ScrubTyphus in Himachal Pradesh: हिमाचल प्रदेश में मॉनसून जमकर तबाही मचा रहा है. इस बीच स्क्रब टायफस (Scrub Typhus) बीमारी भी इन दिनों लोगों को परेशान कर रही है. प्रदेश भर में अब तक स्क्रब टायफस के 242 मामले सामने आ चुके हैं. हालांकि राहत की बात यह है कि अब तक स्क्रब टायफस की वजह से किसी भी मरीज की मौत नहीं हुई है. स्वास्थ्य विभाग ने लोगों से एहतियात बरतने की भी अपील की है. 


अमूमन घास में पाए जाने वाले पिस्सू से यह बीमारी फैल जाती है. स्क्रब टायफस का ज्यादा खतरा खेतों में काम करने वाले किसान और बागवानों को रहता है. पशुओं के लिए घास काटने गई महिलाएं स्क्रब टायफस का ज्यादा शिकार होती हैं. साल 2019 में स्क्रब टायफस के 1 हजार 597 मामले दर्ज किए गए. इसी साल 14 मरीजों की इस बीमारी की वजह से जान चली गई. वहीं, साल 2020 में 565 मामले की रिपोर्ट हुए और छह मरीजों की जान गई. साल 2021 में 977 मामले आए और सात मरीजों की जान गई.


क्या हैं स्क्रब टाइफस के लक्षण?
इसी तरह साल 2022 में 1 हजार 527 मामले रिपोर्ट किए गए, जबकि 26 मरीजों को अपनी जान गंवानी पड़ी. कीट के काटने से शरीर पर फफोलेनुमा काली पपड़ी का निशान पड़ जाता है. इसके बाद कुछ ही समय में ये घाव बन जाता है. स्क्रब टाइफस के लक्षणों में मरीज को तेज बुखार, सिर दर्द, मांसपेशियों में अकड़न और शरीर में टूटन बनी रहती है. बीमारी के लक्षण नजर आने पर तुरंत अस्पताल में जांच करवा लेनी चाहिए. आमतौर पर ये झाड़ीदार और नमी वाले इलाकों में पाया जाता है


जीवाणु जनित संक्रमण है स्क्रब टायफस 
बरसात के दौरान घास, झाड़ियों और गंदगी वाले क्षेत्र में मवेशियों से कीट चिपक जाता है और मवेशियों के संपर्क में आकर घरों पर लोगों को काट लेता है. मवेशी और जानवरों वाले घरों में कीट का खतरा अधिक रहता है. कीट के संपर्क में आने से बचने का बेहतर उपाय है, पूरे बांह के कपड़े और पैरों में जूते. स्क्रब टाइफस एक जीवाणुजनित संक्रमण है. इससे संक्रमित मरीज की प्लेटलेट्स कम होने लगती है.


इतना ही नहीं रोगी को सांस की परेशानी, पीलिया, उल्टी, जी मिचलाना, जोड़ों में दर्द और तेज बुखार आता है. शरीर पर काले चकत्ते और फलोले भी पड़ जाते हैं. इसका असर लिवर, किडनी और ब्रेन पर भी पड़ता है. यह प्लेटलेट्स को तेजी से कम करता है.


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