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Himachal Pradesh: आखिरी वक्त में कैबिनेट की सूची से कटा राजेश धर्माणी का नाम, लंबे इंतजार के बाद भी क्यों नहीं मिला मंत्री पद?

Himachal Pradesh Cabinet Expansion: घुमारवीं सीट से विधायक राजेश धर्माणी को मंत्रिमंडल में पद मिलना लगभग तय माना जा रहा था लेकिन आखिरी समय में उनका नाम हटा दिया गया.

Himachal Cabinet News: जिला बिलासपुर की घुमारवीं विधानसभा क्षेत्र से जीतकर विधायक बने राजेश धर्माणी का नाम हिमाचल प्रदेश मंत्रिमंडल की सूची में तय था. आखिरी वक्त में राजेश धर्माणी को मंत्रिमंडल की सूची से बाहर कर दिया गया. नाम कटने की वजह न तो उनके समर्थक समझ सके और न खुद राजेश धर्माणी.

बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा के गृह जिला बिलासपुर से कांग्रेस के लिए एक मात्र सीट जीतकर आने वाले राजेश धर्माणी को मंत्री पद की उम्मीद थी, लेकिन इस पर केंद्रीय आलाकमान के फार्मूला ने पानी फेर दिया. इंजीनियरिंग से राजनीति के क्षेत्र में आए राजेश धर्माणी अपनी ईमानदारी के लिए जाने जाते हैं. सौम्य, सरल और सहज स्वभाव वाले राजेश धर्माणी के समर्थक अब भी उन्हें मंत्री पद दिए जाने को लेकर उम्मीद लगाए बैठे हैं.

NIT हमीरपुर से की पढ़ाई

2 अप्रैल 1972 को जिला बिलासपुर के घुमारवीं में जन्मे राजेश धर्माणी ने एनआईटी हमीरपुर से बीटेक सिविल की पढ़ाई पूरी की. राजेश धर्माणी प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सचिव, यूथ कांग्रेस के महासचिव और जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रह चुके हैं. विधायक राजेश धर्माणी संवेदना चैरिटेबल सोसायटी के फाउंडर मेंबर भी हैं. यह सोसाइटी गरीब बच्चों की पढ़ाई के लिए काम करती है.

वीरभद्र सिंह के साथ शीत युद्ध

जिला बिलासपुर की घुमारवीं सीट से राजेश धर्माणी ने साल 2007 और साल 2012 में लगातार दो बार जीत हासिल की. साल 2012 में जीत हासिल करने के बाद तत्कालीन कांग्रेस सरकार में उन्हें मुख्य संसदीय सचिव का पद दिया गया. तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने उन्हें वन विभाग के साथ अटैच किया था. वीरभद्र सिंह और राजेश धर्माणी के बीच हमेशा सियासी शीत युद्ध चलता रहा. दोनों नेताओं ने कभी एक-दूसरे के खिलाफ कोई बयान नहीं दिया, लेकिन राजेश धर्माणी खुद को पद के साथ शक्तियां न दिए जाने को लेकर अक्सर नाराज रहते थे.

वीरभद्र सिंह को धर्माणी ने भेजा था इस्तीफा

राजेश धर्माणी ने नाराज होकर पहले 2 अक्टूबर 2013 को मुख्य संसदीय सचिव के पद से इस्तीफा दिया. इसके बाद साल 2014 के लोकसभा चुनाव में नुकसान के डर से उन्होंने 4 अक्टूबर के दिन इस्तीफा वापस भी ले लिया. इसके बाद दोनों नेताओं के बीच चल रहे सियासी शीत युद्ध में जब खटपट बढ़ी, तो उन्होंने 10 मई 2014 को एक बार फिर अपने पद से इस्तीफा दे दिया. राजेश धर्माणी की शिकायत थी कि सरकार में केवल उन्हें मुख्य संसदीय सचिव को मिलने वाली सुविधाएं दी गई हैं, शक्तियां नहीं.

