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'सुख की सरकार' में कितनी बदली व्यवस्था, क्या है गारंटी वाली कांग्रेस की हिमाचल में अगली चुनौतियां?

One Year Of Sukhu Goverment: हिमाचल प्रदेश में सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू नेतृत्व वाली सरकार 11 दिसंबर के दिन अपने कार्यकाल का एक साल पूरा करेगी. पहला साल सरकार के लिए चुनौतियों से भरा रहा.

HP News: साल 2022 में 8 दिसंबर का वह दिन था, जब 68 विधानसभा क्षेत्र वाले हिमाचल में 40 सीट पर जीत हासिल कर कांग्रेस ने बहुमत हासिल की. 10 दिसंबर को सुखविंदर सिंह सुक्खू को विधायक दल का नेता चुन लिया गया और 11 दिसंबर के दिन मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू और उपमुख्यमंत्री मुकेश अग्निहोत्री ने पद व गोपनीयता की शपथ ली. कांग्रेस सरकार जनता को 10 गारंटी देकर सत्ता में पहुंची थी. ऐसे में कांग्रेस पहले से ही भली भांति यह जानती थी कि सत्ता का यह ताज उनके लिए कांटों भरा रहने वाला है. पहले ही दिन मुख्यमंत्री ने कहा कि वह सत्ता में सत्ता सुख के लिए नहीं, बल्कि व्यवस्था परिवर्तन के लिए आए हैं.

राज्य सचिवालय जाने से पहले बालिका आश्रम पहुंचे मुख्यमंत्री

बतौर मुख्यमंत्री शपथ लेने के बाद सुखविंदर सिंह सुक्खू राज्य सचिवालय न जाकर बालिका आश्रम गए. यहां उन्होंने निराश्रित बेटियों से मुलाकात की और उनका दु:ख दर्द जाना. यह पहली बार नहीं था, जब कोई मुख्यमंत्री शपथ लेने के बाद अनाथालय पहुंचा हो. लेकिन, इस बार बदलाव यह था कि सचिवालय से पहले अनाथालय जाने वाले सुखविंदर सिंह सुक्खू पहले मुख्यमंत्री थे. हर किसी को लगा कि यह एक रिवायत निभाई जा रही है, लेकिन ऐसा हुआ नहीं.

साल के पहले ही दिन सुख आश्रय कोष का गठन

साल 2023 की शुरुआत होते ही 1 जनवरी के दिन मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने 101 करोड़ रुपए से सुख आश्रय कोष की स्थापना की घोषणा की. सभी कांग्रेस विधायकों ने अपने एक महीने का वेतन इस कोष में दिया और फिर देश भर में इस योजना की चर्चा होने लगी. राज्य सरकार का यह कदम निराश्रितों को सहारा देने के लिए अहम साबित हुआ. राज्य सरकार ने निराश्रित बच्चों को 'चिल्ड्रन ऑफ स्टेट' का दर्जा दिया. इसके अलावा भर्ती में गड़बड़ी के आरोप के बीच हिमाचल प्रदेश कर्मचारी चयन आयोग को भंग करने का फैसला भी खासा चर्चाओं में रहा. अपने वादे के मुताबिक, सरकार ने ओल्ड पेंशन स्कीम की बहाली कर देशभर में खूब चर्चाएं भी बटोरी.

ग्रीन बजट के रूप में पेश किया हिमाचल का हिसाब-किताब

मार्च, 2023 में मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह ने बतौर वित्त मंत्री अपना पहला बजट पेश किया. इस बजट को ग्रीन बजट का नाम दिया गया. बजट में कई योजनाओं का जिक्र था, लेकिन सभी का ध्यान ग्रीन एनर्जी स्टेट की तरफ गया. मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कहा कि उनकी सरकार 31 मार्च, 2026 तक हिमाचल प्रदेश को हरित ऊर्जा राज्य बनाने के लक्ष्य को लेकर आगे चल रही है. इसके बाद राज्य सरकार ने ट्रांसपोर्ट विभाग को देश का पहला ऐसा विभाग बना दिया, जो पूरी तरीके से हरित ऊर्जा पर चलने वाला विभाग बना. मुख्यमंत्री ने हिमाचल प्रदेश में बिगड़ी हुई अर्थव्यवस्था को चार साल में पटरी पर लाने का वादा किया और 10 साल में हिमाचल प्रदेश को नंबर वन बनाने की भी बात कही. मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू का व्यवस्था परिवर्तन और नया दौर वाला नारा भी लगातार सुर्खियों में है.

हिमाचल में आपदा ने अस्त-व्यस्त की व्यवस्था

हिमाचल प्रदेश भर में मंत्रिमंडल विस्तार का इंतजार बरकरार रहा. इसी इंतजार के बीच जुलाई-अगस्त के महीने में हिमाचल प्रदेश में आई आपदा ने हर किसी को हिला कर रख दिया. बीते 50 सालों में न तो कभी किसी ने ऐसी आपदा देखी थी और न ही भविष्य में कोई देखना चाहेगा. प्रदेश में बारिश की वजह से करीब 10 हजार करोड़ रुपए का नुकसान हुआ. प्रदेश में 500 से ज्यादा लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी. यह वह वक्त था जब हर कोई सहमा हुआ था, लेकिन इस बीच मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने ग्राउंड जीरो पर उतरकर मोर्चा संभाला और लोगों का साथ दिया. आपदा ने हिमाचल प्रदेश को बुरी तरह हिला कर रख दिया था.

