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Makar Sankranti Special: 'साजे' के रूप में मनाई जाती है मकर संक्रांति, लाल चावलों से बनी खिचड़ी का है खास महत्व
पहाड़ी प्रदेश हिमाचल में मकर संक्रांति धूम-धाम से मनाई जाती है.शिमला और इसके आसपास के क्षेत्रों में इसे 'साजे' के रूप में मनाया जाता है. इस दिन लाल चावलों से खिचड़ी बनाई जाती है जिसे 'किसर' कहते हैं.
Makar Sankranti Special: देशभर में मकर संक्रांति को पर्व के रूप में मनाया जाता है. हिंदू पंचांग के अनुसार इस समय कड़कड़ाती ठंड से भरा पौष मास अपने उतरायण को पहुंचा है और वसंत के स्वागत के लिए माघ महीने की शुरूआत होती है. इसी माघ महीने की प्रथमा को मकर संक्रांति (Makar Sankranti) मनाई जाती है. इसे पूरे देश भर में मनाया जाता है. पहाड़ी प्रदेश हिमाचल (Himachal Pradesh) में तो हमेशा से त्योहारों को एक अलग अंदाज में मनाने की परिपाटी रही है.
पहाड़ी राज्य में मकर संक्रांति की अलग रंगत
देशभर से अलग लगभग सभी त्योहारों में यहां एक अलग पहाड़ी रंगत देखने को मिलती है. भारत विविधताओं का देश है. ऐसे में बहुत से त्योंहारों की तरह भारतीय संस्कृति की विविधता का असर मकर सक्रांति में भी देखने को मिलता है. हिमाचल और खास तौर पर शिमला (Shimla) और इसके आसपास वाले क्षेत्रों में इसे 'साजे' (Saaja) के रूप में मनाया जाता है.
पहाड़ी इलाके में साजे का बेहद महत्व
पहाड़ों पर बसे इन सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में साजे का बड़ा महत्व है. यहां संक्रांति को साजा कहा जाता है. माघ महीने के साजे को सबसे बड़ा और विशेष माना जाता है. शिमला के स्थानीय निवासी जोगिंदर शर्मा बताते हैं कि साजे के लिए बच्चे-बड़े सब उत्साहित रहते हैं. साजे के दिन की शुरुआत लाल चावलों से बनी खिचड़ी से होती है जिसे 'किसर' (Kiser) कहते हैं. उस पर अखरोट, खुमानी की गुटली और भंगजीरी दाने का बुरा और घी किसी के भी मुंह में पानी लाने को काफी है.
अपने पुरखों को याद करने का पवित्र मौका होता है साजा
साजे को पुरखों को याद करने का एक पवित्र अवसर माना जाता है. जोगिंद्र शर्मा याद बताते हैं कि सुबह जब खिचड़ी बनती तो सबसे पहले पुरखों को याद करते हुए पितरों को समर्पित की जाती है. फिर बच्चों में बंटती और बड़े भी लुत्फ उठाते हैं. जहां सुबह किसर और शाम के वक्त पूरी, मालपुहे, उड़द दाल के वड़े और शाकुली के साथ होती है.
अपनों से मिलने घर आती हैं बेटियां
ये वो समय है जब पहाड़ बर्फ से ढके रहते हैं. माघ महीने को क्षेत्र में त्योहारों का महीना कहा जाता है. इस दौरान हर एक या दो दिन के अंतराल में कोई न कोई त्योहार होता है. बेटियां और रिश्तेदार घर आते हैं और अपनों से मिलने का वक्त निकालते हैं. यही वजह है कि इन पहाड़ी क्षेत्रों में माघ महीने की बड़ी विशेषता है और इसकी शुरुआत साजे के साथ होती है.
पहाड़ों में महीने भर रहता है जश्न का माहौल
ग्रामीण इलाकों में आज भी यही रीत चली आ रही है. आज भले ही इलाके में सेब की खेती ने बहुत कुछ बदल दिया हो. अब लाल चावल उगाने वाले भले कम लोग रहे हों, लेकिन आज भी लाल चावल उपलब्ध होते हैं और साजे जैसा त्योहार प्रासंगिक हैं. लोग साजे को पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं. आज भी महीने भर पहाड़ में जश्न का माहौल रहता है.
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