McMahon Line: नौ दिसंबर को देश के पूर्वोत्तर राज्य अरुणाचल प्रदेश (Arunachal Pradesh) के तवांग (Tawang) सेक्टर में चीन (China) और भारत (India) के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प हुई थी. इसमें दोनों ओर के कुछ सैनिक घायल हुए. चालबाज चीन समय-समय पर भारत के हिस्से पर अपना दावा पेश करता है, जो सरासर गलत है. अनावश्यक रूप से विस्तारवादी नीति पर चल रहा चीन न तो पंचशील के सिद्धांत को मानता है और न ही मैकमोहन लाइन को.


वहीं भारत अपने रुख पर पूरी तरह स्पष्ट है कि चीन-भारत के बीच लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल मैकमोहन ही है. सन 1914 में भारत और तिब्बत के प्रतिनिधियों के बीच सीमा को लेकर समझौता शिमला में हुआ था. इस समझौते को शिमला समझौता या शिमला कन्वेंशन के नाम से जाना जाता है. इस समझौते के दौरान तिब्बत और भारत ने अपनी सीमाओं को तय किया था. भारत की ओर से ब्रिटिश शासकों ने अरुणाचल प्रदेश के तवांग और तिब्बत के दक्षिणी हिस्से को हिंदुस्तान का हिस्सा माना. इस सीमा को तिब्बत के प्रतिनिधियों ने भी सहमति दी थी.


सर हेनरी मैकमोहन ने खींची थी सीमा
मैकमोहन रेखा तत्कालीन ब्रिटिश भारत सरकार में विदेश सचिव सर हेनरी मैकमोहन ने खींची थी. हेनरी ब्रिटेन, चीन और तिब्बत के बीच हुए शिमला सम्मेलन के मुख्य वार्ताकार भी थे. सन 1914 में शिमला समझौता के समय ब्रिटिश भारत और तिब्बत के प्रतिनिधियों ने यह समझौता किया था. इस वक्त यहां चीन मौजूद नहीं था. शिमला समझौते में मौजूद न होने की वजह से ही चीन मैकमोहन रेखा को मान्यता नहीं देता. ब्रिटिश भारत का यह समझौता तिब्बत के साथ उस समय हुआ, जब तिब्बत एक स्वतंत्र देश था.


तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा ने भारत में ली थी शरण
ऐसे में तिब्बत और भारत के प्रतिनिधियों के बीच जो सीमा तय हुई, वही सीमा आधिकारिक और स्वीकार्य है. साल 1935 में भारत के सर्वे ऑफ इंडिया के मैप में मैकमोहन लाइन को आधिकारिक रूप से प्रकाशित किया गया है. शिमला समझौता के करीब 36 साल बाद चीन ने तिब्बत पर कब्जा कर लिया था. यह वही वक्त था, जब तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा शरण के लिए भारत पहुंचे थे. तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में रहते हैं. 15 जून 2020 को चीन ने अपनी नापाक चाल चलते हुए गलवान में स्थिति खराब करने की कोशिश की. 


गलवान और तवांग में चीन की चाल नाकाम
चीन की इस साल का जवाब देते हुए भारत के जांबाज सैनिकों ने पीएलए को वापस खदेड़ दिया. इस झड़प में भारत के 20 वीर सैनिक भी शहीद हो गए थे. इस झड़प में चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी के भी कई जवान मारे गए, लेकिन चीन ने कभी भी अपने जवानों की मौत का आंकड़ा सामने नहीं आने दिया. अब दो साल बाद एक बार फिर चीन ने अरुणाचल प्रदेश के तवांग में स्थिति खराब करने की कोशिश की, लेकिन यहां भी भारतीय सेना ने चीन को माकूल जवाब देते हुए वापस लौटने पर मजबूर कर दिया. इस झड़प में दोनों पक्षों के सैनिकों को हल्की चोटें आईं.


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