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Himachal Pradesh Politics: हिमाचल प्नदेश ने आम आदमी पार्टी की उम्मीदों पर फेरा झाड़ू! आखिर किन वजहों से पिछड़ गई AAP?

Himachal Pradesh: एक-दो सीट छोड़कर AAP की स्थिति किसी अन्य सीट पर मजबूत नजर नहीं आती, लेकिन क्या ऐसे में आम आदमी पार्टी को हल्के में लेना चाहिए? जानकार मानते हैं कि इस तरह की गलती नहीं की जानी चाहिए.

Himachal Pradesh: देश के राजनीतिक इतिहास में आम आदमी पार्टी पहली पार्टी है, जिसने अपने गठन के 10 साल के भीतर ही दो राज्यों में अपनी सरकार बना ली. पहले दिल्ली और फिर पंजाब में झाड़ू चलाने के बाद आम आदमी पार्टी मार्च के महीने में तेजी से हिमाचल प्रदेश की तरफ बढ़ी. सियासी तूफान मचाने वाली आम आदमी पार्टी की एंट्री देखकर कुछ वक्त के लिए ऐसा लगा कि मानो अब बीजेपी को प्रदेश में टक्कर कांग्रेस नहीं बल्कि आम आदमी पार्टी देगी. इसके बाद समय बीतता चला गया और आम आदमी पार्टी धीरे-धीरे ठंडी पड़ती चली गई. हम सिलसिलेवार ढंग से समझते हैं कि आखिर आम आदमी पार्टी के खिलाफ वह कौन-सी बातें रहीं जिससे हिमाचल ने AAP की उम्मीदों पर झाड़ू फेर दिया.

हिमाचल में बदले जा रहे हैं मुख्यमंत्री
हिमाचल प्रदेश में जोरों से प्रचार कर रही आम आदमी पार्टी ने अप्रैल के महीने में एक सनसनीखेज दावा किया. दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने मंडी में छह अप्रैल को रोड शो के दौरान कहा कि हिमाचल प्रदेश में बड़ा बदलाव होने जा रहा है. बीजेपी आलाकमान मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की जगह अनुराग ठाकुर को मुख्यमंत्री बनाने जा रही है. दावा बहुत बड़ा था और यह बात कोई राह चलता आदमी नहीं बल्कि एक प्रदेश का उपमुख्यमंत्री कह रहा था. प्रदेश में सियासी हलचल बढ़ी. सभी मनीष सिसोदिया की बात सच होने का इंतजार करने लगे, लेकिन तभी लोगों को ध्यान दिलाया गया कि आम आदमी पार्टी के नेता अक्सर ऐसा बयान देते रहते हैं जो अनुमानों और आशंकाओं पर ही निर्भर होते हैं. सात जून को मनीष सिसोदिया की शिमला में प्रेस वार्ता के दौरान मीडिया ने उनसे पूछा कि दो महीने पहले उनकी कही बात अब तक सच नहीं हो सकी है. सिसोदिया ने मुस्कुराहट के साथ बात टालते हुए कहा कि कभी-कभी डर से आलाकमान फैसला बदल देता है.

29 मई को मूसेवाला की हत्या से खिलाफ हुआ माहौल
मार्च महीने में बनी पंजाब में नई नवेली आम आदमी पार्टी की सरकार पर मई का अंत आते-आते सिद्धू मूसेवाला हत्याकांड का एक बड़ा कलंक लग गया. 28 मई को ही सिद्दू मूसेवाला समेत कई बड़े लोगों की सिक्योरिटी हटाई गई. इसका प्रचार सोशल मीडिया पर जोरों-शोरों से किया गया.  इसके बाद 29 मई को ही सिद्धू मूसेवाला की हत्या कर दी गई. सिद्धू की हत्या भले ही पंजाब से जुड़ा हुआ मसला था, लेकिन इसका असर हिमाचल प्रदेश में भी साफ तौर पर देखने को मिला. बीजेपी-कांग्रेस के साथ आम जनता ने भी आम आदमी पार्टी के नेताओं से पूछा कि आखिर पंजाब की कानून-व्यवस्था नजर क्यों नहीं आ रही? सिद्धू मूसेवाला की हत्या ने आम आदमी पार्टी की हिमाचल चढ़ाई को रोकने में अहम भूमिका निभाई.

