Himachal Pradesh: 2010 में गिरा था रिवोली थिएटर का पर्दा, अब गिरेगी ऐतिहासिक इमारत...फिल्म दीवानों के लिए युग का अंत
Shimla News: साल 1930 के दशक में इसे दिल्ली के एक व्यापारी बद्री प्रसाद सेठ ने खरीदा और यहां थिएटर की शुरुआत की. साल 1947 में आजादी के बाद यहां फिल्म देखने वालों की आमद बढ़ने लगी.
Shimla Rivoli Theater: फिल्म का पर्दा उठते ही शिमला का रिवोली थिएटर तालियों और सीटियों से आवाज से गूंज उठता था. बॉलीवुड के फनकारों के एक एक्शन से थिएटर में होने वाले शोर से बिल्डिंग के साथ बाजार में भी सिहरन पैदा हो उठती थी. ठीक इसी तरह उस समय सन्नाटा भी पसर जाता, जब कोई भावुक सीन पर्दे पर आता. भारी भीड़ होने के बावजूद ऐसा लगता मानो थिएटर में कोई मौजूद न हो.
आज ऐसा ही सन्नाटा पसर चुका है इस ऐतिहासिक रिवोली थिएटर में. थिएटर का पर्दा तो पहले ही इमारत असुरक्षित घोषित होने के बाद साल 2010 में गिर गया और अब इमारत भी गिरने जा रही है. कुछ वक्त बाद यह इमारत मिट्टी के ढेर में तबदील होकर सिर्फ इतिहास के पन्नों का हिस्सा बनकर रह जाएगी.
कैसे बना था रिवोली थिएटर?
साल 1925 में यहां मुर्गी खाना हुआ करता था. यह जमीन नाहन के राजा की थी. 1930 के दशक में इसे दिल्ली के एक व्यापारी बद्री प्रसाद सेठ ने खरीदा और यहां थिएटर की शुरुआत की. साल 1947 में आजादी के बाद यहां फिल्म देखने वालों की आमद बढ़ने लगी. जैसे-जैसे समय बीतता गया, वैसे-वैसे यहां फिल्म के दीवानों की संख्या भी बढ़ती चली गई. यहां कॉलेज पढ़ने वालों की संख्या अमूमन ज्यादा रहा करती थी. करीब 200 लोगों की क्षमता वाला रिवोली थिएटर शिमला का एक अकेला ऐसा थिएटर था, जहां हॉलीवुड फिल्म भी दिखाई जाती थी. शाम के वक्त यहां फिल्म देखने वालों की भारी भीड़ लगी रहती थी. यह शिमला का एक अकेला ऐसा थिएटर था, जहां एक ही परिवार की तीन पीढ़ियों ने फिल्म देखने का मजा लिया है. सिंगल स्क्रीन वाले इस थिएटर में भारी-भरकम मशीन की मदद से फिल्म दिखाई जाती थी.
टिकटों के रंग में भी छिपी थी खास बात!
1980 के दशक में यहां फिल्म देखने के लिए गैलरी की टिकट पांच रुपये, बैक हॉल की टिकट चार रुपये और फ्रंट हॉल की टिकट तीन रुपये की हुआ करती थी. एक दिन में यहां लगने वाले अलग-अलग शो की टिकट के रंग भी अलग हुआ करते थे. टिकट के रंग हरा, लाला, नीला और सफेद होता था. टिकट के रंग अलग करने की वजह एक टिकट पर दो बार एंट्री को रोकने की कोशिश थी. उस वक्त लोगों में फिल्म देखने की ऐसी दीवानगी हुआ करती थी कि वे पांच रुपये की टिकट को ब्लैक में दस रुपये चुकाकर भी खरीदा करते थे. अब रिवोली के टिकटों के रंगों की यादों की तरह ही थिएटर से जुड़ी लोगों की यादें भी यहां मिट्टी के ढेर में समाने वाली हैं.
फिल्म थिएटर पर मंडरा रहे संकट के बादल!
शुरुआती दौर में राजधानी शिमला में चार थिएटर हुआ करते थे. इनमें रीगल, रिवोली, रिट्ज और शाही थिएटर लोगों की पसंद थे. शहर के इन ऐतिहासिक थिएटरों में अब अकेला शाही थिएटर ही बचा है. इसके अलावा शिमला आईएसबीटी में मल्टीप्लेक्स स्क्रीन का एक फिल्म हॉल है. लोगों का ऑनलाइन और OTT कंटेंट की तरफ रुझान बढ़ने की वजह से भी फिल्म थिएटर में नाम मात्र की भीड़ नजर आती है.
क्या फिल्म थिएटर में फिर लौटेगी भीड़?
शिमला के मशहूर शाही थिएटर के मालिक साहिल शर्मा मानते हैं कि ऑनलाइन कंटेंट बढ़ने के साथ फिल्म में बेहतर कंटेंट की कमी के चलते लोगों का रुझान कम हुआ है. साहिल शर्मा बताते हैं कि यह पहली बार नहीं है, जब फिल्म थिएटर पर इस तरह का संकट आया हो. इससे पहले शुरुआती दौर में टीवी के आने पर भी ऐसा ही संकट आया था. दूरदर्शन में जब रामायण का प्रसारण किया जाने लगा, उस समय भी थिएटरों से भीड़ गायब हो गई. उन्हें विश्वास है कि आने वाले समय में बेहतरीन कंटेंट के साथ सिनेमा थिएटर एक बार फिर वापसी करेंगे.