सीएम के नजदीकी लोगों में शामिल धर्माणी 

साल 2017 के विधानसभा चुनाव में राजेश धर्माणी को बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा के नजदीकी माने जाने वाले राजिंदर गर्ग ने शिकस्त दे दी. साल 2022 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने हार का बदला लेते हुए तीसरी बार विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की. इस बार विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करने के बाद राजेश धर्माणी का मंत्री पद लगभग तय माना जा रहा था. उन्हें न केवल सरकार में काम करने का अनुभव है बल्कि वे मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के बेहद नजदीकी भी हैं.

केंद्रीय आलाकमान के फार्मूले में फिट नहीं बैठे धर्माणी?

वरिष्ठ पत्रकार अरविंद कंवर का कहना है कि कांग्रेस आलाकमान ने एक ऐसा फार्मूला तय किया जिसमें राजेश धर्माणी फिट नहीं बैठ सके. केंद्रीय आलाकमान चाहता है कि मंत्रिमंडल में जातीय समीकरण का विशेष ध्यान रखा जाए. ऐसे में राजेश धर्माणी के सामने समस्या खड़ी हो गई है. ब्राह्मण चेहरे के तौर पर उनके अलावा सुधीर शर्मा और संजय रतन भी मंत्री पद के दावेदार हैं. एक अन्य ब्राह्मण दावेदार रहे रघुबीर सिंह बाली को सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू पहले ही पर्यटन निगम के उपाध्यक्ष पद के साथ कैबिनेट रैंक दे चुके हैं.

राजेश धर्माणी अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी में सचिव के पद पर हैं. वे कई राज्यों में ऑब्जर्वर के तौर पर काम कर चुके हैं, लेकिन बावजूद इसके वे मंत्री पद के लिए लॉबिंग नहीं कर रहे. इसके पीछे उनका सहज और साधारण स्वभाव है.

मुख्य संसदीय सचिव होकर निजी गाड़ी का इस्तेमाल

वरिष्ठ पत्रकार अरविंद का बताते हैं कि मुख्य संसदीय सचिव रहते हुए भी सरकारी गाड़ी का इस्तेमाल न कर वे अपने निजी गाड़ी का इस्तेमाल करते थे. एक बार उन्होंने घुमारवीं के मुख्य बाजार में एक रेस्टोरेंट की शुरुआत की. लोगों ने उन्हें सुझाव दिया कि इस रेस्टोरेंट में मांसाहारी खाने के साथ शराब बार शुरू करने से काम बेहतर चलेगा, लेकिन उन्होंने इस बात से इनकार कर दिया. राजेश धर्माणी ने कहा कि अगर काम चलना होगा, तो शाकाहारी भोजन में चलेगा लेकिन वह सिद्धांतों से समझौता नहीं करेंगे.

वन विभाग को राजेश धर्माणी का इंतजार!

अब राजेश धर्माणी केंद्रीय आलाकमान के फार्मूले में फिट बैठें या न बैठें, लेकिन उनके समर्थक बेसब्री से उन्हें मंत्री पद दिए जाने का इंतजार कर रहे हैं. 8 जनवरी को मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने जब मंत्रिमंडल का विस्तार किया, उस समय कई विधायकों का इंतजार खत्म हुआ. राजेश धर्माणी का इंतजार अब भी बरकरार है. धर्माणी अपने अनुभव और बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष के गृह जिला से कांग्रेस की झोली में एकमात्र सीट डालने के बाद क्षेत्रीय समीकरण के आधार पर भी मंत्री पद की उम्मीद लगाए बैठे हैं.

हालांकि यह देखना होगा कि मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू अपने खासम-खास को मंत्रिमंडल में शामिल करा सकेंगे या नहीं. दिलचस्प संयोग है कि वन विभाग अब तक मुख्यमंत्री के पास ही है. उन्होंने इस विभाग को किसी अन्य मंत्री को आवंटित नहीं किया है.

ये भी पढ़ें: Himachal Politics: वीरभद्र सिंह का वह 'गॉड गिफ्ट'! जिससे विरोधी हो जाया करते थे पस्त, सोते-सोते भी कर जाते थे कमाल!

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