चुनाव प्रभारी सत्येंद्र जैन की गिरफ्तारी
हिमाचल के आम आदमी पार्टी के चुनाव प्रभारी सत्येंद्र जैन प्रदेश के अलग-अलग इलाकों में जाकर जनता को जोड़ने में जुटे हुए थे. हिमाचल प्रदेश में किसी बड़े चेहरे की खोज सत्येंद्र जैन भी नहीं कर पा रहे थे. तभी मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़े एक मामले में ईडी ने उनको गिरफ्तार कर लिया. आम आदमी पार्टी सत्येंद्र जैन की जमानत का इंतजार करती रही, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. हिमाचल प्रदेश के चढ़ते सियासी पारे के बीच आम आदमी पार्टी चुनाव में ठंडी पड़ती नजर आई. फतेहपुर से राजन सुशांत के अलावा आम आदमी पार्टी में कोई बड़ा चेहरा शामिल नहीं हुआ. राजन सुशांत भी आम आदमी पार्टी से नाराज होकर ही अपनी नई पार्टी बनाने की राह खोजने में जुटे थे.

पांच महीने बाद हिमाचल 'आप' को मिला नया प्रभारी
हिमाचल प्रदेश में आम आदमी पार्टी के चुनाव प्रभारी सत्येंद्र जैन की जमानत का इंतजार करते-करते  पार्टी के कार्यकर्ता भी थक गए. इसके बाद आलाकमान ने 14 अक्टूबर को पंजाब सरकार में मंत्री हरजोत बैंस को प्रभारी बनाया, लेकिन अब तक देर हो चुकी थी. आम आदमी पार्टी ने शुरुआती दौर में जो जगह बनाई थी, वह भी उसके हाथ से छिटक चुकी थी. आम आदमी पार्टी ने सभी 68 विधानसभा क्षेत्रों में अपने उम्मीदवार तो घोषित किए, लेकिन उसे नाम मात्र की सीटों पर ही मजबूत उम्मीदवार मिले. कुल 68 में से 67 विधानसभा क्षेत्रों में चुनाव लड़ रही आम आदमी पार्टी के सामने कुछ एक सीटों को छोड़ प्रत्याशियों की जमानत बचाने की ही बड़ी चुनौती है.

हिमाचल में AAP का नाममात्र प्रचार
हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए जिस समय कांग्रेस बीजेपी ताबड़तोड़ प्रचार में जुटी थी. प्रचार में बीजेपी ने 140 और कांग्रेस ने 70 रैलियों के जरिए प्रदेश में माहौल बनाने का काम किया. उस समय आम आदमी पार्टी के बड़े नेता अपने प्रत्याशियों को उनके हाल पर छोड़ गए. आखिरी वक्त में अरविंद केजरीवाल ने तीन नवंबर को सोलन में रोड शो किया. वहां भी उन्हें विरोध के चलते पांच मिनट में ही अपना भाषण खत्म करना पड़ा. इसके अलावा छह नवंबर को कांगड़ा में उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और नौ नवंबर को हमीरपुर में भगवंत मान के रोड शो के अलावा हिमाचल में किसी बड़े नेता ने प्रचार नहीं किया. आम आदमी पार्टी की ओर से सत्येंद्र जैन को अपने स्टार प्रचारकों की सूची में रखना भी सवालों के घेरे में रहा.

हिमाचल से गुजरात शिफ्ट हुआ AAP का फोकस
आम आदमी पार्टी ने आखिरी समय में अपना फोकस हिमाचल प्रदेश से हटाकर गुजरात की तरफ शिफ्ट कर लिया.  उसको हिमाचल के मुकाबले गुजरात में अपनी ज्यादा संभावना नजर आई. AAP दो राज्यों में सरकार बनाने वाली पार्टी है. तीसरे राज्य में साढ़े सात फ़ीसदी वोट हासिल कर उसके सामने राष्ट्रीय दल की सूची में शामिल होने का भी लक्ष्य है. एक तथ्य यह भी है कि आम आदमी पार्टी अब तक बीजेपी को सत्ता से हटाने का काम नहीं कर सकी है. दिल्ली और पंजाब दोनों ही राज्यों में कांग्रेस का ही शासन था.आम आदमी पार्टी ने उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और गोवा में चुनाव लड़कर बीजेपी के सामने चुनौती पेश करने की कोशिश की, लेकिन सफल नहीं हो सकी.

क्या आम आदमी पार्टी को हल्के में लेना गलती होगी?
एक-दो सीट छोड़कर आम आदमी पार्टी की स्थिति किसी अन्य सीट पर मजबूत नजर नहीं आती, लेकिन क्या ऐसे में आम आदमी पार्टी को हल्के में लेना चाहिए? जानकार मानते हैं कि इस तरह की गलती नहीं की जानी चाहिए. क्योंकि आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी कई सीटों पर कांग्रेस-बीजेपी के प्रत्याशियों का समीकरण बिगाड़ने जा रहे हैं. हिमाचल प्रदेश में 20 से ज्यादा सीटें ऐसी हैं, जहां जीत का मार्जन एक हजार वोट से भी कम रहता है. ऐसे में आम आदमी पार्टी के लिए प्रत्याशी खेल बिगाड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले हैं.

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