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लाला लाजपत राय की पुण्यतिथि आज, शिमला में ऐसे किया गया उन्हें याद
Shimla News: आज पंजाब केसरी लाला लाजपत राय की पुण्यतिथि पर शिमला के स्कैंडल पॉइंट पर उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया है. इस अवसर पर नगर निगम के महापौर ने उनके साहस की गाथा को याद किया.
Lala Lajpat Rai Death Anniversary: पूरा देश आज पंजाब केसरी लाला लाजपत राय की पुण्यतिथि के मौके पर उन्हें याद कर रहा है. हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला में भी लाला लाजपत राय को उनकी पुण्यतिथि के मौके पर याद किया गया.
शिमला के स्कैंडल पॉइंट पर लाला लाजपत राय की प्रतिमा स्थापित की गई है. यहां हर साल उनके जन्मदिन और पुण्यतिथि के मौके पर माल्यार्पण कर उन्हें याद किया जाता है. शिमला नगर निगम के महापौर सुरेंद्र चौहान ने लाला लाजपत राय की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित कर उन्हें याद किया.
इस दौरान नगर निगम शिमला के महापौर सुरेंद्र चौहान ने कहा- 'स्वतंत्रता आंदोलन में महान स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय के साहस की गाथा देश वासियों के लिए सदैव स्मरणीय रहेगी. लाला लाजपत राय अंग्रेजों की लाठियां खाकर शहीद हुए थे. उन्होंने कहा कि लाला लाजपत राय को शेर-ए-पंजाब के नाम से भी जाना जाता है. लाला लाजपत राय उन महान सपूतों में से एक थे, जिनकी बदौलत हम आज आजाद भारत में खुली हवा में सांस ले रहे हैं. इसलिए देश के महान सपूतों को याद करना हमारा कर्तव्य भी है'.
साल 1865 में हुआ था लाला लाजपत राय का जन्म
लाला लाजपत राय का जन्म 28 जनवरी, 1865 को पंजाब के लुधियाना जिले के धुदिके गांव में हुआ था. उनके पिता राधा किशन उर्दू और फारसी के अध्यापक थे और उन्हें शिक्षा से गहरा लगाव था. लाला लाजपत राय की माता गुलाब देवी बेहद धार्मिक प्रवृत्ति की थीं.
लाजपत राय ने गांव के विद्यालय और लुधियाना और अंबाला के मिशन स्कूल से पढ़ाई पूरी की. साल 1882 में लाला लाजपत राय आर्य समाज की शिक्षा ग्रहण कर इसके अग्रणी नेताओं में शामिल हो गए थे. साल 1905 में जब हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में भीषण भूकंप आया था, तब भी उन्होंने सामाजिक कार्यकर्ता के नाते प्रभावितों की मदद की थी. लाला लाजपत राय लेखन में भी माहिर थे.
साइमन कमीशन के विरोध किया था प्रदर्शन
गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट ऑफ 1919 में अधिनियम लागू होने के दस सालों में ही एक सांविधिक आयोग के गठन का प्रावधान किया गया था. इसके बाद साल 1927 में साइमन कमीशन की नियुक्ति की गई. भारतीय लोगों ने इसमें किसी भी भारतीय को प्रतिनिधित्व न देने पर इसका जबरदस्त विरोध किया. दिसंबर, 1927 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने इसका बहिष्कार करने का संकल्प पारित किया. लोगों को साइमन कमीशन के गठन के तरीके पर अपना रोष प्रकट करने से रोकने के लिए सरकार ने धारा- 144 लागू कर दी थी. लाला लाजपत राय ने साइमन कमीशन के विरोध में प्रदर्शन करने के लिए जुलूस का नेतृत्व किया.
छाती पर सहा था अंग्रेजों की लाठियों का अत्याचार
30 अक्टूबर, 1928 को लाहौर में बहिष्कार प्रदर्शन का नेतृत्व करते हुए उन्होंने अपने सीने पर लाठियां खाई. इसके बाद 17 नवंबर, 1928 को उनकी मृत्यु हो गई. उन्होंने इस घटना के बारे में जो कहा, वह एक भविष्यवाणी सिद्ध हुई. लाला लाजपत राय ने कहा था- "मुझ पर किया गया लाठी का हर प्रहार अंग्रेजी साम्राज्यवाद के ताबूत में एक-एक कील ठोकने के बराबर है. मैं नहीं जानता कि मैं जीवित रहूंगा या नहीं, लेकिन लोग चिंता न करें. मेरे बाद मेरी आत्मा आपको स्वतंत्रता के लिए अधिक बलिदान देने की प्रेरणा देते रहेगी".
साइमन कमीशन के विरोध किया था प्रदर्शन
गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट ऑफ 1919 में अधिनियम लागू होने के दस सालों में ही एक सांविधिक आयोग के गठन का प्रावधान किया गया था. इसके बाद साल 1927 में साइमन कमीशन की नियुक्ति की गई. भारतीय लोगों ने इसमें किसी भी भारतीय को प्रतिनिधित्व न देने पर इसका जबरदस्त विरोध किया. दिसंबर, 1927 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने इसका बहिष्कार करने का संकल्प पारित किया. लोगों को साइमन कमीशन के गठन के तरीके पर अपना रोष प्रकट करने से रोकने के लिए सरकार ने धारा- 144 लागू कर दी थी. लाला लाजपत राय ने साइमन कमीशन के विरोध में प्रदर्शन करने के लिए जुलूस का नेतृत्व किया.
छाती पर सहा था अंग्रेजों की लाठियों का अत्याचार
30 अक्टूबर, 1928 को लाहौर में बहिष्कार प्रदर्शन का नेतृत्व करते हुए उन्होंने अपने सीने पर लाठियां खाई. इसके बाद 17 नवंबर, 1928 को उनकी मृत्यु हो गई. उन्होंने इस घटना के बारे में जो कहा, वह एक भविष्यवाणी सिद्ध हुई. लाला लाजपत राय ने कहा था- "मुझ पर किया गया लाठी का हर प्रहार अंग्रेजी साम्राज्यवाद के ताबूत में एक-एक कील ठोकने के बराबर है. मैं नहीं जानता कि मैं जीवित रहूंगा या नहीं, लेकिन लोग चिंता न करें. मेरे बाद मेरी आत्मा आपको स्वतंत्रता के लिए अधिक बलिदान देने की प्रेरणा देते रहेगी".
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