Himachal Pradesh Election 2022: भारतीय राजनीति का जिक्र परिवारवाद के बिना अधूरा है. कांग्रेस-बीजेपी भले ही परिवारवाद से बचने की लाख कोशिश करती हों, लेकिन दोनों ही दलों में 'अपनों' का खासा बोलबाला है. हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस-बीजेपी की ओर से जारी सूची में परिवारवाद साफ दिख रहा है.
कांग्रेस पर परिवारवाद के सबसे ज्यादा आरोप
शुरुआत परिवारवाद के सबसे ज्यादा आरोप झेलने वाली कांग्रेस से करते हैं. यहां शिमला ग्रामीण से कांग्रेस प्रत्याशी विक्रमादित्य सिंह पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के बेटे हैं. जुब्बल-कोटखाई विधानसभा क्षेत्र से रोहित ठाकुर पूर्व मुख्यमंत्री ठाकुर रामलाल के पोते हैं. इसी तरह शिलाई विधानसभा क्षेत्र से छह बार के विधायक हर्षवर्धन चौहान अपने पिता पूर्व विधायक मान सिंह ठाकुर की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं. श्री रेणुका जी विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस प्रत्याशी विनय कुमार के पिता डॉ. प्रेम छह बार कांग्रेस की टिकट पर विधायक बने.
राजनीति में 'अपनों' का बोलबाला
फतेहपुर विधानसभा क्षेत्र से भवानी पठानिया के पिता सुजान सिंह पठानिया कैबिनेट मंत्री रहे. वीरभद्र सरकार में परिवहन मंत्री रहे गुरमुख सिंह बाली के बेटे रघुबीर सिंह बाली नगरोटा बगवां से चुनावी मैदान में हैं. इसी तरह पूर्व मंत्री संतराम के बेटे और पूर्व शहरी विकास मंत्री सुधीर शर्मा भी कांग्रेस पार्टी के टिकट पर धर्मशाला से चुनाव लड़े. पालमपुर से विधानसभा अध्यक्ष रहे बृज बिहारी लाल बुटेल के बेटे आशीष बुटेल राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं. जिला मंडी से वीरभद्र सरकार में कद्दावर मंत्री रहे कौल सिंह ठाकुर द्रंग और उनकी बेटी चंपा ठाकुर मंडी सदर से कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ीं. इस बात की जानकारी कम ही लोगों को है, लेकिन नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री के पिता ओंकार चंद शर्मा भी कांग्रेस पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं.
पूर्व मंत्रियों और विधायकों के बेटों को टिकट
वहीं, कसौली विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ रहे विनोद सुल्तानपुरी पूर्व सांसद केडी सुल्तानपुरी के बेटे हैं. नालागढ़ के जाने-माने नेता और इंटक के अध्यक्ष रहे अमरजीत सिंह बाबा के बेटे हरदीप बाबा कांग्रेस पार्टी की टिकट पर नालागढ़ से चुनाव लड़े. पूर्व मंत्री सत महाजन के बेटे अजय महाजन भी नूरपुर विधानसभा क्षेत्र से चुनावी रण में हैं. जयसिंहपुर से भी कांग्रेस ने पूर्व विधायक मिल्खी राम के बेटे यादविंदर गोमा को मैदान में हैं.
बीजेपी में भी परिवारवाद
कांग्रेस पार्टी को परिवारवाद के मुद्दे पर कोसने का एक भी मौका न छोड़ने वाले भारतीय जनता पार्टी की सूची में भी परिवारवाद साफ नजर आता है. कांग्रेस के मुकाबले बीजेपी का परिवारवाद भले ही कुछ कम हो, लेकिन जीत हासिल कर सत्ता हासिल करने के लिए बीजेपी भी परिवारवाद के आगे नतमस्तक हो जाती है. हिमाचल बीजेपी ने जिला मंडी के धर्मपुर विधानसभा क्षेत्र से कैबिनेट मंत्री महेंद्र सिंह के स्थान पर उनके बेटे रजत ठाकुर को टिकट दी. यहां उनकी बेटी वंदना गुलेरिया भी टिकट न दिए जाने की वजह से पार्टी से नाराज हो गई थीं. मंडी सदर से बीजेपी ने साल 2017 में कांग्रेस छोड़ बीजेपी ने आए पंडित सुखराम शर्मा के बेटे अनिल शर्मा को एक बार फिर अपना प्रत्याशी बनाया.
कहीं भाई, कहीं पत्नी को टिकट
इसके अलावा पूर्व शिक्षा मंत्री आईडी धीमान के बेटे को जिला हमीरपुर की भोरंज विधानसभा क्षेत्र से बीजेपी ने प्रत्याशी बनाया. सोलन विधानसभा क्षेत्र से शिमला संसदीय क्षेत्र से पूर्व सांसद वीरेंद्र कश्यप के भाई राजेश कश्यप चुनावी रण में हैं. बड़सर विधानसभा क्षेत्र से पूर्व विधायक बलदेव शर्मा की धर्मपत्नी माया शर्मा को बीजेपी ने टिकट दी. चंबा विधानसभा क्षेत्र से पूर्व विधायक पवन नैयर का टिकट काट उनकी धर्मपत्नी नीलम नैयर को बीजेपी ने प्रत्याशी बनाया.
उपचुनाव में चखना पड़ा हार का स्वाद
इसी तरह पूर्व कैबिनेट मंत्री नरेंद्र बरागटा के बेटे चेतन बरागटा जुब्बल-कोटखाई से चुनावी मैदान में हैं. इसी सीट पर बीजेपी ने साल 2021 में हुए उपचुनाव में परिवारवाद की दुहाई देते हुए चेतन का टिकट काटा था. इस पर चेतन ने पार्टी से बगावत की. बगावत से बीजेपी प्रत्याशी नीलम सरैइक की जमानत जब्त हुई और सीट कांग्रेस की झोली में चल गई.
परिवार का झंडा बुलंद करना पार्टियों की मजबूरी!
चुनाव के समय परिवारवाद के मुद्दे पर घिरने वाली कांग्रेस-बीजेपी परिवारवाद को मजबूरी मानती हैं. जानकार मानते हैं कि जिस सीट पर परिवार का रुतबा हो, वहां परिवार से टिकट देना राजनीतिक दलों की मजबूरी बन जाती है. परिवार से हटकर टिकट बदलने की स्थिति में यह तो पार्टी को नुकसान झेलना पड़ता है या सीट ही गंवानी पड़ जाती है. ऐसे में राजनीतिक दल विनेबिलिटी को क्राइटेरिया बनाकर परिवार के लोगों को टिकट बांटते हैं.
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