सीएम निजी खाते से दिए 51 लाख रुपए

अगस्त महीने के अंत में राज्य सरकार ने मुख्यमंत्री आपदा राहत कोष- 2023 का गठन किया. इसमें प्रदेश के सभी लोगों से बढ़-चढ़कर सहयोग देने की अपील की गई. लोगों ने खूब सहयोग दिया. इस बीच मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने अपने निजी खातों से मुख्यमंत्री आपदा राहत कोष में 51 लाख रुपए की राशि दे दी. यह फैसला हर किसी को हैरान कर देने वाला था. आपदा प्रभावितों को मिलने वाले मुआवजे की राशि में भी राज्य सरकार ने भारी बढ़ोतरी की और प्रभावितों तक राहत पहुंचाने का काम किया. अब हिमाचल प्रदेश आपदा से उभर रहा है और राज्य सरकार अस्त-व्यस्त हुई व्यवस्था को वापस पटरी पर लाने की कोशिश में लगी हुई है.

किन मोर्चों पर विफल रही सुक्खू सरकार?

कहते हैं कि हर सिक्के के दो पहलू होते हैं. अगर सरकार ने अच्छा काम किया, तो कई ऐसे काम भी रहे जिन्हें सरकार अब तक नहीं कर सकी. इसकी वजह से न केवल सरकार को विपक्ष के हमले का सामना करना पड़ा, बल्कि जनता में भी सरकार की खूब किरकिरी हुई. सत्ता में आने से पहले कांग्रेस ने जनता को 10 गारंटी दी. इनमें मुख्य रूप से सभी की नजरें पहली कैबिनेट में मिलने वाले एक लाख रोजगार और महिलाओं को हर महीने मिलने वाले 1 हजार 500 रुपए पर थी. इसके अलावा, किसानों को भी गोबर खरीद का इंतजार था, लेकिन अब तक इन तीनों में से एक भी गारंटी पूरी नहीं हुई है. पहली कैबिनेट में एक लाख रोजगार का वादा भी पूरा नहीं हुआ. साथ ही महिलाओं को भी अब तक हर महीने 1 हजार 500 रुपए की मदद मिलना शुरू नहीं हुई है, जबकि कांग्रेस ने जनता से यह वादा किया था कि इससे महिलाएं घर का सिलेंडर खरीद सकेंगी. राज्य सरकार अब इस गारंटी को पूरा करने के लिए कई तरह की शर्तें भी लग रही है.

300 यूनिट मुफ्त बिजली के वादे का जिक्र नहीं

गोबर खरीद के नाम पर भी अब खाद खरीदने की ही बात हो रही है. इसके अलावा, अब तक कांग्रेस अपने वादे के मुताबिक 300 यूनिट मुफ्त बिजली भी जनता का उपलब्ध नहीं करवा सकी है. बागवानों के खुद फसल के दाम तय करने वाली गारंटी भी पूरी नहीं हुई है. प्रदेश में लंबित परीक्षाओं के रिजल्ट भी सरकार की किरकिरी का एक बड़ा कारण बने हुए हैं. प्रदेश के बेरोजगार युवा इंतजार कर रहे हैं परीक्षा परिणाम का, जो उन्होंने सालों पहले दिए. बेरोजगार युवा समाज और परिवार के दबाव की वजह से खासे परेशान हैं.

संस्थानों को डिनोटिफाई करने से जनता परेशान

सत्ता में आते ही कांग्रेस ने तत्कालीन भाजपा सरकार के आखिरी 6 महीने में खोले गए संस्थाओं को डिनोटिफाई करने का काम किया. सरकार ने तर्क दिया कि इन संस्थाओं को चुनावी फायदा लेने के लिए खोला गया था. साथ ही इस इन संस्थानों को चलाने से राज्य सरकार पर 500 करोड़ रुपए का अतिरिक्त बोझ पड़ता. राज्य सरकार ने एक ही लाठी से सबको हांका और ऐसे संस्थानों को भी बंद कर दिया, जहां लोगों को इसकी सख्त जरूरत थी. इसका विरोध न केवल मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी ने किया, बल्कि लोगों में भी इससे खासी नाराजगी रही. कई कांग्रेस विधायकों को भी अपने इलाके संस्थान डिनोटिफाई करने की वजह से लोगों के विरोध का सामना करना पड़ा. इसके अलावा प्रदेश में बीते कुछ वक्त से बिगड़ी कानून-व्यवस्था के चलते भी सरकार सवालों के घेरे में खड़ी हुई नजर आई.

अपनों से ही CM सुक्खू को चुनौती!

राजनीतिक दलों में गुटबाजी बेहद आम है, लेकिन हिमाचल कांग्रेस में यह समस्या पुरानी और जटिल है. सरकार और संगठन के बीच कभी तालमेल नहीं रहा. यह समस्या मौजूदा वक्त में भी साफ तौर पर नजर आ रही है. गाहे-बगाहे संगठन की ओर से सरकार के साथ संबंध में न होने की बातें सामने आती रहती हैं. यह भी सरकार के लिए चिंता का विषय बना हुआ है, क्योंकि साल 2024 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर यह समन्वय बेहद जरूरी है. इसके अलावा प्रदेश में खाली पड़े तीन मंत्री पदों को अब तक न भरे जाने की वजह से भी कई विधायकों में नाराजगी है. विधायकों के साथ उनके समर्थक भी खासे नाराज हैं. हालांकि अब मुख्यमंत्री का दावा है कि साल खत्म होने से पहले मंत्रिमंडल का विस्तार कर लिया जाएगा. वे आलाकमान से मिलने वाली हरी झंडी का इंतजार कर रहे हैं. सुक्खू सरकार का यह एक साल का कार्यकाल चुनौती भरा रहा. हालांकि अब देखना होगा कि आने वाले चार साल में सरकार क्या अपने वादों को पूरा कर पाती है या नहीं?

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