Himachal Pradesh: पांच साल बाद पूरी हुई कुलदीप सिंह पठानिया की इच्छा? विधानसभा अध्यक्ष के पद पर हुए नियुक्त
Himachal Pradesh News: शिलाई विधानसभा से विधायक हर्ष चौहान ने कहा कि कुलदीप सिंह पठानिया के सामने मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने मंत्री पद और अध्यक्ष पद का विकल्प खुला रखा था.
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Kuldeep Singh Pathania News: हिमाचल प्रदेश की 14वीं विधानसभा में कुलदीप सिंह पठानिया सर्वसम्मति से विधानसभा अध्यक्ष चुने गए हैं. वह हिमाचल प्रदेश विधानसभा के 15वें अध्यक्ष हैं. कुलदीप सिंह पठानिया जिला चंबा की भटियात विधानसभा क्षेत्र से पांचवी बार के विधायक हैं. पठानिया के विधानसभा अध्यक्ष बनने से न केवल क्षेत्र की जनता में खुशी का माहौल है बल्कि चंबा जिला से जीत कर आए पक्ष-विपक्ष के सभी विधायक भी खुश नजर आ रहे हैं.
5 साल पहले विधानसभा अध्यक्ष बनना चाहते थे पठानिया
भले ही विधायक विधानसभा अध्यक्ष बनने से गुरेज करते हों, लेकिन हाल ही में विधानसभा अध्यक्ष बने कुलदीप सिंह पठानिया ने साल 2017 में ही अध्यक्ष बनने की इच्छा जाहिर कर दी थी. हालांकि उस समय न तो सत्ता में कांग्रेस की वापसी हो सकी और न ही कुलदीप सिंह पठानिया चुनाव जीते. अब पांच साल बाद कुलदीप सिंह पठानिया की इच्छा पूरी हुई है और वे विधानसभा अध्यक्ष बने हैं. शीतकालीन सत्र में कार्यवाही के दौरान मंडी सदर से विधायक अनिल शर्मा ने किस्सा साझा करते हुए कहा कि जब वे और कुलदीप सिंह पठानिया दिल्ली में थे तो उन्होंने उस वक्त विधानसभा अध्यक्ष बनने की इच्छा जाहिर की थी. पठानिया ने कहा था कि अगर सरकार आई तो वे विधानसभा अध्यक्ष बनेंगे.
पठानिया के सामने खुला था मंत्री पद का भी विकल्प
इसी तरह जिला सिरमौर के शिलाई विधानसभा क्षेत्र के विधायक हर्ष चौहान ने कहा कि कुलदीप सिंह पठानिया के सामने मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने मंत्री पद और अध्यक्ष पद का विकल्प खुला रखा था. हालांकि पठानिया ने अपनी इच्छा से विधानसभा अध्यक्ष के पद को चुना है. हर्ष चौहान ने कहा कि हिमाचल प्रदेश विधानसभा का पद एक गरिमामयी पद है और उन्हें विश्वास है कि वे पूर्ण निष्ठा के साथ अपने कर्तव्य का निर्वहन करेंगे.
प्रोटोकॉल में सबसे बड़ा है विधानसभा अध्यक्ष का बांध
सुलह से बीजेपी विधायक और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष विपिन परमार ने कहा कि विधानसभा का अध्यक्ष पद की गरिमामयी पद है. कुछ समाचार पत्रों और न्यूज चैनल की खबर में इस पद की गरिमा को कम किया जाता. परमार ने कहा कि विधानसभा अध्यक्ष न केवल प्रोटोकॉल में बड़े हैं बल्कि वे जनता के आवाज बनकर सदन में पहुंचे विधायकों को मुद्दा उठाने के लिए समय देते हैं. इसलिए विधानसभा अध्यक्ष खुद सीधे तौर पर जनता के मुद्दों के साथ जुड़े हैं.
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