Himachal Council Chamber: शिवालिक की चोटियों पर बसा शिमला शहर अपने सौंदर्य के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है. शिमला शहर सौंदर्य के साथ-साथ इतिहास को भी समेटे हुए है. शिमला में बनी एक ऐतिहासिक इमारत इसे जीवंत रखने का काम कर रही हैं. इस ऐतिहासिक शहर में अतीत से जुड़े जीवित मोती कुछ ऐसे बिखरे पड़े हैं कि हर कोई अपना एक अलग इतिहास रखता है और रोचक कहानी कहता है.

 

शिमला में औपनिवेशिक काल की अनेक इमारतें हैं. यह इमारतें देखने में जितनी खूबसूरत हैं, उनकी कहानी भी उतनी ही दिलचस्प है. यहां बना काउंसिल चेंबर भी अपने आप में ऐसे ही रोचक इतिहास को समेटे हुए है . मौजूदा वक्त में यह भवन हिमाचल विधानसभा परिसर का हिस्सा है.

10 लाख की लागत से बना था भवन


जेठ की तपती धूप से त्रस्त अंग्रेजों ने शिमला को अपनी ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाया. इसी दौर में सेंट्रल लेजिसलेटिव काउंसिल की बैठक के लिए काउंसिल चैंबर का निर्माण किया गया. इस भवन का निर्माण साल 1920 में शुरू हुआ. उस वक्त इस भवन के निर्माण पर कुल 10 लाख रुपए खर्च किए गए थे. यह भवन अंग्रेजी राज की आखिरी महत्वपूर्ण इमारत थी. इस भवन का उद्घाटन 27 अगस्त 1925 को तत्कालीन वायसराय लॉर्ड रीडिंग ने किया था. 

पहले भारतीय स्पीकर के चुनाव का गवाह है काउंसिल चेंबर 


ब्रिटिश शासन काल में काउंसिल चेंबर में कुल 145 सदस्यों के बैठने की जगह थी. उस समय देश भर से 104 सदस्य चुनाव के जरिए सदन पहुंचते थे. इसके अलावा 41 सदस्य मनोनीत किए जाते थे. यह भवन भारत की सेंट्रल लेजिसलेटिव काउंसिल के पहले भारतीय प्रेसिडेंट के चुनावों का भी गवाह रहा है. इसी भवन में विट्ठल भाई पटेल को भारतीय इतिहास के पहले स्पीकर होने का गौरव प्राप्त हैै. ब्रिटिश शासन काल के दौरान सेंट्रल लेजिसलेटिव काउंसिल के स्पीकर को प्रेसिडेंट कहकर पुकारा जाता था.

विधानसभा अध्यक्ष की कुर्सी का अनूठा इतिहास


विधानसभा भवन खुद में इतिहास समेटे हुए है. जहां इस इमारत का इतिहास उपनिवेश काल से जाकर जुड़ता है. वहीं, सेंट्रल हॉल में लगी विधानसभा अध्यक्ष की कुर्सी का इतिहास भी रोचक और बेहद खास है. जिस कुर्सी से आज हिमाचल प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष सदन चलाते हैं, वह कुर्सी बर्मा सरकार की देन है. जब शिमला में सेंट्रल लेजिसलेटिव काउंसिल की बैठकों के लिए भवन का निर्माण हुआ, तो तत्कालीन बर्मा सरकार ने अध्यक्ष के लिए लकड़ी से बनी कुर्सी एक भेंट की. यह कुर्सी आज भी प्रयोग में है और विधानसभा भवन की शान बढ़ा रही है.

कुछ समय तक चली पंजाब विधानसभा की बैठक


आजादी के बाद साल 1954 से साल 1955 तक इसी भवन में पंजाब विधानसभा के सत्र भी हुए. पंजाब से अलग होने के बाद यह भवन हिमाचल प्रदेश का आधिकारिक सचिवालय भी रहा. साल 1963 के बाद से लगातार हिमाचल प्रदेश विधान सभा के सत्र इसी ऐतिहासिक भवन में होते रहे हैं. मौजूदा वक्त में हिमाचल प्रदेश विधानसभा के बजट और मॉनसून सत्र को इसी ऐतिहासिक भवन में करवाया जाता है. सिर्फ शीतकालीन सत्र के लिए धर्मशाला के विधानसभा भवन का इस्तेमाल होता है.