलता. सिर्फ पड़ोसी ही मदद के लिए आगे आते हैं.
मकान मालिक ने भी नहीं लिया किराया
मोती लाल जिस मकान में रहते हैं वहां मकान मालिक ने उनसे बीते एक साल से किराया तक नहीं लिया है. मोती लाल को जरूरत है सरकार-प्रशासन की मदद की. दरकार है उन योजनाओं के लाभ की, जिसके वे हकदार हैं. जन हितैषी होने का दावा करने वाली सरकार को मोती लाल की मदद के लिए आगे आना चाहिए, ताकि वह जल्द से जल्द स्वस्थ हो और एक बार फिर बच्चों को अपने पास बुला सकें. मोती लाल नहीं चाहते कि उन्हें काकी और चीकू को भी खुद से दूर करना पड़े. काकी बड़ी बेटी अमीषा और चीकू छोटे बेटे रेयांश के घर का नाम है.