Himachal Pradesh: छात्र नेताओं के खून से सना है छात्र संघ चुनाव का इतिहास, राजनीतिक चकाचौंध का दूसरा सिरा जानलेवा!
हिमाचल प्रदेश के शिक्षण संस्थानों में होने वाली राजनीति छात्र संगठन के नेताओं को एक-दूसरे की जान का दुश्मन बना देती है. यहां सबसे पहले साल 1979 में एबीवीपी के सुरेश सूद की हत्या हुई.
Himachal Pradesh News: जिस छात्र राजनीति से हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) की राजनीति के शीर्ष पर पहुंचे नेता चकाचौंध में जी रहे हैं. उस छात्र राजनीति का दूसरा सिरा बेहद खतरनाक रहा है. छात्र राजनीति से निकलकर हिमाचल प्रदेश की राजनीति में अपना नाम बनाने वाले नेताओं की फेहरिस्त बहुत लंबी है. इस सूची में बीजेपी (BJP) राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा (J. P. Nadda) और मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू (Sukhvinder Singh Sukhu) समेत सैकड़ों नेताओं के नाम शामिल किए जा सकते हैं, लेकिन इसी राजनीति ने कई छात्र नेताओं की जान लेने का भी काम किया है.
हिमाचल प्रदेश की गिनती देश के सबसे शांतिप्रिय राज्य में होती है. लेकिन प्रदेश के शिक्षण संस्थानों में होने वाली राजनीति छात्र संगठन के नेताओं को एक-दूसरे की जान का दुश्मन बना देती है. साल 2014 से हिमाचल प्रदेश में छात्र संघ चुनावों पर प्रतिबंध है. हिमाचल प्रदेश के इतिहास में अब तक चार अलग-अलग तारीखों पर छात्र संघ चुनाव बंद किए जा चुके हैं. चुनाव बंद किए जाने की मुख्य वजह राजनीतिक हत्याएं भी रही हैं. हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय ( Himachal Pradesh University) का परिसर और छात्रावास छात्र नेताओं के खून के गवाह हैं.
साल 1979 में हुई थी पहली हत्या
सबसे पहले साल 1979 में एबीवीपी के सुरेश सूद की हत्या हुई. साल 1985 में हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के परिसर में एनएसयूआई के छात्र नेता भारत भूषण की हत्या हुई. इसके बाद साल 1985 से साल 1987 तक छात्र संघ चुनाव पर रोक रही. साल 1988 में एचपीयू हॉस्टल में लोकप्रिय छात्र नेता नासिर खान की हत्या कर दी गई. नासिर खान की निर्मम हत्या के बाद साल 1988 से साल 1990 तक चुनाव पर बैन लगाया गया.
कैफिटेरिया के पास एबीवीपी नेता की मौत
इसके बाद साल 1995 में एचपीयू कैफिटेरिया के पास एबीवीपी नेता कुलदीप पठानिया की मौत हुई. उनकी मौत के बाद पांच साल तक छात्र संघ के चुनाव पर प्रतिबंध रहा. साल 2000 में यह प्रतिबंध हटाया गया. साल 2000 से लेकर साल 2014 तक हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के साथ प्रदेश के अलग-अलग शिक्षण संस्थानों में हिंसक घटनाएं दर्ज की जाती रही.
साल 2014 में हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति एडीएन वाजपेई पर कथित हमले के चलते छात्रसंघ चुनावों पर रोक लगाई गई. इस दौरान एक साल के भीतर ही शिमला में 170 से ज्यादा एफआईआर और 15 से ज्यादा छात्रों को निष्कासित किया गया था. इस दौरान छात्रों पर दर्ज किए गए मामले आज भी न्यायालय में लंबित हैं. साल 2014 के बाद से अब तक हिमाचल प्रदेश के सभी शिक्षण संस्थानों में छात्रसंघ चुनाव पर प्रतिबंध है.
दिल दहला देने वाली है नासिर खान की हत्या की कहानी
एनएसयूआई के तत्कालीन राज्य महासचिव नासिर खान की हत्या की कहानी तो दिल दहला देने वाली है. नासिर खान छात्रों के बीच बेहद लोकप्रिय थे. 7 अगस्त 1988 को कुछ गुंडों ने विश्वविद्यालय छात्रावास में घुसकर उन पर हमला किया. नासिर खान पर उनके हॉस्टल में घुसकर तेज धारदार हथियारों से हमला किया गया. इस हमले में नासिर खान बुरी तरह जख्मी हो गए. इसके बाद आनन-फानन में उन्हें शिमला के आईजीएमसी अस्पताल ले जाया गया. हालत नाजुक होने की वजह से उन्हें पीजीआई चंडीगढ़ रेफर किया गया. जहां 11 अगस्त 1988 को उन्होंने पीजीआई में अंतिम सांस ली थी.