Shimla Navratri 2024: शिमला के कालीबाड़ी में मां दुर्गा की अलौकिक मूर्तियां बनकर तैयार हो गई हैं. इसे बनाने के लिए मिट्टी खासतौर पर पश्चिम बंगाल से लाई गई है. कालीबाड़ी में बनने वाली मूर्तियां विशेष तौर पर गंगा मिट्टी से तैयार की जाती हैं. चूंकि शिमला में मिलने वाली मिट्टी खुरदुरी होती है. ऐसे में इस मिट्टी को विशेष तौर पर पश्चिम बंगाल से ही लाया जाता है. मां काली पर भक्तों की विशेष आस्था है.
पश्चिम बंगाल से मां दुर्गा की मूर्ति तैयार करने के लिए पहुंचे दीपू कलाकार ने बताया कि उनका पूरा गांव मूर्ति बनाने का काम करता है. उनके पिता बीते करीब 35 सालों से कालीबाड़ी मां के साथ हिमाचल प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों में मूर्तियां बनाने के लिए आते हैं. इसके लिए वह मिट्टी अपने साथ पश्चिम बंगाल से ही लेकर यहां पहुंचते हैं. सालों से मूर्ति बनाने का यह काम किया जा रहा है. इस साल भी मूर्ति बनाने का काम पूरा हो चुका है. यहां मूर्ति बनाने का काम करना उन पर मां काली की कृपा ही है. मां काली की कृपा से ही वे यह कलाकारी सीख सके हैं.
विजयदशमी के मौके पर पर होगा मूर्ति विसर्जन
कालीबाड़ी के पुजारी मुक्ति चक्रवर्ती ने बताया की मूर्तियां बनाने का काम पूरा हो चुका है. पश्चिम बंगाल से आए कलाकार अपने साथ ट्रेन में ही मिट्टी लेकर यहां आ जाते हैं. हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर और कांगड़ा में मूर्तियां बनाने के बाद यह कलाकार शिमला के कालीबाड़ी में आते हैं और मूर्तियां तैयार करते हैं. यहां माता दुर्गा के साथ माता सरस्वती, माता लक्ष्मी, भगवान गणेश और भगवान कार्तिकेय की मूर्तियां तैयार की जाती हैं.
दशहरे के मौके पर माता की मूर्तियों का विसर्जन शिमला के तारा देवी के तालाब में किया जाएगा. यह तालाब आइटीबीपी के दफ्तर के नजदीक ही बना हुआ है. मां दुर्गा को विसर्जित करने से पहले दशहरे के मौके पर यहां 'सिंदूर खेला' होता है. इसे देखने के लिए विशेष तौर पर लोग दूर-दूर से यहां आते हैं.
201 साल पुराना है कालीबाड़ी मंदिर
बता दें कि शिमला में माता काली को समर्पित यह मंदिर 201 साल पुराना है. इस मंदिर की स्थापना साल 1823 में हुई थी. इस पवित्र स्थान को कालीबाड़ी के नाम से जाना जाता है. शिमला से जुड़े इतिहास के मुताबिक, कालीबाड़ी मंदिर मूल रूप से जाखू हिल पर रोथनी कैसल में बनाया गया था. इसकी स्थापना बंगाली ब्राह्मण राम चरण जी ब्रह्मचारी ने की थी. यह शिमला के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है.
बाद में इस मंदिर को इसके मौजूदा स्थान पर स्थानांतरित कर दिया गया. यहां नवरात्रि के मौके पर हर साल बड़ी संख्या में पश्चिम बंगाल से विशेष तौर पर भक्त शीश वाने के लिए पहुंचते हैं. साल भर भी यहां भक्तों का दर्शन करने के लिए तांता लगा रहता है.
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